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अनूठी विरक्ति

 

अनूठी विरक्ति

दक्षिण भारत के एक राज्य के अधिपति पीपा परम सदाचारी और धर्मात्मा थे। प्रजा की सेवा में तत्पर रहने के साथ- साथ वे नियमित रूप से भगवान् का ध्यान तथा धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया करते थे । एक बार किसी विख्यात संत की सलाह पर वे प्रधानमंत्री तथा अन्य लोगों को साथ लेकर स्वामी रामानंद के दर्शन के लिए काशी पहुँचे। उन्होंने प्रधानमंत्री को स्वामीजी के पास भेजा । उसने कहा, हमारे राजा आपके दर्शन करना चाहते हैं । आश्रम में आने की स्वीकृति दें । स्वामीजी ने कहा, राजा - महाराजाओं से मुझे क्या लेना देना । मैं निर्धन व यायावर साधु - संन्यासियों से बातें कर संतोष का अनुभव करता हूँ । पीपा तुरंत राजधानी लौट आए । उन्होंने अपनी तमाम व्यक्तिगत संपत्ति निर्धनों में वितरित कर दी । एक निर्धन के रूप में वे पुनः काशी पहुँचे। स्वामी रामानंद को जब राजा के इस त्याग का पता लगा, तो उन्होंने उन्हें उपदेश देते हुए कहा , राजन्, अपने को राजा की जगह भगवान् का प्रतिनिधि मानकर जनता की सेवा करो । यही राजा का सर्वोत्तम धर्म है । राज्य में कोई भूखा- प्यासा न रहने पाए , किसी के साथ अन्याय न हो इसका ध्यान रखते हुए भगवान् की उपासना करो। ऐसा करने पर तुम्हारी गणना आगे चलकर सद्गृहस्थ राज- संत के रूप में होगी ।

कुछ वर्ष बाद स्वामी रामानंद उनके राज्य में पहुँचे। पीपा तथा उनकी रानी को उन्होंने दीक्षा दी । पीपा की गणना आगे चलकर परम विरक्त राज - संत के रूप में हुई ।


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