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राजा की अनूठी दृढ़ता

राजा की अनूठी दृढ़ता

आमेर ( जयपुर ) के क्षत्रिय वंश में जन्मे टोडरमल को शेखावटी का राजा मनोनीत किया गया । वे परम धर्मात्मा थे। धीणावता की ताँबे की खान से होने वाली आय टोडरमल धार्मिक कार्यों पर खर्च कर देते थे । इससे चिढ़कर खान की देखभाल करने वाले एक अधिकारी ने दिल्ली सल्तनत से उनकी शिकायत कर दी । दिल्ली सल्तनत ने उन्हें रोका, तो राजा टोडरमल ने उसके आदेश के आगे झुकने से इनकार कर दिया । आखिरकार उदयपुर के महाराणा जगत सिंह ने उन्हें अपने राज्य में ससम्मान शरण दी ।

उदयपुर के महाराणा की आमेर के राजा से तनातनी थी । वह आमेर के राजा को नीचा दिखाने के अवसर ढूँढ़ते रहते थे। एक दिन राणा जगत सिंह को अजीब सनक सूझी । उन्होंने राज्य के जंगल में आमेर के किले की नकली आकृति बनवाई, ताकि उसे ध्वस्त कर आमेर के राजा को अपमानित कर सके । राजा टोडरमल ने महाराणा को समझाया कि इस मनोवृत्ति से शत्रुता पैदा होगी । महाराणा न माने, तो टोडरमल ने संकल्प लिया कि वे अपने पूर्वजों के आमेर का अपमान नहीं होने देंगे । वे तलवार लेकर उस कृत्रिम किले की रक्षा के लिए जा पहुँचे। महाराणा जब उस किले को ध्वंस करने पहुंचे, तो टोडरमल को उसकी रक्षा करते देख नतमस्तक होकर बोले, अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए आप जैसे वीरों की ही आवश्यकता है ।

आगे चलकर राजा टोडरमल ने अपने पराक्रम से राजस्थान के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जोड़ा । 

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