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मृदु वचन सर्वोच्च - तप है

 

मृदु वचन सर्वोच्च - तप है

कर्नाटक में जन्मे संत बसवेश्वर भगवान् शिव के अनन्य भक्त थे। अपने आराध्य देव शिव को वे कुंडल संगमदेव संबोधित कर उनकी आराधना किया करते थे । एक बार वह भ्रमण करते हुए एक धनाढ्य भक्त के यहाँ पहुँचे। वह भक्त उनके प्रति अनन्य श्रद्धा भावना रखता था । उन्होंने देखा कि भीषण गरमी में जब कुछ व्यक्ति उससे मिलने पहुंचे, तो उसने न उन्हें बैठने को कहा और न ही उठकर उनका स्वागत किया । जब उस भक्त ने हाथ जोड़कर संतजी से कहा, कल्याण का साधन बताने की कृपा करें, तो संतजी ने कहा, जो अपने द्वार पर आए अतिथि से विनयवत व्यवहार नहीं करता, उससे बैठने की प्रार्थना नहीं करता, उससे जल तक ग्रहण करने को नहीं कहता, उसका कल्याण नहीं हो सकता । चंद शब्दों में ही उन्होंने अतिथि सेवा की शिक्षा उसे दे दी ।

संत बसवेश्वरजी ने भक्तों को उपदेश देते हुए कहा, मृदु वचन ही सर्वोच्च जप और तप हैं । भगवान् कुंडल संगमदेव को कोमल व निश्छल हृदय से ही वश में किया जा सकता है । दुर्गुणों को त्यागने की प्रेरणा देते हुए उन्होंने कहा, चोरी, हिंसा, क्रोध, झूठ तथा लोभ, ये पाँच महापाप हृदय को अपवित्र करते हैं । दया, करुणा भावना, विनयशीलता, सत्य तथा भगवत् प्रेम - ये पाँच सद्गुण धारण करनेवाला व्यक्ति सहज ही में लोग व परलोक को कल्याणकारी बना लेता है ।

संत बसवेश्वरजी ने कन्नड़ भाषा में हजारों पदों की रचना की । ये वचन बसकोपनिषद् नाम से जाने जाते हैं ।


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