🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - - ०४ दिसम्बर २०२४ ईस्वी
दिन - - बुधवार
🌒 तिथि -- तृतीया ( १३:१० तक तत्पश्चात चतुर्थी )
🪐 नक्षत्र - - पूर्वाषाढ ( १७:१५ तक तत्पश्चात उत्तराषाढ )
पक्ष - - शुक्ल
मास - - मार्गशीर्ष
ऋतु - - हेमन्त
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:५९ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२४ पर
🌒चन्द्रोदय -- ९:४८ पर
🌒 चन्द्रास्त - - २०:०३ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥अपरिग्रह―साधना
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केवल अपने शरीर के लिए, पारिवारिक जीवन चलाने, पारिवारिक व्यवस्था ठीक रखने और अपनी जिम्मेदारियों को निभानए और लोक-कल्याण के कार्यों को चलाने के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यकता है, तदतिरिक्त वस्तुओं का त्याग करना ही अपरिग्रह है। अधिक वस्तुओं की इच्छा अच्छी नहीं है। प्रयोजन के अतिरिक्त वस्तुओं की आवश्यकता रहने, अधिक भोग्य पदार्थ सम्मुख रहने से योग सिद्धि नहीं होती। तब अपरिग्रह सिद्धि होगी
जब हम एकत्रित धन और भोग्य वस्तुएँ दूसरे अभाव ग्रस्त व्यक्तियों को दे देंगे, क्योंकि अर्थ के हम रक्षक हैं, ट्रस्टी हैं, केवल भक्षक नहीं हैं। जगत् की सब वस्तुएँ भगवान् की हैं, दूसरे को वंचित करके किसी वस्तु का भोग और प्रयोग करना महापाप है, प्रभु का अर्थ लोक-कल्याण में ही खर्च करना चाहिये। प्रयोजन के अतिरिक्त सभी विषयों का त्याग कर देने से भोग्य वस्तुओं के मानसिक बन्धन से मुक्त हो जाने से चित्त निर्मल हो जायेगा।
इच्छाओं की पूर्ति करते-करते हम सारा जीवन अशान्ति से गुजार देते हैं। और जरुरतें बढती ही जाती हैं। दो रोटी खाकर तो तृप्ति हो सकती है, पर छत्तीस पदार्थ खाकर भी लालसा बनी रहती है। इच्छाएँ तो कभी पूरी नहीं हो सकतीं और इनकी पूर्ति के चक्कर में सारी आयु व्यतीत हो जाती है।
भर्तृहरि जी का एक श्लोक है―
भोगा: न भुक्ता वयम् एव भुक्ता: तापो न तप्त: वयम् एव तपाता: ।
कालो न यातो वयम् एव याता: तृष्णा न जीर्णा वयम् एव जीर्णा: ।।
अर्थात्― भोग कम न हुए, भोगते भोगते हम ही भुगते गए। हम तप कर न सके, विषय वासनाएँ हमें ही तपा गई। समय समाप्त नहीं हुआ पर हम ही मृत्यु का ग्रास बन गये, तृष्णा नहीं घटी हम ही बूढे हो गये, और हमारी आसक्ति बढती ही गई, इच्छा की पूर्ति कभी न हुई।
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‼️🚩आज का वेद मंत्र ‼️🚩
🌷ओ३म् शं नो अग्निर्ज्योतिरनीको अस्तु शं नो मित्रावरूणावश्विना शम्। शं न सुकृतां सुकृतानि सन्तु शं न इषिरो अभि वातु वात:।। (ऋग्वेद ७|३५|४)
💐अर्थ :- ज्योतियों की ज्योति ज्ञास्वरूप परमेश्वर हमारे लिए शान्तिदायक हो, दिन और रात हमें शान्ति कारक हो, सूर्य और चन्द्रमा हमें शान्ति देने वाले हो, धर्मात्माओं के सुकर्म हमें शान्ति कारक हो, गतिशील पवन हमारे लिए सब ओर से शान्ति देने वाली हो।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, मार्गशीर्ष - मासे, शुक्ल पक्षे,तृतीयायां
तिथौ,
पूर्वाषाढ नक्षत्रे, बुधवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे ढनभरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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