दान की महिमा
राजा भोज धर्मशास्त्रों के अनुसार जीवन बिताने का प्रयास करते थे। वे इतने
बड़े दानी थे कि कोई भी उनके घर से कभी खाली हाथ नहीं लौटता था । राज्य का दीवान
राजा की इस प्रवृत्ति से चिंता में पड़ गया । उसे लगा कि यदि राजा इसी प्रकार दान
देते रहे , तो एक दिन
राज्य का खजाना खाली हो जाएगा । दीवान ने एक दिन राजा भोज के भोजन कक्ष की दीवार
पर सूक्ति ‘ आपदर्थे धनं
रक्षेत् अर्थात् आपातकाल के लिए धन को संभालकर रखना चाहिए -लिख दी । राजा भोजन करने आए, तो दीवार पर लिखी सूक्ति पढ़कर समझ गए कि
दीवान ने सीख देने के लिए इसे लिखा है । उन्होंने उसके नीचेलिख दिया , श्रीमतां कुत आपदा । अर्थात् सक्षम लोगों पर
आपदा कहाँ आती है ।
अगले दिन दीवान ने राजा की लिखी सूक्ति पढ़ी । उन्होंने नीचेलिख दिया, देवात क्वचित समायाति अर्थात् यदि दैवयोग से
विपत्ति आ जाए तो... । राजा ने जब यह सूक्ति पढ़ी , तो उन्होंने उसके बीच लिखा, संचितो अपि विनश्यति अर्थात् ऐसा भी समय आता है, जब संचित संपत्ति नष्ट हो जाती है । राजा ने
दीवान से मिलने पर कहा, तुम्हारी राज्य के हित में चिंता अपनी जगह ठीक है, किंतु मैं धर्मशास्त्रों के अध्ययन से इस
निर्णय पर पहुँचा हूँ कि लक्ष्मी को चंचला कहा गया है । उस धन- संपत्ति की ही
सार्थकता है, जिसका उपयोग
गरीबों- असहायों की सेवा के लिए किया जाता है । इसलिए भविष्य की चिंता छोड़कर इसका
सद्कर्मों में निरंतर उपयोग करना चाहिए ।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know