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संयमी ही अजेय है

 

संयमी ही अजेय है

भगवान् श्रीराम ने राक्षसराज रावण, उसके पुत्रों और सेना का समूल संहार कर दिया । विजय के बाद रावण के सदाचारी भक्त हृदय भाई विभीषण ने श्रीराम से कहा, रावण अपने अहंकार के सामने किसी को कुछ नहीं समझता था । आपने उस जैसे शक्तिशाली को पराजित कर दुर्लभ विजय प्राप्त की है ।

__ भगवान् श्रीराम ने इस विजय को साधारण बताते हुए कहा, हे सखे विभीषण, रावण पर विजय पाना कोई बड़ी विजय नहीं है । वास्तव में असली विजेता वह है, जो इस संसार रूपी शत्रु को जीत सके । विजय तो उन्हीं की होती है, जो धर्ममय रथ पर सवार होकर दुर्गुणों और दुर्व्यसनों पर विजय प्राप्त करते हैं । संसार के क्लेशों पर विजय प्राप्त करने वाले ही सच्चे विजेता माने जाते हैं । रावण अपने दुर्गुणों के कारण पराजित हुआ । दुराचारी को देर - सवेर नष्ट होना ही पड़ता है ।

भगवान् श्रीराम पूर्व में भी विभीषण से कहा करते थे, केवल काठ के रथ पर आरूढ़ होकर अस्त्र - शस्त्रों के बल पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती । असली विजय के लिए धर्ममय रथ चाहिए । शौर्य और धीरज इस धर्ममय रथ के पहिये होते हैं । विजय के लिए सबसे बड़ी शक्ति सत्य की चाहिए । शूरवीरता सत्याचरण से ही प्राप्त होती है । सत्य, दया, संयम, विवेक ऐसे सद्गुण हैं, जिन्हें धारण करनेवाला सदैव अजेय रहा है । उसे कोई नहीं जीत सका है ।

भगवान् के मुख से धर्म और सत्याचरण का महत्त्व सुनकर विभीषण कृतकृत्य हो उठे ।

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