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जागो जागो नींद से जागो

English version is at the end🙏
🙏 *आज का वैदिक भजन* 🙏 1206 
*ओ३म् अ꣡बो꣢ध्य꣣ग्नि꣡र्ज्म उदे꣢꣯ति꣣ सू꣢र्यो꣣ व्यु꣢३꣱षा꣢श्च꣣न्द्रा꣢ म꣣꣬ह्या꣢꣯वो अ꣣र्चि꣡षा꣢ ।*
*आ꣡यु꣢क्षाताम꣣श्वि꣢ना꣣ या꣡त꣢वे꣣ र꣢थं꣣ प्रा꣡सा꣢वीद्दे꣣वः꣡ स꣢वि꣣ता꣢꣫ जग꣣त्पृ꣡थ꣢क् ॥१७५८॥*
सामवेद 1758

जागो जागो नींद से जागो  
क्षितिज में सूर्य चमका
उषा ने कर दी विच्छिन्न
घोर तमस की दशा
प्राणी जगत् में छाया 
समा भी तो चहल-पहल का
जागो जागो नींद से जागो  
क्षितिज में सूर्य चमका

सुरभित तरुवर उपवन 
लगे झूमने महक भरे 
आल्हादक चारु प्रभात 
सोये जन जाग पड़े
देह-गतिक रथ चला है 
युगल-अश्व प्राणायाम का 
प्राणी जगत् में छाया 
समा भी तो चहल-पहल का
जागो जागो नींद से जागो  
क्षितिज में सूर्य चमका

योगांगों का कर अभ्यास 
आलस को त्वरित तज दें
संध्या और यज्ञ को कर 
ओ३म् नाम का जाप करके 
पशुओं में ना यह क्षमता 
सत्कर्म मानव-साधना 
प्राणी जगत् में छाया 
समा भी तो चहल-पहल का
जागो जागो नींद से जागो  
क्षितिज में सूर्य चमका

कवियों का है काव्य-कथन 
है श्रेष्ठ साहित्य संगीत 
जो इससे रहा विहीन 
मानव पशु बिना पूंछ सींग
साहित्य-संगीत तेरा 
भाग्य है आनन्द का 
प्राणी जगत् में छाया 
समा भी तो चहल-पहल का
जागो जागो नींद से जागो  
क्षितिज में सूर्य चमका

यह प्राण और अपान 
पशु-पक्षी भी कर लेते 
पर उनकी दिशा सीमित 
उत्तरोत्तर हम बढ़ते 
अश्वी-युगल मानवों को 
देते हैं सोमरस सुधा
प्राणी जगत् में छाया 
समा भी दो चहल-पहल का
जागो जागो नींद से जागो  
क्षितिज में सूर्य चमका

ऐ अश्वी-युगल ! चालक 
उत्तम हो तेरा सौभाग्य 
सही कर अपना उपयोग 
उन्नति का है साध्य 
जागरूक उद्बुद्ध बन तू 
अश्वि -रथ को ठीक चला 
प्राणी जगत् में छाया 
समा भी तो चहल-पहल का
जागो जागो नींद से जागो  
क्षितिज में सूर्य चमका
उषा ने कर दी विच्छिन्न
घोर तमस की दशा
प्राणी जगत् में छाया 
समा भी तो चहल-पहल का
जागो जागो नींद से जागो  
क्षितिज में सूर्य चमका

*रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :--*  २७.३.२००४ ६.२५ सायं, नवीनीकरण ३.१२.२०२१  ११.३५प्रात:

*राग :- पहाड़ी*
गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर, ताल कहरवा ८ मात्रा

*शीर्षक :- प्राण-अपान का रथ* 🎧७८८वां वैदिक भजन🌹🙏🏿
*तर्ज :- *
00169-769

क्षितिज = वह स्थान जहां पृथ्वी आकाश मिलते दिखाई देते हैं।
विच्छिन्न = अलग किया हुआ
सुरभित = सुगन्धित
देह-गतिक-रथ = शरीर का वेगवान रथ
युगल-अश्व = प्राण के दो बल (प्राण,अपान)
विहीन = अलग, जुदा
उद्बुद्ध = जागृत, ज्ञान प्राप्त

