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अनूठी शर्ते

 

अनूठी शर्ते

अयोध्या में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्मे अश्वघोष प्रभावशाली कवि थे। उनकी विद्वत्ता की सुगंध दूर दूर तक फैली हुई थी । मगध के राजा ने उनकी ख्याति सुनी, तो उन्हें सादर आमंत्रित किया और राजकवि की पदवी दी । अश्वघोष ने भगवान् बुद्ध के जीवन पर आधारित महाकाव्य की रचना की ।

मगध राज्य की समृद्धि से चिढ़कर आस-पास के कई राजा उनके विरोधी बन गए, लेकिन शनैः-शनै: मगध को दुर्भाग्य ने घेरना शुरू कर दिया । मौका पाकर राजा कनिष्क ने पूरी तैयारी कर राज्य को चारों ओर से घेर लिया । राजा व प्रजा को लगने लगा कि किसी भी दिन कनिष्क की सेना राज्य पर कब्जा कर लेगी, लेकिन महाराजा कनिष्क बहुत धर्मपरायण शासक थे। अंतिम दिनों में वे स्वयं भगवान् बुद्ध के अहिंसा के सिद्धांत में विश्वास करने लगे थे। उन्होंने एक दिन एक दूत को पत्र देकर मगध के राजा के पास भेजा । दूत ने वहाँ जाकर बताया कि कनिष्क खून - खराबा को पाप मानते हैं । उनकी दो शर्ते हैं । उन्हें स्वीकार कर युद्ध टाल लें ।

राजा ने शर्त सुनाने को कहा । दूत ने पत्र पढ़ना शुरू किया, हम हिंसा को अधर्म मानते हैं । युद्ध टालने के लिए दो शर्तेहैं । भगवान् बुद्ध द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला भिक्षापात्र तथा राजकवि अश्वघोष हमें उपहार में देदें । हम लौट जाएँगे । मगध के राजा ने खुशी - खुशी शर्ते मान लीं । कनिष्क ने अश्वघोष को बौद्ध सभा का अध्यक्ष बनाया । मगध सम्राट् को संतोष था कि उसके राजकवि को इतना प्रमुख सम्मान मिला ।


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