कुसंग का दुष्परिणाम
प्राचीन काल में एक असुर परिवार में जन्मा बलासुर कुसंग में पड़कर
दुष्कर्मों में प्रवृत्त रहने लगा । वह दिन में भी मद्यपान करता, जुआ खेलता और चोरी करता था । संस्कारी असुर
उसे इन दुष्कर्मों से बचने के सुझाव देते, तो वह उन पर दोषारोपण करने लगता । अपने दुराचरण के कारण वह
असुरों में भी अप्रिय हो गया ।
एक बार असुरों के पुरोहित ने उसे समझाया, नशा, जुआ और चोरी ऐसे दुष्कर्म हैं, जो सर्वनाश कर डालते हैं । निंदा व द्वेष से अपने संबंधी भी
शत्रु बन जाते हैं । तुम कुसंग त्यागकर संस्कारी लोगों का संग करो । बलासुर ने
क्रोधित होकर पुरोहित को अपमानित कर भगा दिया । वह हर क्षण सद्पुरुषों को कष्ट
पहुँचाने की नई- नई विधि खोजता रहता था ।
एक दिन उसे लगा कि यज्ञादि सत्कर्मों में गाय के दूध, घी, दही आदि काम आते हैं । देवता गायों का पूजन करते हैं । यदि उनकी
गायें चुरा ली जाएँ, तो वे
शक्तिहीन हो जाएँगे । उसने अपने साथी दैत्यों के साथ मिलकर देवलोक की सभी गायें
चुरा लीं और उन्हें एक गुफा में छिपा दिया । जब इंद्र को बलासुर के इस कुकृत्य का
पता चला, तो उन्होंने
देवगुरु बृहस्पतिजी से आशीर्वाद प्राप्त कर देवसेना को भेजा और गायों को मुक्त करा
लिया ।
बृहस्पति ने इंद्र को परामर्श दिया कि देवता ही नहीं, असुर भी बलासुर के अत्याचारों से त्रस्त हो
चुके हैं । अतः उसके पापों का फलमिलना चाहिए । इंद्र ने अपने वज्र से बलासुर का
अंत कर डाला ।
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