*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇*
प्राण-अपान का रथ
देखो, अग्नि प्रबुद्ध हुई है। क्षितिज  से सूर्य उदित हो रहा है। आल्हादक महिमामयी उषा ने ज्योति से तमस को विच्छिन्न कर दिया है। काली निशा विदीर्ण हो चुकी है। सब प्राणी मोहमयी निद्रा का परित्याग कर जाग गए हैं। सविता देव ने जगत को प्रथक-प्रथक अपने-अपने कार्यों में प्रेरित कर दिया है। प्रकृति में चहल-पहल दिखाई देने लगी है। चिड़ियां चहकने लगीं हैं। पशु घास चरने लगे हैं। वनस्पति- जगत् भी सप्राण हो उठा है। तरु लताओं की पत्तियां थिरक रही हैं। पुष्प सुगन्ध बखेर रहे हैं। उपवन सौरभ से महक रहा है।
हे मानव! ऐसे आल्हादमय वातावरण में भी क्या तू सोया ही पड़ा रहेगा? उठ, जाग,अपने अन्दर की तामसिकता की चादर को उतार फेंक। प्राणायाम-रूप अश्वी-युगल तेरे शरीर रथ को प्रयाण के लिए नियुक्त करें। तू सब कर्मों में प्रवृत्त हो। संध्या-वन्दन कर, अग्निहोत्र की अग्नि प्रज्वलित कर, योगांगों का अभ्यास कर, प्राणायाम कर, योगासन कर, समाधि में बैठ, यज्ञ कर, अध्ययन कर, दान कर। अन्य जीव धारियों के शरीर रथ में और तुझ मानव के शरीर रथ में बहुत अन्तर है। कवि ने कहा है कि जो मानव, संगीत एवं कला से विहीन है, वह पुच्छ- विषाण- हीन साक्षात् पशु है। स्वाभाविक रूप से तो प्राण अपान रूप अश्वी-युगल पशु-पक्षी आदियों के शरीर रथ को भी प्रयाण के लिए प्रवृत्त करते हैं। पर मानव को अपनी इच्छा शक्ति का प्रयोग कर उन अश्वी- युगल द्वारा पने रथ को विशेष दिशा में आगे बढ़ाना है। हे मानव! ये अश्वी-युगल- रूप चालक तुझे बड़े भाग्य से मिले हैं, इनका तो सदुपयोग कर, इन्हें तू प्रेरित कर। यह तेरे रथ को वायुयान के चालकों के समान उन्नति की ओर उड़ाए चले जाएंगे। तू उदासीन मत हो, उपेक्षावृत्ति मत धारण कर, बुद्बुद्ध हो, जागरूक बन और प्राण अपान रूप चालकों से रथ को सही दिशा में प्रवृत्त करा।
🕉💥ईश भक्ति भजन
भगवान् ग्रुप द्वारा🙏🌻
🕉वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं❗🙏

🙏 *Today's Vedic Hymn* 🙏 1206 

Vaidik mantra👇

*Om Abodhyagniarjma Udeti Swaryo Vyusha Svaryopashyaka Vyuha Prayogya ...  1758

*Raag:- Pahadi*
Singing time first quarter of the night, rhythm Kaharwa 8 maatra

*Title:- Pran-Apan Ka Rath* 
🎧788th Vedic Bhajan🌹🙏🏿
*Tune:- * Dekhoji bahaar aayi baagon mein khili hain Kaliyaan



Vaidik bhajan👇
                         jaago jaago
 neend se jaago  
kshitija mein soorya chamakaa
ushaa ne kar dee vichchhinna
ghor tamas kee dashaa
praanee jagat mein chhaayaa 
samaan bhee to chahal-pahal kaa
jaago jaago neend se jaago  
kshitija mein soorya chamakaa

surabhit taruvar upavan 
lage jhoomane mahak bhare 
aalhaadak chaaru prabhaat 
soye jan jaag pade
deh-gatik rath chala hai 
yugal-ashva praanaayaam kaa 
praanee jagat mein chhaayaa 
sama bhee to chahal-pahal kaa
jaago jaago neend se jaago  
kshitija mein soorya chamakaa

yogaangon ka kar abhyaas 
aalas ko tvarit taj den
sandhyaa aur yagya ko kar 
om naam kaa jaap karake 
pashuon mein naa yah kshamataa 
satkarm maanav-saadhanaa 
praanee jagat mein chhaayaa 
samaa bhee to chahal-pahal kaa
jaago jaago neend se jaago  
kshitija mein soorya chamakaa

