Ad Code

संशय निवारण

 

संशय निवारण

भाष्म पितामह बाणों की शैया पर लेटे इच्छामृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे। युधिष्ठिर अचानक उनके दर्शन करने आ पहुँचे। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर भीष्म पितामह को प्रणाम किया । पितामह की यह अवस्था देखकर उनकी आँखों से अश्रुधारा फूट पड़ी । भीष्म समझ गए कि उनकी इस दशा के लिए युधिष्ठिर स्वयं को जिम्मेदार समझकर दुःखी हैं । उन्होंने युधिष्ठिर की आत्मग्लानि दूर करने के उद्देश्य से कहा, युधिष्ठिर , सतयुग में राजा देय का राज्य था । वह कुसंग और अहंकार के कारण अपना राजधर्म भूलकर पथभ्रष्ट हो गया । धर्म एवं न्याय का मार्ग छोड़कर उसने अधर्म का रास्ता अपना लिया । देय प्रजा पर अत्याचार करने लगा । चारों ओर हाहाकार मच गया, तो ऋषियों को तपस्या छोड़कर उसका वध करना पड़ा । देय के बेटे पृथु को राजगद्दी संभालने को राजी किया गया । ऋषियों ने उसे राजधर्म की शिक्षा दी और बताया कि अन्याय का समर्थन कदापि न करना । यदि किसी के साथ सगा- संबंधी भी अन्याय करे, तो उसे दंडित करना राजा का परम धर्म है । देवताओं ने भी राजा पृथु को आश्वासन दिया कि अपराधियों व अन्यायियों को दंड देने में पाप नहीं लगता ।

भीष्म पितामह ने फिर कहा, वत्स, तुम - पांडवों ने धर्ममार्ग से विचलित हुए बिना कौरवों से युद्ध किया । यह धर्मयुद्ध था । अपने वचन की रक्षा के लिए मुझे कौरवों का साथ देना पड़ा । तुमने जो वध किए हैं, वे सर्वथा धर्मानुसार थे, इसलिए मन से हीन भावना निकाल दो ।

Post a Comment

0 Comments

Ad Code