Ad Code

हृदय में शांति रहे

 

हृदय में शांति रहे

अपनी पटरानी जांबवंती के पुत्रवती होने की अभिलाषा पूरी करने के लिए भगवान् श्रीकृष्ण ने एक बार हिमालय क्षेत्र के एक आश्रम में भगवान् शिव की आराधना की । वे प्रतिदिन विधि -विधान से पूजा और तप करने लगे । लंबे समय तक उपासना करने से भगवान् महादेव ने प्रकट होकर श्रीकृष्ण को दर्शन दिए । महादेव के अनूठे तेज से श्रीकृष्ण की आँखें बंद हो गई । वे हाथ जोड़े खड़े रहे ।

महादेव ने कहा, हे श्रीकृष्ण, आपने असंख्य बार मेरी आराधना की है । मैं स्वयं आपके बाल रूप के दर्शन के लिए ब्रज गया था । मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूँ ।

श्रीकृष्ण ने आदर सहित भगवान् महादेव की स्तुति की ।

महादेव ने कहा, मैं आपकी भक्ति से परम संतुष्ट हूँ । मैं चाहता हूँ कि आप मुझसे कोई वर माँगें । श्रीकृष्ण ने नतमस्तक होकर कहा, मैं आपके दर्शन से ही कृतकृत्य हो गया । आपकी आज्ञा का पालन करने के लिए मैं प्रार्थना करता हूँ कि मुझे वरदान दें कि मेरी धर्म में दृढ़ बुद्धि बनी रहे । अपयश का कोई कार्य मुझसे न होने पाए । योग- साधना की ओर प्रवृत्ति बनी रहे । समय- समय पर आपका सान्निध्य प्राप्त होता रहे । जांबवंती को पुत्र प्राप्ति हो ।

महादेव ने तमाम इच्छाओं की पूर्ति का वर दे दिया । पार्वतीजी ने कहा, कृष्ण, मुझसे भी तो कुछ माँगिए । श्रीकृष्ण ने हाथ जोड़कर कहा, हृदय में सदा शांति रहे और सब माताओं के प्रति मेरा समान स्नेह रहे ऐसा वर दीजिए । देवी पार्वती से आशीर्वाद लेकर श्रीकृष्ण वापस लौट गए ।


Post a Comment

0 Comments

Ad Code