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पल -पल कीमती है

 

पल -पल कीमती है

सभी संप्रदायों के धर्मग्रंथों में मानव जीवन को दुर्लभ और अनूठा बताया गया है । धर्माचार्यों, संत - महात्माओं, दार्शनिक और विचारकों ने अपने उपदेशों -संदेशों में हमेशा यही कहा है कि मनुष्य की आयु सीमित होती है । अतः जीवन के एक - एक पल का सदुपयोग करने में ही मनुष्य जीवन की सार्थकता है । राजा विक्रमादित्य को संस्कृत का यह श्लोक अत्यंत प्रिय था प्रत्यर्ह प्रत्यवेक्षत नरच्चरितमात्मनः । किन्नु म पशुभितुलयं किन्नु सत्पुरुषैरिव । अर्थात् , मेरे इस बहुमूल्य जीवन का जो दिन व्यतीत हो रहा है, वह पुनः लौटकर कभी नहीं आएगा । अतः प्रतिदिन हमें यह चिंतन करना चाहिए कि आज का जो दिन व्यतीत हुआ, वह पशुवत गुजरा अथवा सत्पुरुष की तरह । राजा विक्रमादित्य प्रतिदिन सवेरे शैया त्यागते ही भगवान् से प्रार्थना किया करते थे कि उनका वह दिन पूर्णरूपेण कर्तव्यपालन करने में , लोगों के हित चिंतन और भगवान् के पावन स्मरण में व्यतीत हो । उपरोक्त श्लोक एक दीप के समान हमेशा उनका मार्गदर्शन करता रहता था ।

आदि शंकराचार्य ने भी इसी तरह कहा था, अरे मूढ़ मानव, न जाने कितने पुण्यों से पशु की जगह यह मानव योनि प्राप्त हुई है । यदि तूने इसे केवल भोग -विलास और ऐश्वर्य में बिता दिया, तो अंत में सिर पीट - पीटकर रोने के सिवा तेरे हाथ और कुछ नहीं आएगा । मनुष्य जीवन का एक - एक क्षण कीमती है । अतः उसे सद्गुणों को ग्रहण करने, भगवान् की भक्ति करने और सेवा- परोपकार जैसे सद्कर्मों में व्यतीत करने में ही भलाई है । 


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