Ad Code

कर्मफल भोगना पड़ता है

  

कर्मफल भोगना पड़ता है

अपने पुत्र श्रीराम को राज्याभिषेक की जगह चौदह वर्ष के वनवास की आज्ञा देने की विवशता से दुःखी दशरथजी अत्यंत पीड़ा का अनुभव कर रहे थे। हर क्षण उनके मुख से राम - राम निकल रहा था ।

___ कौशल्याजी के पास बैठे - बैठे वे बोले, मुझे राम के दर्शन कराओ। उन्होंने आगे कहा, जिसका अगले दिन राज्याभिषेक हो , उसे वनवास की आज्ञा मिले, फिर भी उसके चेहरे पर आक्रोश नहीं भला ऐसा आज्ञाकारी पुत्र राम के अलावा कौन हो सकता है ? कुछ क्षण रुककर उन्होंने कहा, भरत का राज्याभिषेक करने के बाद उससे कहना कि रघुवंश की संस्कृति , भ्रातृभाव न टूटने पाए । राम रघुवंश के मणि हैं । वनवास पूरा करने के बाद उस मणि को राज सिंहासन पर आसीन करने में ही हमारे कुल का गौरव है । अचानक उन्होंने कहा , तीनों वनवास से वापस आ जाएँ, तो कहना कि तुम्हारे पिता ने तुम्हारा नाम लेते- लेते प्राण त्याग दिए । फिर उन्होंने कौशल्या से कहा, क्या सामने की दीवार में कुछ दिखाई देता है?

कौशल्या, सुमित्रा और सुमंत ने कहा, हमें तो केवल दीवार दिखाई दे रही है । दशरथ ने कहा, श्रवण कुमार के गरीब माँ - बाप ने मुझे शाप दिया था कि जिस प्रकार हम पुत्र वियोग का दुःख भोग रहे हैं , उसी प्रकार तुम्हारी मौत पुत्र वियोग में होगी । चार पुत्रों में से कोई भी तुम्हारे मुँह में पानी डालने वाला न होगा । कौशल्या! कर्म भोगे बिना कोई चारा नहीं ...। कहते - कहते दशरथजी की आँखों से आँसू बहने लगे ।


Post a Comment

0 Comments

Ad Code