🙏 *आज का वैदिक भजन* 🙏 1220
*भाग 1/2*
*ओ३म् इळा॒ सर॑स्वती म॒ही ति॒स्रो दे॒वीर्म॑यो॒भुवः॑।*
*ब॒र्हिः सी॑दन्त्व॒स्रिधः॑॥*
ऋग्वेद 1/13/9
इळा - सरस्वती
और मही की महिमा
गाई है वेदों ने हरदम
तीनों ही देवियाँ
यज्ञाङ्ग बनकर
करें चतुर्मुखी विकसित जीवन
हे दिव्य प्यारी !!
देवियों !! आओ
राष्ट्रयज्ञ में होवो आसीन
राष्ट्र-उन्नति की
चरम सीमाएँ
जिसमें प्राप्त होवें अनगिन
त्रिगुणाप्त देवियाँ
आत्मसात कर लो
राष्ट्र के सारे
भण्डार भर दो
राष्ट्र के यज्ञों में
और जीवन यज्ञों में
अक्षीण बन करो आगमन
दो विद्या-संस्कृति अन्न-धन
इळा - सरस्वती
और मही की महिमा
गाई है वेदों ने हरदम
तीनों ही देवियाँ
यज्ञाङ्ग बनकर
करें चतुर्मुखी विकसित जीवन
इळा है सम्पदायें
सरस्वती विद्यायें
और है मही संस्कृति
भूमि अन्न और गौएँ
इळारूप हैं
हरे भरे राष्ट्रों की सम्पत्ति
जागृत सुमतिओं की
मधुर ज्ञानधारा
कहलाती है देवी सरस्वती
पूजित या सम्मानित
राष्ट्रों की परिस्थिति
उस राष्ट्र की है मही
इनसे ही राष्ट्र हैं सम्पन्न
इळा - सरस्वती
और मही की महिमा
गाई है वेदों ने हरदम
तीनों ही देवियाँ
यज्ञाङ्ग बनकर
करें चतुर्मुखी विकसित जीवन
*रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :--* ३०.९.२०११ १०.१५ रात्रि
*राग :- केदार*
गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर, ताल दादरा ६ मात्रा
*शीर्षक :- तीन देवियां* भजन ८०१ वां
*तर्ज :- *
775-00176
त्रिगुणाप्त = तीन गुणों से मिला हुआ
अक्षीण = जो दुर्बल ना हो
*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇*
तीन देवियां
इळा,सरस्वती और मही इन तीनो देवियों की चर्चा वेदों में कई स्थलों पर आती है। कहीं-कहीं मई के स्थान पर तीसरी देवी भारती है। एवं महिला और भारती पर्यायवाची हैं। यह तीनों देवियां राष्ट्रयज्ञ में
आसीन होनी चाहिएं, तभी राष्ट्र उन्नति की चरम सीमा पर पहुंच सकता है। 'इळा'संपदा की प्रतीक है। 'इळा' शब्द वैदिक कोष निघंटु में भूमि, अन्न और गाय का वाचक है। भूमि, अन्न, और गाय तीनों विभिन्न संप्रदायों के ही रूप हैं। राष्ट्रीय के पास पर्याप्त भूमि होनी चाहिए, भूमि से उत्पन्न होने वाले अन्नों के भंडार भी भरे होने चाहिए, और गायें एवं दूध दही माखन आदि भी राष्ट्र वासियों को यथेष्ट उपलब्ध होने चाहिएं। दूसरी देवी सरस्वती है, जो विद्या की प्रतीक है। सरस्वती के लिए वेद में कहा गया है कि वह ज्ञान की बाढ़ लाती है, सूनृताओं को प्रेरित करती है और सुमतियों को जागृत करती है। 'सरस्'का अर्थ है मधुर ज्ञानधारा। एवं सरस्वती प्रशस्त ज्ञान धारावाली है। राष्ट्रीय में ज्ञान-विज्ञान की धार सदा बहती रहनी चाहिए। इसके लिए राजा और प्रजा दोनों का सतर्क रहना अनिवार्य है।
तीसरी देवी 'मही' या 'भारती' है, जो संस्कृति की प्रतीक है।'मही'का योगार्थ है पूजित या पूजा की साधन भूत और भारती का योगार्थ है भरने वाली। उच्च संस्कृति से ही कोई राष्ट्रीय पूजित या सम्मानास्पद होता है। संस्कृति भरने का कार्य करती है। कोई राष्ट्र बाहर शरीर से कितना ही विकसित क्यों ना हो जाए श्लाघ्य संस्कृति के बिना खोखला रहता है। यह तीनों प्रकाशमयी, प्रकाशदात्री एवं दिव्य गुणों से युक्त होने के कारण देवियां कहलाती हें। उक्त तीनों देवियां मयोभुव:' हैं, राष्ट्रीय में सुख चैन को उत्पन्न करने वाली हैं। इन्हें 'अस्त्रिध:'होकर राष्ट्र में निरंतर विद्यमान रहना है।