kaviyon ka hai kaavya-kathhaia
hai shreshth saahitya sangeet 
jo isase rahaa viheen 
maanav pashu bin poonchh seeng
saahitya-sangeet teraa 
bhaagya hai aanand kaa 
praanee jagat mein chhaayaa 
samaa bhee to chahal-pahal kaa
jaago jaago neend se jaago  
kshitij mein soorya chamakaa

yah praan aur apaan 
pashu-pakshee bhee kar lete 
par unakee dishaa seemit 
uttarottar ham badhate 
ashvee-yugal maanavon ko 
dete hain somaras sudhaa
praanee jagat mein chhaaya 
samaa bhee to chahal-pahal kaa
jaago jaago neend se jaago  
kshitija mein soory chamakaa

ai ashvee-yugal ! chaalak 
uttam ho teraa saubhaagya 
sahee kar apanaa upayog 
unnati kaa hai saadhya 
jaagarook udbuddha ban too 
ashvi -rath ko theek chalaa 
praanee jagat mein chhaayaa
sama bhee to chahal-pahal kaa
jaago jaago neend se jaago  
kshitija mein soorya chamakaa
usha ne kar dee vichchhinna
ghor tamas kee dashaa
praanee jagat mein chhaayaa 
samaa bhee to chahal-pahal kaa
jaago jaago neend se jaago  
kshitija mein soorya chamakaa

Meaning of words👇

Kshitij = the place where the earth and sky appear to meet.
 Vichchinna = separated
Surabhit = fragrant
Deha-Gatik-Ratha = fast chariot of the body
Yugal-Ashwa = two forces of life (Prana, Apan)
Viheen = separate, detached
Udbuddha = awakened, enlightened
Wake up wake up from sleep

*Composer, player and voice:- Pujya Shri Lalit Mohan Sahni Ji – Mumbai*
*Date of composition:--* 27.3.2004 6.25 pm, renewal 3.12.2021 11.35 am

Meaning of vaidik bhajan👇

The sun shone in the horizon

The dawn broke

The state of extreme darkness

The living world is covered

The time is also bustling

Wake up wake up from sleep

The sun shone in the horizon

The fragrant trees and gardens

Started dancing in the fragrance-filled

The pleasant morning

The sleeping people woke up

The chariot of body movement has started

The pair of horses of Pranayam

The living world is covered

The time is also bustling

Wake up wake up from sleep

The sun shone in the horizon

Practice the yoga parts

Quickly give up laziness

Perform Sandhya and Yagna

By chanting the name of Om

Animals do not have this ability

Good deeds, human sadhana

The living world is covered

The time is also bustling

Wake up wake up from sleep 
The sun shone in the horizon





*Tune:- DEKJOJI BAHAAR AAYI BAAGON MEiN kHILI HAIN KALIYAAN
(Look, spring has come, buds have bloomed in the gardens)

*self study 📚✏Message of Pujya Shri Lalit Sahni related to this Bhajan:-- 👇👇*
The Chariot of Life and Death

Look, the fire has been lit up. The sun is rising from the horizon. The joyful and glorious dawn has destroyed darkness with its light. The dark night has been torn apart. All creatures have abandoned their delusional sleep and have woken up. Savita Dev has inspired the world to do their respective tasks. Nature has become lively. Birds have started chirping. Animals have started grazing. The vegetation has also come alive. The leaves of trees and creepers are dancing. Flowers are spreading fragrance. The garden is smelling of aroma.

O human! Will you remain asleep even in such a joyful environment? Get up, wake up, throw away the blanket of darkness within you.  Let the pair of horses in the form of Pranayama set your body chariot for journey. You should be engaged in all activities. Do Sandhya-Vandan, light the fire of Agnihotra, practice Yoga Angas, do Pranayama, do Yogasana, sit in Samadhi, perform Yagya, study, give charity. There is a lot of difference between the body chariot of other living beings and your human body chariot. The poet has said that the human being who is devoid of music and art is a real animal without tail and limbs. Naturally, the pair of horses in the form of Prana-Apana set the body chariot of animals, birds etc. for journey. But the human being has to use his will power and make those pair of horses move his chariot in a particular direction. O human! You have got these pair of horses in the form of drivers by great fortune, make good use of them, motivate them. They will fly your chariot towards progress like the pilots of an airplane.  Do not be indifferent, do not adopt an attitude of indifference, be wise, be aware and make the drivers in the form of life and apan steer the chariot in the right direction.

🕉💥Ish Bhakti Bhajan
By Bhagwan Group🙏🌻
🕉Hearty greetings to Vedic listeners❗🙏

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