मैंने ईसाई मत क्यों छोड़ा
खण्ड १
DEDICATION TO WHOLE WOMENHOOD
To all women, of any nation or faith
To my sister in humanity
To the other half of society
To the oiginal partner in the journey of life
To womenkind, I dedicate this my simple effect.
१. बाईबल में नारी
१. नारी के प्रति तलाक में भेदभाव
यदि कोई पुरुष किसी स्त्री को ब्याह ले, और उसके बाद उसमें कुछ लज्जा की बात पाकर उससे अप्रसन्न हो, तो वह उसके लिए त्यागपत्र लिखकर और उसके हाथ में देकर उसको अपने घर से निकाल दे। -व्यवस्थाविवरण (२४ : १)
और जब वह उसके घर से निकल जाए, तब दूसरे पुरुष की हो सकती है। -व्यवस्थाविवरण (२४ : २)
परन्तु यदि वह उस दूसरे पुरुष को भी अप्रिय लगे, और वह उसके लिए त्यागपत्र लिखकर और उसके हाथ में देकर उसे अपने घर से निकाल दे, वा वह दूसरा पुरुष जिसने उसको अपनी रत्री कर लिया हो मर जाए, -व्यवस्थाविवरण (२४: ३)
तो उसका पहिला पति, जिसने उसको निकाल दिया हो, उसके अशुद्ध होने के बाद उसे अपनी पत्नी न बनाने पाए क्योंकि यह यहोवा के सम्मुख घृणित बात है। -व्यवस्थाविवरण (२४ : ४)
बाईबल में प्रुष जाति के लिए ऐसी व्यवस्था का न होना क्या नारी जाति के साथ अन्याय नहीं है ?
२. क्या नारी जाति लूट का माल है ?
जब तू अपने शत्रुओं से युद्ध करने को जाए, और तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे हाथ में कर दे, और तू उन्हें बन्धुआ कर ले, -व्यवस्थाविवरण (२१: १০)
तब यदि तू बन्धुओं में किसी सुन्दर स्त्री को देखकर उस पर मोहित हो जाए, और उससे ब्याह कर लेना चाहे... -व्यवस्थाविवरण (२१: ११)
और जो वस्तुएँ सेना के पुरुषों ने अपने-अपने लिए लूट ली थी उनसे अधिक की लूट यह थी अर्थात छः लाख पचहत्तर हज़ार भेड़-बकरियाँ, -गिनती (३१: ३२)
बहत्तर हज़ार गाय-बैल -गिनती (३१: ३३) इकसठ हज़ार गधे -गिनती (३१: ३४) और मनुष्यों में से जिन स्त्रियों ने पुरुष का मुंह नहीं देखा था वह सब बत्तीस हज़ार थीं। -गिनती (३१: ३५)
इस प्रकार का विवरण गिनती (३१: १७, १८), न्यायियों (२१ : १०-१२) में भी मिलता है।
देखिये बाईवल यहाँ नारी को गधे आदि पशुओं लूट का माल मानता है।
३. नारी के अधिकारों का हनन ?
फिर यदि कोई स्त्री अपने पति के घर में रहते मन्नत माने, वा शपथ खाकर अपने आप को बान्धे, -गिनती (३०:१०)
और उसका पति कुछ न कहे, और न उसे मना करे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्थिर बनी रहें, और हर एक बन्धन क्यों न हो, जिससे उसने अपने आप को बान्धा हो, वह स्थिर रहे।
-गिनती (३०:११)
परन्तु यदिे उसका पति उसकी मन्नत आदि सुनकर उसी दिन पूरी रीति से तोड़ दे, तो उसकी मन्नतें आदि जो कुछ उसके मुंह से अपने बन्धन के विषय निकला हो, उसमें से एक बात भी स्थिर न रहे; उसके पति नें सब तोड़ दिया है; इसलिए यहोवा उस स्त्री का वह पाप क्षमा करेगा। -गिनती (३০ : १२)
इस प्रकार का विवरण १ तिमुथियुस (२: १२ ) में भी मिलता है ।
देखिए यहाँ नारी स्वतन्त्रता से इच्छाएँ भी नहीं कर सकती
४. नारी जाति से पक्षपात।
स्त्रियों से कह, कि जो स्त्री गर्भिणी हो और उसके लड़का हो, तो वह सात दिन तक अशुद्ध रहेगी। -लैव्यव्यवस्था (१२: २)
...और यदि उसके लड़की पैदा हो, तो उसको ऋतुमती की स्त्री की अशुद्धता चौदह दिन की लगे;
लैव्यव्यवस्था (१२:५)
क्योंकि पुरुष स्त्री से नहीं हुआ, परन्तु स्त्री पुरुष से हुई है। -
१ कुरिन्यियों (११ :६)
देखिए उक्त विवरण में जन्म से ही नारी जाति से भेदभाव किया गया है।
५. करे कोई भरे कोई।
फिर स्त्री से उस ने कहा, मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर बालक उत्पत्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।
-उत्पत्ति (३ : १६)
देखिए यहाँ सर्प के कहने पर सृष्टि की आदि महिला हौवा ने वृक्ष का फल खाया, होवा के द्वारा किए गए अपराध का दण्ड ईश्वर समस्त नारी जाति को दे रहा है। यह कहाँ का न्याय है ?