'बर्हि' का मूल अर्थ कुशा है। कुशा के बने आसन को भी बर्हि कहते हैं। यज्ञ में कुशा के आसन का प्रयोग होने के कारण यज्ञ भी बर्हि कहलाता है। यज्ञ कई प्रकार के होते हैं अग्निहोत्र से लेकर अश्वमेध पर्यंत कर्मकांडिक यज्ञ हैं। इसके अतिरिक्त ब्रह्म यज्ञ पितृ यज्ञ भूत यज्ञ अतिथि यज्ञ सिर्फ यज्ञ राष्ट्र यज्ञ आदि को भी यज्ञ कहते हैं। जो बर्हि शब्द के गृहीत हो सकते हैं।
इळा सरस्वती और मही यह तीनों शब्द वैदिक कोष में वाणी के भी वाचक हैं।'इळा'वह स्थूल वाणी है, जिसका सम्बन्ध हमारे जिह्वा आदि उच्चारण अवयवों से होता है। इसे 'वैखरी' वाणी कहते हैं। सरस्वती मन में रहने वाली विचारात्मक वाणी है, जो 'मध्यमा' वाक् कहलाती है। 'मही'आत्मा में प्रतिष्ठित वाक् है,जो 'परा' और 'पश्यन्ती' दो रूपों में रहती है।
अपनी इन तीनों वाणियों को हम प्रशस्त एवं सुखदात्री बनाकर अपने आध्यात्मिक विकास को भी सम्पन्न करना है।
आओ, इळा सरस्वती और मही इन तीनों देवियों को हम अपने व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय जीवनयज्ञ का अंग बना कर चौमुखी विकास प्राप्त करें।
🎧801वां वैदिक भजन🌹👏🏽 आज भाग १👆🏾
कल भाग २
🙏 *aaj ka vaidik bhajan* 🙏 1220
*bhaag 1/2*
*om ilaa sarasvatee mahee tisro deveermayobhuvah.*
*barhih seedantvasridhah.*
rgved 1/13/9
ilaa - sarasvatee
aur mahee kee mahimaa
gaayee hai vedon ne haradam
teenon hee deviyaan
yagyaang banakar
karen chaturmukhee vikasit jeevan
he divya pyaaree !!
deviyon !! aao
raashtrayagya mein hovo aaseen
raashtra-unnati kee
charam seemaaen
jisamen praapt hoven anagin
trigunaapt deviyaan
aatmasaat kar lo
raashtra ke saare
bhandaar bhar do
raashtra ke yagyon mein
aur jeevan yagyon mein
aksheen ban karo aagaman
do vidya-sanskrti anna-dhan
ila - sarasvatee
aur mahee kee mahimaa
gaee hai vedon ne haradam
teenon hee deviyaan
yagyaang banakar
karen chaturmukhee vikasit jeevan
ila hai sampadaayen
sarasvatee vidyaayen
aur hai mahee sanskrti
bhoomi ann aur gauen
ilaaroop hain
hare bhare raashtron kee sampatti
jaagrit sumation kee
madhur gyaanadhaara
kahalaatee hai devee sarasvatee
poojit ya sammaanit
raashtron kee paristhiti
us raashtra kee hai mahee
inase hee raashtra hain sampann
ilaa - sarasvatee
aur mahee kee mahimaa
gaayee hai vedon ne haradam
teenon hee deviyaan
yagyaang banakar
karen chaturmukhee vikasit jeevan
* writer, instu. player singer:- poojy shree lalit mohan saahanee jee – mumbee*
*rachana dinaank :--* 30.9.2011 10.15 raatri
raag :- kedaar*
Second phase of night, taal daadara 6 beats
*sheershak :- teen deviyaan* bhajan 801 vaan
*tarj :- ninnod nikyulla pranayam
Meanings of words, 👇
Trigunaapt = mixed with three qualities
Akshain = one who is not
Meaning of bhajan👇
Apart from this, Brahma Yagya, Pitru Yagya, Bhoot Yagya, Atithi Yagya, Rashtra Yagya etc. are also called Yagya. Which can be accepted as the word Barhi.
