🙏 *आज का वैदिक भजन* 🙏 1237
*भाग 2/2*
*ओ३म् पृथ॒क्प्राय॑न्प्रथ॒मा दे॒वहू॑त॒योऽकृ॑ण्वत श्रव॒स्या॑नि दु॒ष्टरा॑ ।*
*न ये शे॒कुर्य॒ज्ञियां॒ नाव॑मा॒रुह॑मी॒र्मैव ते न्य॑विशन्त॒ केप॑यः ॥*
ऋग्वेद 10/44/6
*ओ३म् पृथ॒क्प्राय॑न्प्रथ॒मा दे॒वहू॑त॒योऽकृ॑ण्वत श्रव॒स्यानि दु॒ष्टरा॑।*
*न ये शे॒कुर्य॒ज्ञियां॒ नाव॑मा॒रुह॑मी॒र्मैव ते न्य॑विशन्त॒ केप॑यः ॥*
अथर्ववेद 20/94/6
प्रभु जी !!
ढूँढने हैं यज्ञ के मोती रे
यज्ञमयी नाव जब
प्रभु सङ्ग होगी रे
ढूँढने हैं यज्ञ के मोती रे
यज्ञमयी नौका
खड़ी इस किनारे
हाथ बढ़ाओ प्रभु!
करो उस पारे
दुरितों से बचा लो
सत्कर्म की दो ज्योति रे
दे दो प्रशस्ति
हे प्रजापति रे !
ढूँढने हैं यज्ञ के मोती रे
स्वार्थों को त्यागें
देवों का सङ्ग कर
जीवन चला लें
कर्तव्य पथ पर
देव हमें पढ़ाएँ
प्रीत-सेवा की पोथी रे
दे दो प्रशस्ति
हे प्रजापति रे !
ढूँढने हैं यज्ञ के मोती रे
पञ्च यज्ञ द्वारा
ऋण को चुका दें
धार्मिक होकर
सुकर्म कमा लें
थाम ले गर तू
नाव की सवारी होगी रे
दे दो प्रशस्ति
हे प्रजापति रे !
ढूँढने हैं यज्ञ के मोती रे
प्रभु जी !!
ढूँढने हैं यज्ञ के मोती रे
यज्ञमयी नाव जब
प्रभु सङ्ग होगी रे
ढूँढने हैं यज्ञ के मोती रे
*रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :--*
*राग :- पहाड़ी*
गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर, ताल कहरवा ८मात्रा
*शीर्षक :- यज्ञमयी नौका* ८१२ वां वैदिक भजन,
*तर्ज :- *
784-00185
प्रशस्ति = प्रशंसा योग्य (सत्कर्म)
दुरित = पापकर्म
पञ्चयज्ञ = ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वयज्ञ, अतिथियज्ञ ।
*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇*
यज्ञमयी नौका
भाइयों!इस संसार सागर से हमें तरा सकने वाली नौका यज्ञमयी ही है।
हम यदि यज्ञ-कर्म नहीं करेंगे तो हम न केवल मनुषत्व से ऊपर नहीं उठ सकेंगे अपितु मनुषत्व को भी कायम नहीं रख सकेंगे,तब हमें नीचे पशुत्व में अध:पतित होना पड़ेगा।देखो बहुत से देव-हूति(दिव्य गुणों का आवाहन करने वाले) पुरुष उन देवलोक, पितृलोक,ब्रह्मलोक आदि
दुष्प्राय यशोमय उच्चलोकों को पहुंच गए हैं,बड़े भारी यत्न से इस मनुष्यावस्था को तरकर देव हो गये हैं। ये लोग यज्ञिय नाव पर ही चढ़कर वहां पहुंचे हैं इन्होंने अपने में देवों का, दिव्यताओं का, आह्वान किया है। और 'प्रथम' बने हैं। दूसरी ओर यह दुर्भागे मनुष्य हैं जो कि जो कि थोड़ा सा स्वार्थ त्याग न कर सकने के कारण अयज्ञिय हो ऋणबद्ध रहने के कारण,उस नाव का आश्रय नहीं पा सके हैं अत: यहीं बंधे पड़े रह गये हैं।
ये बेचारे 'केपि'=कुत्सिताचरणी यहां भी नीचे धंसते जा रहे हैं।पशुत्व में गिर रहे हैं। इनका फिर पवित्र बनना अब कठिन हो गया है, अत: आओ मनुष्य योनि पाकर अब हम कुछ ना कुछ स्वार्थ-त्याग करें। इतना यज्ञ तो करें कि ऋणबद्ध न बने रहें।हम पर जो मातापिता, गुरु,समाज, राष्ट्र, मनुष्यता,प्रकृति माता व परमेश्वर आदि के ऋण हैं उन्हें उतारने के लिए तो अपने स्वार्थों का नित्य हवन किया करें। हम यदि इतना करेंगे, केवल परम आवश्यक पञ्च यज्ञों को यथाशक्ति करते रहेंगे, तो फिर इस यज्ञमयी नौका पर चढ़ सकेंगे और देवयान लोकों को नहीं तो कम- से- कम पितृयान लोकों को जा पहुंचेंगे,अपने मनुषत्व को तो नहीं खो देवेंगे।
भाइयों! यज्ञमयी नौका खड़ी है।हम चाहें तो देव-हूति होकर, दिव्य स्वभाव, धर्मशील होकर,यज्ञ-नौका द्वारा इस दुस्तर सागर को तरकर ज्ञान ऐश्वर्यमय उच्च से उच्च लोकों तक पहुंच सकते हैं नहीं तो
फिर यदि हम इस नौका में स्थान न पा सके तो हम ऐसी ख़राब परिस्थिति में आ पड़ेंगे और वहां ऐसे निर्लज्ज बन जाएंगे कि हम कुत्सित अपवित्र कर्मों के करने में ही सुख पाएंगे और नीचे ही नीचे गिरते जाएंगे,फिर हमारे उद्धार का दूसरा अवसर कितने काल के बाद आवेगा,यह कौन जानता है?