६. बहुपत्नीवाद का बाईबल में वर्णन।
जब एसाव चालीस वर्ष का हुआ, तब उस ने हित्ती बेरी की बेटी यहूदित, और हित्ती एलोन की बेटी बाश्मत को ब्याह लिया। -उत्पत्ति (26:34)
उसी रात को वह उठा और अपनी दोनों स्त्रियों, और दोनों लौण्डियों, और ग्यारहों लड़कों को संग लेकर घाट से यब्बोक नदी के पार उतर गया। -उत्पत्ति (३२:२२)
ऐसा ही कुछ वर्णन उत्पत्ति (२६: १५-३०) में भी मिलता है।
देखिए बाईबल में बहुपत्नीवाद जैसी अमानवीय घटनाएँ मिलता हैं।
७. बहू द्वारा श्वसुर के साथ मुह काला करना।
जब यहूदा ने उसको देखा, उस ने उसको वेश्या समझा; क्योंकि वह अपना मुंह ढापे हुए थी। -उत्पत्ति (३८ : १५)
और वह मार्ग से उसकी ओर फिरा, और उससे कहने लगा, मुझे अपने पास आने दो, (क्योंकि उसे यह मालूम न था कि वह उसकी बहू है)। और वह कहने लगी, कि यदि मैं तुझने अपने पास आने दुं, तो तू मुझे क्या देगा ? -उत्पत्ति (३८ : १६)
उसने कहा, मैं अपनी बकरियों में से बकरी का एक बच्चा तेरे पास भेज दूँगा। तब उसने कहा, भला उसके भेजने तक क्या तू हमारे पास कुछ रेहन रख जाएगा? -उत्पत्ति (३८ : १७)
उसने पूछा, मैं तेरे पास क्या रेहन रख जाऊँ ? उसने कहा, अपनी मुहर, और बाजूबन्द, और अपने हाथ की छड़ी। तब उसने उसको वे वस्तुएँ दे दीं, और उसके पास गया, और वह उससे गर्भवती हुई। -उत्पत्ति (३८: १८)
इस प्रकार का परिवार के सदस्यों में परस्पर व्यभिचार का विवरण उत्पत्ति (२० : १२) में भी मिलता है।
देखिए चरित्रहीनता एवं व्यभिचार का वीभत्स रवरूप।
८. नारी का मोल।
तुम मुझसे कितना ही मूल्य वा बदला क्यों न मांगो, तो भी मैं तुम्हारे कहे के अनुसार दूँगा : परन्तु उस कन्या को पत्नी होने के लिए मुझे दो। -उत्पत्ति (३४ : १२)
इसी प्रकार का वर्णन रूत (४ : १०) तथा होशे (३ : २) में भी मिलता है।
देखिए बाईबल के अनुसार नारी भी खरीदने की वस्तु है।
६. नारी पैर की जूती।
यदि कोई पुरुष किसी कन्या को जिसके ब्याह की बात न लगी हो फुसलाकर उसके संग कुकर्म करे, तो वह निश्चय उसका मोल देके उसे ब्याह ले। -निर्गमन (२२:१६)
परन्तु यदि उसका पिता उसे देने को बिल्कुल इनकार करे, तो कुकर्म करनेवाला कन्याओं के मोल की रीति के अनुसार रुपए तौल दे।
-निर्गमन (२२: १७ )
क्या इससे असभ्य कुछ और हो सकता है?
१০. लेवीय द्वारा नारी जाति पर बर्बरता। उन दोनों जब. … और बताओ -न्यायियों (१६ : १-३०)
देखिए लेवीय पुरुष द्वारा लुच्चों से घिर जाने पर अपनी सुरैतिन
(Concubine) को पकड़कर बाहर कर देना, लुच्चों द्वारा उससे रातभर व्यभिचार का किया जाना और लेवीय पुरुष द्वारा छूरी से सुरैतिन के अंग-अंग के बारह टुकड़े करना।
११. नारी जाति की पिता द्वारा दुर्गति।
तब यहोवा का... जाया करती थीं।।
न्यायियों (११: २६-४०)
यहोवा द्वारा युद्ध में जीत के बदले यिप्तह मिस्पा की बेटी को होम बलि चढ़ाने के लिए मांगना और उसका देना कहाँ की मानवता है ?
१२. नातान द्वारा स्वामी की पत्नियाँ दाऊद को देना।
फिर मैंने तेरे स्वामी का भवन तुझे दिया, और तेरे स्वामी की पत्नियाँ तेरे भोग के लिए दीं; -२ शमूएल (१२: ८)
नारी जाति का इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है ?
