सर्वोपरि आभूषण
आदि शंकराचार्य देश भर का भ्रमण कर लोगों को ज्ञानोपयोगी उपदेश दियाकरते थे।
एक बार उन्होंने कहा, जीवन में चार कल्याणकारी बातों का होना बड़ा दुर्लभ है । पहला प्रियवचन सहित
दान, दूसरा अहंकाररहित
ज्ञान, तीसरा क्षमायुक्त
वीरता और चौथा त्यागपूर्वक निष्काम दान । धन, यौवन और आयु विद्युत की भाँति अत्यंत चंचल होते हैं । ये नाशवान
हैं , अतः इस जन्म में
प्राप्त धन , यौवन और आयु
का सदा सदुपयोग करना चाहिए । प्राणों पर बन आने पर भी पापाचरण से दूर रहना चाहिए ।
ईश्वर को प्रिय सद्कर्मों में प्रवृत्त रहकर ही मानव जीवन सफल बनाया जा सकता है ।
जीवन में व्यक्ति का सर्वोत्तम आभूषण क्या है इस प्रश्न के उत्तर में आचार्य
श्री ने कहा, शील अर्थात्
उत्तम चरित्र ही सर्वोपरि आभूषण है । जो सदाचारी और विनयी है और सत्य वचन बोलता है, उसमें सभी प्राणियों को अपने वश में करने की
क्षमता होती है । दरअसल वह व्यक्ति अंधा नहीं होता, जो आँखों से रहित है, बल्कि अंधा वह है, जो आँखें रहते हुए भी निंदित और धर्मविरुद्ध कार्य करता है ।
इसी तरह बधिर वह है, जो हितकारी
बात नहीं सुनता और गूंगा वह है, जो प्रिय वचन नहीं बोलता । उन्होंने आगे कहा, यदि तुझे मोक्ष की इच्छा है , तो विषयों को विष के समान दूर से ही त्याग दे और संतोष, दया, क्षमा , सरलता जैसे सद्गुणों का पालन करते हुए भगवतभक्ति में लीन रहकर मानव जीवन को
सार्थक बना ।
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