अन्नदान यज्ञ
दक्षिण भारत के संत रामलिंगम् स्वामी वल्ललार करुणा व प्रेम को भक्ति का मूल
आधार बताया करते थे। एक बार कुछ धनाढ्य भक्त चावल, गेहूँ , शक्कर, घी आदि लेकर
उनके पास पहुँचे और कहा, महाराज, हम एक यज्ञ करने
का संकल्प लेकर आए हैं । हम चाहते हैं कि यज्ञ में आहुति देने का शुभारंभ आप करें
। यह यज्ञ आपके सान्निध्य में होना चाहिए । स्वामीजी ने कहा, यज्ञ अवश्य होगा । कल सवेरे मैं ऐसा अनूठा
यज्ञ कराऊँगा कि आप सब लोगों को प्रत्यक्ष देव -दर्शन होगा । स्वामीजी के आदेश से
भोजन के लिए खीर, हलवा आदि
व्यंजन तैयार किए गए । स्वामीजी ने पास की झोंपड़पट्टी से सभी अभावग्रस्त लोगों को
आमंत्रित किया । उन्हें पंक्ति में बिठाया और फिर सेठों से बोले, इन सबको सम्मान के साथ सामूहिक भोजन कराओ। यह
अनुभव करो कि तुम यज्ञ में आहुतियाँ दे रहे हो । ये सब अभावग्रस्त साक्षात् देवता
बनकर आहुतियाँ ग्रहण कर रहे हैं । उन भक्तजनों ने यह स्वीकार किया कि वास्तव में
इस अनूठे यज्ञ रूपी भंडारे से उन्हें जो संतोष मिला है, वह पहले कभी नहीं मिला था ।
स्वामीजी ने भक्तजनों को उपदेश देते हुए कहा, जब किसी भूखे- असहाय व्यक्ति को भोजन देकर उसकी भूख तृप्त की
जाती है, उस समय उसके
अंत: करण से निकला कृतज्ञता का भाव भगवान् का आशीर्वाद होता है । मैं इसे जीव
कारुण्य - आराधना मानता हूँ । स्वामी रामलिंगम् के अनुयायी अब भी अन्नदान यज्ञ कर
उस परंपरा का निर्वाह करते हैं ।
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