८१२ वां वैदिक भजन आज भाग २(अन्तिम) 🎧 812 वां वैदिक भजन🌹🙏🏿
🙏 *Today's vaidik bhajan* 🙏 1237
*part 2/2*
*om pruth॒kpray॑nprath॒maa de॒vahu॑ta॒yoऽkru॑nvat shrav॒sya॑ni du॒shtara॑ ।*
*na ye she॒kurya॒dnyiyam॒ nav॑maa॒ruh॑mi॒rmaiv te nya॑vishant॒ kep॑yah ॥*
rigved 10/44/6
*om pruth॒kpray॑nprath॒maa de॒vahu॑ta॒yoऽkru॑nvat shrav॒syani du॒shtara॑।*
*na ye she॒kurya॒dnyiyam॒ nav॑maa॒ruh॑mi॒rmaiv te nya॑vishant॒ kep॑yah ॥*
atharvaved 20/94/6
prabhu ji !!
dhuadhane hain yagya ke moti re
yagyamayi naav jub
prabhu sang hogi re
dhuadhane hain yanya ke moti re
yagyamayi naukaa
khadi is kinaare
haath badhaao prabhu!
karo us paare
duriton se bachaa lo
satkarm ki do jyoti re
de do prashasti
he prajaapati re !
dhuadhane hain yagya ke moti re
swaarthon ko tyaagen
devon kaa sung kar
jeevan chalaa len
kartavya path par
dev hamen padhaayen
preet-sevaa ki pothi re
de do prashasti
he prajaapati re !
dhuadhane hain yagya ke moti re
punch yagya dwaraa
rin ko chukaa den
dhaarmik hokar
sukarm kamaa len
thaam le gar too
naav ki sawaari hogi re
de do prashasti
he prajaapati re !
dhuadhane hain yagya ke moti re
prabhu ji !!
dhuadhane hain yagya ke moti re
yagyamayi naav jub
prabhu sang hogi re
dhuadhane hain yagya ke moti re
lyricist, instrumentalist, and singer :- pujya shri lalit mohan sahani ji – mumbai*
*rachana dinaank :--*
*raag :- pahadi*
singing time first face of the night
taal kaharava 8 beats
*Title :- yagnyamayi naukaa*812th vaidik bhajan,
*tune :- *Nathali se tootaa moti re
👇Meaning of words👇
Prashasti = praiseworthy (good deeds)
Durit = sinful deeds
Panchayajna = Brahmayajna, Devyajna, Pitryajna, Vaishvayajna, Atithiyajna.
👇Vaidik bhajan👇
Prabhuji!!
We have to find the pearls of the yagya
When the boat of yagya
Will be with the Lord
We have to find the pearls of the yagya
The boat of yagya
Standing on this shore
Extend your hand Lord!
Take it to that shore
Save me from the evil deeds
Give me the light of good deeds
Give me praise
O Prajapati!
We have to find the pearls of the sacrifice
Let us abandon our selfishness
Let us lead our life with the Gods
Let the Gods teach us
the book of love and service
Give us praise
O Prajapati!
We have to find the pearls of the sacrifice
Let us repay our debts
By performing Panch Yagyas
Be virtuous
And earn good deeds
If you hold on to this,
You will be able to ride the boat
Give us praise
O Prajapati!
We have to find the pearls of the sacrifice
Prabhuji!!
We have to find the pearls of the sacrifice
When the boat of sacrifice
Will be with the Lord
We have to find the pearls of the sacrifice
*********
The sacrificial boat⛵
👇sermon(updesh)👇
'Yajnamayi Naukaa'
Brothers! The boat that can save us from this worldly ocean is sacrificial.
If we do not perform sacrifices, we will not only not be able to rise above humanity but we will not be able to maintain humanity, then we will have to fall down into animality ) Men those Devaloka, Pitriloka,Brahmaloka etc
They have reached the higher worlds of glory, have crossed this human state with great effort and have become gods. These people have arrived there on the sacrificial boat. They have called upon the gods, the divinities, in themselves. and remain 'first'. On the other hand it is the unfortunate human beings who who are unsacrificial because of not being able to sacrifice a little selfishness because of being in debt, have not been able to find the shelter of that boat and therefore are tied up here.
These poor 'kepi'=kutsitacharni are sinking down here too.falling into animality. It is now difficult for them to become holy again, so let us now find the human womb and do some self-denial. Do so much sacrifice that you do not remain in debt. To pay off the debts of parents, teachers, society, nation, humanity, mother nature and God, etc., do the daily sacrifice of your selfishness. If we do so, only continue to perform the most necessary five sacrifices as much as we can, then we will be able to board this sacrificial boat and reach the Devayana worlds or at least the Pitriyayana worlds, not losing our humanity.
Brothers! The sacrificial boat is standing. If we want to be Deva-Huti, divine nature, righteous, we can cross this difficult ocean by the sacrificial boat and reach the higher and higher worlds of knowledge and wealth, otherwise
Then if we cannot find a place in this boat, we will be in such a bad situation and there will become so shameless that we will find pleasure in doing vile and unholy deeds and will fall down, then how long will our second chance of salvation Who knows what will come next?
🕉👏Eesh bhakti bhajan🙏
🙏By bhagwan group🙏🌹
best wishes to Vaidic listeners🙏🌹
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