1182
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वैदिक भजन ११८२ वां(२भागों में)
राग जय जयवंती
गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर
ताल दादरा ६ मात्रा
वैदिक मन्त्र👇
पर्यावर्ते दुष्वप्न्यात् पापात् सप्न्यादभूत्या: ।
ब्रह्माहमन्तरं कृण्वे परा स्वप्नमुखा: शुच; ।।
अथर्ववेद ७.१०५.१
वैदिक भजन👇
बुरा स्वप्न होता बुरा
क्यों नहीं त्यागता
जिसके कारण पाप होते
मिलता फल भी पाप का ।।
बुरा...........
जाग्रत् दशा में आत्मा
के लिए जो कार्य हैं
अन्त:करण इन्द्रियों से
बरबस वे धार्य हैं
इन्द्रियां विश्राम करती
मन भटकता जाता
जागृत अवस्था कर्म
स्वप्न बन के आता
बुरा...........
विषय- ज्ञान एक समय में
एक इन्द्रिय पाती
उस ज्ञान में वह इन्द्रिय
संयुक्त होती जाती
भाव आन्तरिक व बाह्य
प्रकटाता आत्मा
मन के पास इन्द्रियों का
खुला हुआ खाता ।।
बुरा............
जाग्रत दशा का अनुभव
का जो प्रयास है
कर्मबद्ध, क्रमविहीन, कर्म विरुद्धाभास है
जागृत अवस्था में जो
कर्म किया जाता
वही स्वप्न की दशा में
क्रम से आता- जाता
बुरा...........
मन कहता दुरित स्वप्न
मृतात्मा को आते
जीते हुए मन सदा ही
उत्साह पाते
भले आत्मा का मन तो
दु:स्वप्न हटाता
कृतवर्मा तो दु:स्वप्न
देख नहीं पाता
भाग 2
बुरा स्वप्न होता बुरा
क्यों नहीं त्यागता
जिसके कारण पाप होते
मिलता फल भी पाप का
बुरा...........
बुरे स्वप्न से बचाना है
भद्र विचार कर
भद्र आचार कर
भद्र व्यवहार कर
जितेन्द्रिय बन के वो
आलस्य त्यागता
बार-बार प्रणव- जाप में
अपना मन लगाता ।।
बुरा..........
मासूमों की जो हत्या
करता आतातायी
उसे मारनेवाले को
पाप लगता नाहीं
करे राजा निर्णय इसका
वही है विधाता
आततायियों को दंडित
राजा करता जाता ।।
बुरा.......
शैयाशायी होने लगो
पवित प्रणव जाप करो
अधिक निद्रा को तुम त्यागो
लघु प्रगाढ़ निद्रा करो
दु:स्वप्न है इक रोग
सुविचारों से मन भरो
दु:स्वप्न से बचना है उठो शीघ्र प्रात:
बुरा स्वप्न..............
