पाप की कमाई
वड़ोदरा ( गुजरात) के शेखड़ी गाँव में संत रवि साहेब एक आश्रम में रहते थे ।
वे ग्रामीण बच्चों को पढ़ाते , रोगियों का इलाज जड़ी- बूटियों से करते , फिर जो समय बचता , उसमें भगवान् की भक्ति किया करते थे। दूर- दूर से भक्तजन उनके
दर्शन- सत्संग के लिए आया करते थे। उस क्षेत्र में कबाजी डाकू का बहुत आतंक था ।
एक दिन उसके हृदय में संत रवि साहेब के दर्शन की लालसा जगी । वह साधारण वेश में
आश्रम पहुँचा और संतजी के मुख से भगवत भजन सुनकर आह्लादित हो उठा । संत को बीमार
लोगों की सेवा करते देख उनके प्रति उसकी श्रद्धा और बढ़ गई। उसने निर्णय लिया कि
वह संतजी का सत्संग किया करेगा ।
एक दिन कुछ संत कीर्तन करते हुए शेखड़ी की ओर जा रहे थे। डाकू कबाजी ने
उन्हें देखा, तो समझ गया
कि सभी संत आश्रम जा रहे हैं । उसने सोचा कि इन संतों की सेवा के लिए भोजन और धन
लेकर जाना चाहिए । वह मिठाई और धन लेकर आश्रम पहुँचा । संत ने पूछा, तू कौन है? कबाजी ने कहा, मैं कबाजी हूँ । संतजी ने कहा, कबाजी, तू अपराध कर्म से और निर्दोषों की हत्याकर धन इकट्ठा करता है । हम तेरे इस
अपवित्र धन से बने भोजन को स्पर्श भी नहीं करेंगे । पापपूर्ण कमाई के भोजन से हमार
बुद्धि भ्रष्ट हो जाएगी । संत के शब्दों ने ऐसा जादू किया कि कबाजी ने तलवार उनके
चरणों में डाल दी और बोला, आज से मैं लूटपाट नहीं करूँगा । संत महात्माओं की सेवा और भजन में जीवन
बिताऊँगा । संतजी ने उसे हृदय से लगा लिया ।
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