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पाप नहीं लगेगा

 

पाप नहीं लगेगा

त्रिशिरस ऋषि पुत्र थे, लेकिन असुरों के कुसंग में पड़कर वे दुष्कर्मों में रत रहने लगे । वे एक ओर असुरों के साथ सुरापान करते, दूसरी तरफ देवताओं को यज्ञ से मिलने वाला भोजन ( हवि ) हड़प जाते थे। हवि के अभाव में देवता भूखे रह जाते । वे दुर्बल होने लगे । देवराज इंद्र भाँप गए कि त्रिशिरस के दोहरे आचरण के कारण देवताओं को हवि नहीं मिल रहा है । देवराज ने निश्चय किया कि वे इस पथभ्रष्ट ब्राह्मण कुमार का वध करेंगे ।

एक दिन इद्र इंद्र त्रिशिरस के आश्रम जा पहुंचे। उन्होंने कहा , तुम कुसंग के कारण ब्राह्मण की जगह असुर हो गए हो । तुम्हारे कर्म धर्म के विपरीत हैं । तुम्हारे पापों का घड़ा भर चुका है । यह कहकर उन्होंने त्रिशिरस का सिर काट डाला । त्रिशिरस की हत्या होते ही उसके साथ के ब्राह्मणों ने कहा, इंद्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा है । उन्हें इस पाप का प्रायश्चित्त करना होगा ।

कुछ भ्रमित ऋषियों ने भी इंद्र को पाप का भागी घोषित कर डाला । अब इंद्र ने वृक्षों, पृथ्वी और दैवी शक्ति का आह्वान किया । देवताओं के प्रकट होने पर इंद्र ने पूछा, क्या अधर्म में लगे रहने वाले त्रिशिरस की हत्या का मुझे पाप लगेगा ?

वृक्ष देवता ने उत्तर दिया, धर्म व मर्यादा का हनन करनेवाला कोई व्यक्ति ऋषि या ब्राह्मण नहीं होता, वह पापी होता है ।

पृथ्वी ने कहा, त्रिशिरस के क्रूर कर्मों के कारण जो पाप हुआ है, उसकी मैं साक्षी हूँ । दैवी शक्ति ने कहा, वह देवताओं से छल करता था । उसकी हत्या पुण्य दायक है ।


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