प्रेम ही जीवन का
लक्ष्य है
चैतन्य महाप्रभु ने अपना समस्त जीवन मनुष्य को दुर्व्यसनों से मुक्त करके
उन्हें प्रेम व भगवद्भक्ति में लगाने के पुनीत कार्य के लिए समर्पित किया था । वे
अपने भक्तों को उपदेश देते हुए कहा करते थे, न्याय और धर्मपूर्वक अर्थ का उपार्जन कर अपने परिवार का पालन
-पोषण करते हुए भगवन्नाम संकीर्तन के बल पर मानव सहज ही में अपने लोक - परलोक को
सफल बना सकता है ।
___ एक बार किसी जिज्ञासु भक्त ने महाप्रभु से प्रश्न किया कि भगवान्
का साक्षात्कार कैसे किया जाए? इस पर उनका कहना था, हमारा लक्ष्य भगवान् की प्राप्ति नहीं है । भगवान् का साक्षात्कार तो रावण, कंस और अनेक दैत्यों को भी हुआ था । रावण-कंस
ने तो भगवान् श्रीराम व श्रीकृष्ण से आमने- सामने युद्ध भी किया था । चाणूर
मुष्टिक नामक मल्लों ने भगवान् से अखाड़े में कुश्ती लड़ते समय उनके अंग से अंग
मिलाया था । हमारा लक्ष्य भगवान् की प्राप्ति नहीं, बल्कि उनके दिव्य प्रेम की प्राप्ति होनी चाहिए । वे कहा करते
थे, वैष्णवों और
सद्पुरुषों की सेवा भगवान् की ही सेवा के समान है । मायाग्रस्त जीवों को भगवद-
उन्मुख करना ही उनके प्रति सच्ची दया है । दुर्व्यसनियों की सेवा नहीं, उन पर दया करनी चाहिए ।
__ महाप्रभु ने अपने निश्छल प्रेम के माध्यम से असंख्य कुमार्गियों
को दुर्व्यसनों के पाप से मुक्त करके उन्हें भगवान् का अनन्य प्रेमी बनाया । वे
कलियुग में भगवन्नाम संकीर्तन को कल्याण का सबसे सरल साधन बताया करते थे ।
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