दैत्यों का
संहार
अरुण नामक एक पराक्रमी दैत्य था । उसके मन में देवताओं को जीतने की धुनसवार
हुई । उसने ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया । उसके कठोर तपस्या से
देवलोक हिल उठा । घबराए हुए देवता ब्रह्माजी के पास पहुँचे और उनसे रक्षा करने की
प्रार्थना की । ब्रह्माजी हिमालय पर पहुँचे और दैत्य से वर माँगने को कहा । उसने
कहा कि मुझे अमरत्व प्रदान किया जाए ।
ब्रह्माजी बोले, वत्स , संसार में
जन्म लेने वाला मृत्यु को अवश्य प्राप्त होगा । दूसरा वर माँगो । अरुण ने कहा, वर दें कि मैं न तो युद्ध में मरूँ , न ही किसी अस्त्र- शस्त्र से मेरा विनाश हो और
न ही किसी स्त्री या पुरुष के हाथों मेरी मृत्यु हो । ब्रह्माजी ‘ ऐसा ही होगा कहकर अंतर्धान हो गए ।
अब दैत्य का अहंकार पराकाष्ठा पर पहुँच गया । उसने आसुरी सेना को इकट्ठा किया
और देवलोक पर चढ़ाई कर उसे अपने अधिकार में ले लिया । देवता भागकर भगवान् शंकर की
शरण में पहुंचे। उन्हें बताया कि किस तरह अरुण ने देवताओं के अस्तित्व पर खतरा
पैदा कर दिया है ।
भगवान् शिव ने कहा, भगवती भुवनेश्वरी की उपासना करो । देवताओं ने भगवती भुवनेश्वरी की उपासना
आरंभ कर दी । देवताओं की उपासना से प्रसन्न होकर आदिशक्ति जगन्माता प्रकट हुई ।
उन्होंने कहा, आप सभी
निश्चिंत हो जाएँ । मैं धर्म, देवताओं व सत्पुरुषों के लिए चुनौती बने उस दैत्य का संहार भ्रमरों (विषैले
कीटों ) से करूँगी ।
देखते ही देखते भ्रमरों के समूह ने अरुण व उसकी सेना को घेर लिया । कीटों के
विषैले डंकों ने उनका समूल नाश कर दिया ।
देवता
भ्रामरी देवी की जय - जयकार कर उठे ।
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