१९.५.२०२४ ५.३० सायं
शब्दार्थ:-
दु:स्वप्न=बुरा सपना
जाग्रत्= जगा हुआ
धार्य= धारण किया हुआ
संयुक्त=जुड़ना
खाता= आय-व्यय,लेनदेन का लेखा
क्रमबद्ध= सिलसिलेवार
क्रमविहीन= जो सिलसिले वार नहीं है
विरुद्धाभास=खिलाफ का आभास होना
कृतवर्मा=चतुर, दक्ष, प्रवीण
भद्र= सभ्य,शिक्षित, कल्याण करनेवाला
शय्याशायी= बिस्तर पर सोने वाला
पवित= निर्मल शुद्ध
प्रणव=ओ३म्
प्रगाढ़= गहरा,
दु:स्वप्न से बचने के उपाय
दु:स्वप्न =बुरा सपना नाम ही बता रहा है कि यह बड़ा है। बुरे का त्यागना ही भलाई है। फिर दु:स्वप्न के कारण कई पाप भी हो जाते हैं। इसे समझने की आवश्यकता है। स्वप्न और जागृत दशा का भेद समझ लेने से सरलता होगी। जाग्रत् दशा में आत्मा के लिए अन्त:करण इन्द्रियां सभी कार्य कर रहे होते हैं। स्वप्न उस अवस्था का नाम है, जब शरीर और बाहर इन्द्रिय श्रान्त, विश्रान्त हो रही है किन्तु मन कार्य कर रहा है। दार्शनिक लोग बतलाते हैं, आत्मा और इन्द्रियों के बीच में मन बिचौलिए का कार्य करता है अर्थात् इन्द्रियां रूप आदि के विषय का जो ज्ञान लाती ह उसे मन को समर्पित है करती है, और मन उसे आत्मा को देता है। इसी कारण एक समय में एक ही विषय का ज्ञान हो पाता है, क्योंकि मन एक समय में एक ही इन्द्रिय से संयुक्त हो सकता है। इससे परिणाम यह निकला कि चाहे अन्दर की ओर से बाहर आत्मा के भाव प्रकट होने हों और चाहे बाहर से भीतर को ज्ञान जा रहा हो, मन के पास तो इन्द्रियों का दिया हुआ ही
अनुव्यवसाय है अर्थात् स्वप्न दशा में भला बुरा जो कुछ भी मन मनन करता है ,वह जाग्रत् दशा के अनुभव का कभी क्रमबद्ध, कभी क्रमविहीन और कभी सर्वथा क्रम विरुद्ध आभास है। वेद इसका संकेत करता है---यदाशसा नि:शसाभिशसोपारिम जागृतो यस्वपन्त: ( ऋग्वेद १०.१६४.३) जो हत्याएं हम जाग्रत् होकर करते हैं, वही स्वप्न दशा में। वेद के मातानुसार दु:स्वप्न मृत-आत्मा को आते हैं। जिसका आत्मा जीता है, पाप से मरा नहीं उसका भद्रं वै वरं वृणते भद्रंयुञ्जन्ति दक्षिणम् । भद्रं वैवस्वते चक्षुर्बहुत्रा जीवतो मन:[ऋग्वेद १०.१६४.२]=जीते हुए का मन भले वर मांगता है, भले उत्साह से युक्त होता है, और बहुदा विवस्वान के प्रति भला ज्ञान करता है अर्थात् भले आत्मा का मन दु: स्वप्न देख ही नहीं सकता। जब वह बुराई करता नहीं, किसी की बुराई चाहता नहीं, सबके लिए भली कामना करता है, तो उसे दु:स्वप्न क्यों आए?
दूसरे शब्दों में बुरे सपनों से बचने का उपाय भद्र विचार और भद्र आचार है। भगवान् से बढ़कर भद्र कौन है? अतः कहा है-- ब्रह्माहमन्तरं कृण्वे परा स्वप्नमुखा: शुच:= मैं ब्रह्म को अन्दर करता हूं,उससे स्वप्न आदि शोक दूर होते हैं। अनुभवी शिरोमणि साक्षात्कृतधर्मा आप्तवर्य ऋषि ने उपदेश किया है--
जितेन्द्रिय बनने के अभिलाषी को रात दिन प्रणव(ओम्) का जाप करना चाहिए। रात को यदि जाप करते हुए आलस्य बहुत बढ़ जाए तो दो घंटाभर गाढ़ निद्रा लेकर उठ बैठे और प्रणव पवित्र (ओम्) का जाप करना आरम्भ कर दे। बहुत सोने से स्वप्न अधिक आने लगते हैं, ये जितेन्द्रिय जन के लिए अनिष्ट है।
जब शैयाशायी होने लगो तो प्रणव पवित्र (ओम्) का जाप किया करो। जबतक नींद न हो, जो धर्म छोड़कर, अधर्मरत होकर निरपराधियों की हत्यादि करने वाला आततायी है उसको बिना विचारे मार डाले, अर्थात् मारकर पीछे विचार करे।आततायी को मारने में मारने वाले को पाप नहीं होता,चाहे प्रकट मारे चाहे गुप्त मारे। वह क्रोध को क्रोध का प्राप्त होना है। वेद ऐसे आततायियों के बहुत विरुद्ध है,अतः इनका विग्रीव= ग्रीवा रहित करने का आदेश करता है। इतनी बात ध्यान में रखनी चाहिए कि यह राजा का कर्तव्य है । वही निर्णय कर सकता है कि कौन आततायी है और कौन नहीं !