Ila Saraswati and Mahi, these three words also denote speech in the Vedic dictionary. 'Ila' is the gross speech, which is related to our tongue and other pronunciation organs. It is called 'Vaikhari' speech. Saraswati is the thoughtful speech that resides in the mind, which is called 'Madhyama' speech. 'Mahi' is the speech established in the soul, which exists in two forms 'Para' and 'Pashyanti'.
We have to complete our spiritual development by making these three speeches of ours expansive and pleasant.
Come, let us make Ila Saraswati and Mahi, these three goddesses, a part of our personal and national life yagya and achieve all-round development.
Swaadhaay-Message of Pujya Shri Lalit Sahni Ji related to this Bhajan:-- 👇👇*
Three Goddesses
Ila, Saraswati and Mahi, these three goddesses are mentioned in many places in the Vedas. At some places, the third goddess is Bharti in place of May. Mahila and Bharti are synonymous. These three goddesses should be seated in the national sacrifice, only then the nation can reach the peak of progress. 'Ila' is a symbol of wealth. The word 'Ila' in the Vedic dictionary Nighantu denotes land, grain and cow. Land, grain and cow are the forms of three different sects. The nation should have sufficient land, the stores of grains produced from the land should also be full, and cows and milk, curd, butter etc. should also be available to the people of the nation in sufficient quantity. The second goddess is Saraswati, who is a symbol of knowledge. In Vedas it is said about Saraswati that she brings flood of knowledge, inspires the virtuous and awakens the virtuous. 'Saras' means sweet stream of knowledge. And Saraswati is the one with a vast stream of knowledge. The stream of knowledge and science should always flow in the nation. For this it is essential for both the king and the subjects to remain alert.
The third goddess is 'Mahi' or 'Bharati', who is the symbol of culture. The meaning of 'Mahi' is worshiped or means of worship and the meaning of Bharti is the one who fills. A nation becomes worshiped or respectable only due to high culture. Culture works to fill. No matter how much a nation develops from the outside, it remains hollow without praiseworthy culture. These three are called goddesses because they are full of light, giver of light and are endowed with divine qualities. The above mentioned three goddesses are 'Mayobhuvah', they create happiness and peace in the nation. They have to remain present in the nation continuously by becoming 'Astridh:'.
The original meaning of 'Barhi' is Kusha. The seat made of Kusha is also called Barhi. Since Kusha is used as a seat in the yagya, the yagya is also called Barhi. There are many types of yagya, from Agnihotra to Ashwamedha, there are ritualistic yagya.
Apart from this, Brahma Yagya, Pitru Yagya, Bhoot Yagya, Atithi Yagya, Rashtra Yagya etc. are also called Yagya. Which can be accepted as the word Barhi.
Ila Saraswati and Mahi, these three words also denote speech in the Vedic dictionary. 'Ila' is the gross speech, which is related to our tongue and other pronunciation organs. It is called 'Vaikhari' speech. Saraswati is the thoughtful speech that resides in the mind, which is called 'Madhyama' speech. 'Mahi' is the speech established in the soul, which exists in two forms 'Para' and 'Pashyanti'.
We have to complete our spiritual development by making these three speeches of ours expansive and pleasant.
Come, let us make Ila Saraswati and Mahi, these three goddesses, a part of our personal and national life yagya and achieve all-round development.
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