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एकता का सूत्र है सहनशीलता

 

एकता का सूत्र है सहनशीलता

    जापान के राजा यामोता धर्मात्मा तथा उदार हृदय के शासक थे। वे प्रजाजनों के सुख - दुःख में हमेशा सहभागी बनने का प्रयास करते थे। उनका मंत्री ओचोआन भी परम संयमी व संतोषी था । एक बार राजा यामोता को पता चला कि मंत्री के दादा के सभी भाइयों की संतानें एक साथ प्रेमपूर्वक रहती हैं । इन दिनों मंत्री परिवार के मुखिया का दायित्व निभा रहे हैं । इस विशाल परिवार में कभी किसी बात को लेकर विवाद नहीं होता । राजा इस वयोवृद्ध मंत्री का बहुत आदर करते थे। वे मंत्री की सरलता, सात्त्विकता व कर्तव्यपरायणता से प्रभावित थे । एक दिन उन्होंने सोचा, इस आदर्श परिवार की एकता व सौहार्द्र का रहस्य जानना चाहिए । वे अचानक मंत्री के घर जा पहुँचे। मंत्री ने राजा का विनम्रता से स्वागत किया । अपने भाइयों , पुत्र - पौत्रों, बहनों- बेटियों व बहुओं से उनका परिचय कराया । राजा ने स्वयं देखा कि परिवार के कई सौ सदस्यों में अनूठा प्रेम झलक रहा है । सभी के चेहरों पर संतोष था । राजा ने विनम्रता से पूछा, मैं यह जानना चाहता हूँ कि इतने विशाल परिवार में ऐसा अनूठा प्रेम - सौहार्द्र बनाए रखने का आपका मूल मंत्र क्या है ? मंत्री ने कहा, राजन् , संतोष और सहनशीलता ऐसे अनूठे सूत्र हैं , जो विशाल परिवार को एक साथ रखने में सामर्थ होते हैं । धर्म ने हमें सादगी , सरलता और संतोष का जीवन जीने की प्रेरणा दी है । सहनशीलता राग- द्वेष व कलह को पास नहीं फटकने देती । मंत्री के इन गुणों के समक्ष राजा नतमस्तक हो उठे । 

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