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अभिलाषा

 

 अभिलाषा

महाराज सगर के वंशज राजा खट्वांग परम धार्मिक और विरक्त स्वभाव के थे। उन्होंने धर्मशास्त्रों का गहन अध्ययन किया था । एक मुनि ने उन्हें राजधर्म का उपदेश देते हुए बताया था कि राजा को प्रजा का पालन भगवान् की भक्ति की तरह करना चाहिए । राज्य में कोई अभावग्रस्त न रहे और किसी को सताया न जाए, इसका पूरी तरह ध्यान रखना चाहिए । शरणागत की रक्षा के लिए प्राणपण से तत्पर रहना राजा का परम धर्म है । राजा खट्वांग इन सभी उपदेशों का गंभीरता से पालन करते थे ।

एक बार देवता असुरों से पराजित होकर उनकी शरण में पहुंचे। उन्होंने अपनी सेना सहित असुरों पर आक्रमण कर उनका उन्मूलन कर दिया । देवताओं ने कहा, आपने समय- समय पर हमारी सहायता कर हमें कृतार्थ किया है । आप इच्छानुसार वरदान माँगो ।

राजा ने कहा, मैंने तमाम इच्छाएँ भगवान् की भक्ति के कार्य में समर्पित कर दी हैं । मेरी एकमात्र इच्छा यही है कि अंतिम श्वास तक अपने धर्म का पालन करता हुआ भगवान् के ध्यान में ही लगा रहूँ । उन्होंने देवताओं से पूछा, कृपा कर यह बताइए कि मेरी आयु कितनी शेष है ?

देवताओं ने बताया कि दो घड़ी आयु ही मात्र शेष है । चाहें तो हम आपकी आयु सीमा बढ़ा सकते हैं । राजा खट्वांग ने भगवान् का ध्यान कर प्रार्थना की, प्रभु , मैंने सारा जीवन आपकी भक्ति में बिताया, प्रजा का हित साधन किया । इन अंतिम घड़ियों में मुझे शरण में ले लो । देखते - ही - देखते उनका शरीर शांत हो गया।


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