यदि मनुष्य ही यह निर्णय करे तो फिर व्यवस्था ही ना रह सकेगी, इसलिए समाज व्यवस्था एवं राज्य- स्थापना की जाती है।
🕉👏 द्वितीय श्रृंखला का १७६ वां वैदिक भजन
और अब तक का११८२ वां वैदिक भजन🙏 🌹
1182
Ways to avoid nightmates
Vedic hymn 1182nd (in 2 parts)
Raag Jai Jaiwanti
Singing time: First quarter of the night
Tala: Dadra: 6 beats
Vedic mantra👇
Paryavarte dushvapnyat papat sapnyadbhutya:
brahmahamantaram krnve para swapnamukha: pure; , Atharvaveda 7.105.1
Vedic Hymn👇
buraa swapna hotaa buraa
kyon nahin tyaagataa
jisake kaaran paap hote milataa phal bhee paap kaa ..
jaagrat dashaa mein aatma
ke lie jo kaarya hain
ant:karan indriyon se
barabas ve dhaarya hain indriyaan vishraam karateen
man bhatakataa jaataa
jaagrt avasthaa karm
swapna ban ke aataa
vishay- gyaan ek samay mein
ek indriya paatee
us gyaan mein vah indriya
sanyukt hotee jaatee
bhaav aantarik va baahya
prakataataa aatmaa
man ke paas indriyon ka
khulaa huaa khaataa ..
jaagrat dashaa ka anubhav
ka jo prayaas hai
karmabaddh, kramaviheen,
karm viruddhaabhaas hai
jaagrt avastha mein jo karm kiyaa jaataa
vahee swapn kee dashaa mein kram se aataa- jaataa
man kahata durit swapna mritaatmaa ko aate
jeete hue man sadaa hee utsaah paate
bhale aatma ka man to du:svapn hataattoa
krtavarma to du:svapn dekh nahin paataa
bhaag 2
bura swapn hotaa bura kyon nahin tyaagataa
jisake kaaran paap hote milata phal bhee paap kaa
bure svapn se bachanaa hai bhadra vichaar kar
bhadra aachaar kar bhadra vyavahaar kar
jitendriya ban ke wo aalasya tyaagataa
baar-baar pranav- jaap mein apanaa man lagaata ..
bura..........
maasoomon kee jo hatyaa karataa aataataayee
use maaranevaale ko paap lagataa naaheen
kare raajaa nirnay isaka
vahee hai vidhaataa aatataayiyon ko dandit
raaja karataa jaataa ..
bura.......
shaiyaashaayee hone lago pavit pranav jaap karo
adhik nidraa ko tum tyaago laghu pragaadh nidraa karo
du:svapn hai ik rog suvichaaron se man bharo
du:svapn se bachana hai utho sheeghra praat:
bura svapn..............
19.5.2024 5.30 pm
Meaning:-
Duhsvapna = bad dream
Jagrat = awake
Dharya = wearing
Sanyukt = to join
Khata = account of income-expenditure, transactions Krtamnad = sequential
Sequential = that which is not sequential
Virudhabhasa = to feel the opposition
Kritavarma = clever, skilled, proficient
Bhadra = civilized, educated, one who does good
Shayyashaayi = one who sleeps on a bed
Pavita = pure, clean
Pranav = Om
Pragadha = deep,
Meaning of bhajan👇
If one has a bad dream, why doesn't he give it up
Due to which, sins are committed and the result of sins is also received.
