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शुभ कर्मों के बीज

 

शुभ कर्मों के बीज

गुरु नानकदेवजी जगह- जगह जाकर सदाचार का पालन करने, भगवान् की भक्ति, पवित्र नाम के जाप और गरीब - असहायों की सेवा का उपदेश दिया करते थे। वे अकसर कहा करते थे, अपना- अपना काम अथवा कर्तव्यों का पालन करते हुए यदि हम भगवान् का स्मरण करें, तो किसी अन्य साधना की जरूरत नहीं होती है ।

एक नगर में उन्होंने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा, जो सत्य को व्रत मानते हैं, संतोष को तीर्थ, ईश्वरीय ज्ञान और ध्यान को स्नान, दया को ईश्वर की प्रतिमा और क्षमा को जाप की माला, वे सर्वाधिक ईश्वरीय कृपा का प्रसाद पाते हैं ।

गुरुजी कहते हैं, ईश्वर दुराग्रही तपस्या अथवा विभिन्न धार्मिक वेश - भूषा से प्रसन्न नहीं होते । वे केवल मानव की सेवा, प्रेम और संयमी जीवन से प्रसन्न होते हैं । सत्य, संतोष और सदाचार का पालन कर पाप को अपने मन से निर्वासित कर दें, तभी प्रभु कृपा की वर्षा करेंगे ।

एक जगह गुरु नानकदेवजी ने कहा है, शरीर को मानो खेत, शुभ कर्मों के बोओ बीज । ईश्वर नाम से करो सिंचाई और हृदय को बनाओ किसान । तब तेरे हृदय में ईश्वर अंकुरित होगा और फिर तुझे निर्वाण पद की फसल मिलेगी ।

गुरु नानकदेवजी ऐसे दिव्य पुरुष थे, जिनके दर्शन, सत्संग व पवित्र वाणी के प्रताप से असंख्य लोग अपने दुर्गुण त्यागकर सदाचार के मार्ग पर चलने को सहर्ष तैयार हो जाते और अपना मानव जीवन सफल बना लेते थे ।


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