भगवद्भक्त के लक्षण
महर्षि मार्कंडेय ने एक बार भगवान् विष्णु से प्रश्न किया, भगवन्, भगवद्भक्त के लक्षण क्या हैं ? वे कौन- कौन से कर्म हैं , जिन्हें अपनाने से कोई व्यक्ति भगवान् का प्रिय बन जाता है? भगवान् ने उत्तर में कहा, महर्षि, जो संपूर्ण जीवों के हितैषी हैं, जो दूसरों के दोष नहीं देखते, जो संयमी हैं, जो इंद्रियों को वश में रखने वाले और शांत स्वभाव के हैं, वे श्रेष्ठ भगवद्भक्त हैं । इसी प्रकार, जो मन, वाणी तथा क्रिया द्वारा दूसरों को कभी पीड़ा नहीं पहुँचाते, जिनकी बुद्धि सात्त्विक है और जो हमेशा
सद्कर्मों और सत्संग में लगे रहते हैं, वे उत्तम भक्त हैं ।
कुछ क्षण मौन रहने के बाद भगवान् ने विस्तार से बताया, जो व्यक्ति अपने माता- पिता में भगवान्
विश्वनाथ के दर्शन करे, उन्हें गंगा की तरह पावन मानकर उनकी नित्य सेवा करे, जो दूसरों की उन्नति देखकर प्रसन्न हो, जो दूसरों की तृप्ति के लिए कुआँ, बावड़ी, तालाब आदि खुदवाए, वह श्रेष्ठ भगवद्भक्त है ।
भगवान् ने महर्षि से आगे कहा, अतिथियों का सत्कार करनेवाला, जरूरतमंदों को जलदान और अन्नदान करनेवाला, शुद्ध हृदय से श्री हरिनाम का जप करनेवाला
आदर्श गृहस्थ भी मेरा प्रिय भक्त है । इसलिए हे मार्कंडेय, जो व्यक्ति इस प्रकार की आदर्श जीवनचर्या का
पालन करता है, वह सदा
सपरिवार सुखी और संतुष्ट रहता है । महर्षि मार्कंडेय भगवान् के वचन सुनकर गद्गद हो
उठे ।
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