The tasks for the soul in the waking state
are carried out by the inner conscience
and the senses
The senses rest
and the mind wanders
The waking state tasks
come in the form of dreams
The subject-knowledge is gained by one sense at a time
That sense
gets united with that knowledge
The feeling is internal And the externally manifesting soul has an open account of the senses with the mind. The effort to experience the waking state
is bound by karma, without sequence, and is a contradictory illusion
The karma that is done in the waking state
comes and goes in sequence in the dream state
The mind says that evil dreams come to the dead soul
The living mind always gets excited
The mind of a good soul Then he would remove the nightmare
Kritavarma could not see the nightmare
Part 2
If a bad dream happens, why does it not leave it
Due to which sins are committed, the result of sins is also received
To save oneself from bad dreams, think good thoughts
Behave good conduct, behave good
Become self-controlled and get rid of that laziness Renounces
He repeatedly concentrates his mind on chanting Pranav.
Bad..........
The tyrant who kills innocents
does not commit any sin
The king decides this
He is the creator
The king keeps punishing the tyrants. .
Bad......
Ly on your bed and chant the holy mantra
Give up excessive sleep and sleep in short and deep sleep
Nightmare is a disease, fill your mind with good thoughts
If you want to avoid nightmares, get up early in the morning
Bad dream... ..........
19.5.2024 5.30 pm
Swaadhyaay(Self education) 👇
Ways to avoid nightmares
Nightmare = Bad dream. The name itself tells that it is a big dream. It is good to leave the bad. Also, many sins are committed due to nightmares. It is necessary to understand this. It will be easy to understand the difference between dream and waking state. In waking state, the inner senses are working for the soul. Dream is the name of that state, when the body and the outer senses are getting tired and resting but the mind is working. Philosophers say that the mind acts as a middleman between the soul and the senses, that is, the senses dedicate the knowledge they get about the subject of form etc. to the mind, and the mind gives it to the soul. This is the reason that knowledge of only one subject can be obtained at a time, because the mind can be connected to only one sense at a time. The result of this is that whether the feelings of the soul are being expressed from inside to outside or whether knowledge is going from outside to inside, the mind has only the information given by the senses, that is, whatever good or bad the mind contemplates in the dream state, it is an impression of the experience of the waking state, sometimes in sequence, sometimes out of sequence and sometimes completely out of sequence. The Veda indicates this - Yadāshasa nishāsābhiṣasāparim jagrato yasvapantah (Rig Veda 10.164.3) The murders that we commit while awake, we commit the same in the dream state. According to the Vedas, nightmares come to the dead soul. One whose soul lives, has not died due to sin, his Bhadram Vai Varam Vrinate Bhadram Yunjanti Dakshinam. Bhadram vaivaswate chakshurabahuthra jivato manah [Rig Veda 10.164.2] = The mind of a living soul seeks good boons, is filled with good enthusiasm, and often gives good knowledge to the living soul, i.e. the mind of a good soul cannot see bad dreams. When he does not do bad, does not wish bad for anyone, and wishes good for everyone, then why should he have bad dreams?
In other words, the remedy to avoid bad dreams is good thoughts and good conduct. Who is more good than God? Hence it is said-- Brahmahamantaram krinve para swapnamukhāḥ shuḥ: = I keep Brahma inside, by which sorrows like dreams etc. are removed. The experienced sage Sakshatkritdharma Aaptavarya has preached--
The one who desires to become a conqueror of senses should chant Pranav (Om) day and night. If you feel very lazy while chanting at night, then after two hours of deep sleep, get up and start chanting Pranav Pavitra (Om). Sleeping too much leads to more dreams, which is bad for a person who has controlled his senses.
When you start lying down, chant Pranav Pavitra (Om). Till you fall asleep, kill the tyrant who is a tyrant, abandoning Dharma, being unreligious and killing innocent people, without thinking, that is, after killing, think. The one who kills a tyrant does not incur any sin, whether he kills openly or secretly. It is like anger receiving anger. The Vedas are very much against such tyrants, therefore they order to make them Vigreev = neckless. One thing should be kept in mind that this is the duty of the king. Only he can decide who is a tyrant and who is not!
If man himself takes this decision then the system will no longer exist, that is why social system and state are established.
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