भाग्य सदा जागृत
रहता है
एक बार माता पार्वती ने भगवान् शिव से प्रश्न किया, धर्म का फल किसे प्राप्त होता है ? शिवजी ने उत्तर दिया, जो हिंसा से सर्वथा विरत रहकर संपूर्ण
प्राणियों से प्रेम करता है, उन्हें अभयदान देता है, सबसे सरलता का व्यवहार करता है, जो क्षमाशील और चरित्रवान है, उसे ही धर्म का फल प्राप्त होता है ।
स्वर्ग के अधिकारी कौन होते हैं ? इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए महादेव ने कहा, जो दूसरों के धन से मोह नहीं रखते, पराई स्त्री से सदा दूर रहते हैं, ईमानदारी और परिश्रम से अर्जित धन से प्राप्त
खाद्य पदार्थों का उपभोग करते हैं, कभी असत्य नहीं बोलते, किसी की चुगली-निंदा नहीं करते, सौम्यवाणी बोलते हैं, वही स्वर्ग के अधिकारी होते हैं ।
भगवान् शंकर ने माता पार्वती को उपदेश दिया, जीवन में सदा शुभ कार्य ही करना चाहिए । शुभ कार्यों से शुभ
प्रारब्ध बनता है और शुभ प्रारब्ध से शुभ कर्म बनते हैं । शुभ कर्मों का फल शुभ
होता है । मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही प्रारब्ध बनता है । प्रारब्ध अत्यंत बलवान होता है ।
उसी के अनुसार जीव भोग करता है । प्राणी भले ही प्रमाद में पड़कर सो जाए, परंतु उसका प्रारब्ध सदा जागता रहता है ।
लोभ, लालच और
तृष्णा को समस्त दुःखों का कारण बताते हुए देवादिदेव महादेव ने कहा, तृष्णा के समान कोई दु: ख नहीं है और त्याग
एवं संतोष के बराबर कोई दूसरा सुख नहीं है ।
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