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सदाचार ही धर्म है

 

सदाचार ही धर्म है

ईसा मसीह प्रेम, दानशीलता और उदारता को स्थायी शांति और संतोष प्राप्त करनेका साधन मानते थे। एक बार किसी दूर देश के भक्त उनके दर्शन के लिए पहुंचे। उन्होंने उनसे स्वर्ग प्राप्ति का सरल साधन जानना चाहा । ईसा ने कहा, स्वर्ग अर्थात् ईश्वर का राज्य हर मानव के अंदर है । उसकी बाहर खोज करना समय गँवाने के समान है । जो व्यक्ति सबसे प्रेम करता है और अपने पड़ोसी के दुःख से दुःखी और सुख से सुखी होता है, वह स्वर्ग में ही तो है ।

अपनी आय का कुछ अंश भूखों को भोजन और वस्त्रहीनों को वस्त्र देने का नियम बना लो, तुम्हें लगेगा कि तुम सच्चे स्वर्ग में रह रहे हो । उन्होंने कहा, जब तक तुम एक बालक की भाँति अबोध तथा निश्छल नहीं हो जाते, तब तक ईश्वर के राज्य (स्वर्ग) में तुम्हारा प्रवेश वर्जित रहेगा।

शैलोपदेश में ईसा मसीह ने कहा, धन्य वे हैं, जो धर्म के लिए भूख -प्यास सहन करते हैं । जो व्यक्ति धर्म और सदाचार पर अटल रहता है, प्रत्येक प्राणी से प्रेम करता है, बिना किसी लालच के दान देने को तत्पर रहता है, उसके लिए ईश्वर स्वयं अपने राज्य का दरवाजा खोलते हैं ।

अहिंसा को सर्वोपरि बताते हुए उन्होंने उपदेश में कहा , किसी की भी हत्या करना अधर्म है । जो कोई हत्या करेगा, उसे दैवीय न्याय का कोपभाजन होना पड़ेगा । मैं तो यह कहता हूँ कि जो कोई अपने भाई या पड़ोसी पर क्रोध करेगा, उसे भी दैवीय प्रकोप सहना पड़ेगा ।


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