१३. यहोवा द्वारा नातान की पत्नियाँ का औरों को देना।
यहोवा यों कहता है, कि सुन, मैं तेरे घर में से विपत्ति उठाकर तुझ पर डालूंगा; और तेरी पत्नियों को तेरे सामने लेकर दूसरे को दूँगा, और वह दिन दुपहरी में तेरी पत्नियों से कुकर्म करेगा। -२ शमूएल (12:11)
देखिए स्वयं ईश्वर द्वारा नारी जाति पर बरपा कहर !
१४. बाईबल में पुनर्विवाह का खण्डन।
परन्तु मैं तुमसे यह कहता हूँ कि जो कोई अपनी पत्नी को व्यभिचार के सिवा किसी और कारण से छोड़ दे, तो वह उससे व्यभिचार करवाता है; और जो कोई उस त्यागी हुई से ब्याह करे, वह व्यभिचार करता है। -मत्ती (५: ३२)
इसी प्रकार का विवरण लूका (१६ : १८) में भी मिलता है।
१५. नारी को व्यभिचार हेतु उकसाना।
तुम्हारी बेटियाँ छिनाला और तुम्हारी बहुएँ व्यभिचार करें, तब मैं उनको दण्ड न दूँगा; क्योंकि मनुष्य आप ही वेश्याओं के साथ एकान्त में जाते और देवदासियों के साथी होकर यज्ञ करते हैं; और जो लोग समझ नहीं रखते, वे नाश हो जाएँगे। -होशे (४ : १४)
देखिए बाईबल का ईश्वर बह -बेटियों के व्यभिचार को मान्यता देता है।
१५. विधवा विवाह निषेध
जो विधवा, वा त्यागी हुई, वा भ्रष्ट, वा वेश्या हो, ऐसी किसी को वह न ब्याहे, वह अपने ही लोगों के बीच में की किसी कुंवारी कन्या को व्याहे। -लैव्यव्यवस्था (२१: १४)
बाईबल के ईश्वर की विधवाओं के प्रति ऐसी क्रुरता खेदजनक है।
वेदों में नारी जाति का सम्मान
१. इमा नारीरविधवाः सुपत्नीराञ्जनेन सर्पिषा सं स्पृशन्ताम् ।
अनश्रवो अनमीवाः सुरत्ना आ रोहन्तु जनयो योनिमग्रे।।
-अथववेद (१२/२/३१)
स्त्रियां उत्तम धर्मपत्नियां बनें, ये कभी विधवा न बनें। वे सौभाग्ययुक्त होकर अपने शरीर को अंजन आदि द्वारा सुशोभित करें । नीरोग बनें, शोकरहित होकर अश्रुरहित रहें और उत्तम आभूषण से सुशोभित रहें। अपने घर में ये स्त्रियां सुपूजित होती हुई महत्व का स्थान प्राप्त करें।
२. अघौरचक्षुरपतिरघ्नी स्योना शग्मा सुशेवा सुयमा गृहेभ्यः ।
वीरसूर्देवृकामा सं त्वयैधिषीमहि सुमनस्यमाना -अथववेद (१४/ २/१७)
यह त्री पति के घर में आकर आनन्द से रहे, आंखे क्रोधयुक्त न करे, पति की हितकारीणी बने, धर्मनियमों का पालन करे, सबको सुखी देवे, अपनी सन्तानों को वीरता की शिक्षा देवे, देवरादि को सन्तुष्ट रखे, अन्तःकरण में शुभ भाव रखे। ऐसी स्त्री से घर सुसम्पत्न होता है।
३. सुमड़्गली प्रतरणी गृहाणां सुशेवा पत्ये श्वशुराय शम्भू:।
स्योना श्वश्र्वै प्र गृहान्विशेमान् ।। -अथर्ववेद (१४ /२/२६)
उत्तम मंगल कामनावाली, गृह वालों को दुःख से छुड़ानेवाली, पति की सेवा करनेवाली, श्वसुर को सुख देने वाली, सास का हित करनेवाली स्त्री अपने घर में प्रविष्ट हो।
४. इडे रन्ते हव्ये काम्ये चन्द्रे ज्योते अ्दिते सरस्वती महि विश्रुति।
एता ते अध्येनामानि देवेभ्यों मां सुकृत ब्रूयात्।।
जो विद्वानों से शिक्षा पाई हुई स्त्री हो वह अपने-अपने पति और अन्य सब स्त्रियों को यथायोग्य उत्तम कर्म सिखलावे जिससे किसी तरह वे अधर्म की ओर न डिगे। वे दोनों स्त्री-पूरुष विद्या की वृद्धि और बालकों तथा कन्याओं को शिक्षा किया करें। -यजुर्वेद (८/४३)
५. प्रेतो मुज्चामि नामुतः सुबद्धाममुतस्करम्।
यथेयमिन्द्र मीढ्वः सुपुत्रा सुभगासति।। -ऋग्वेद (१০/८५/२५)
वधू का सम्बन्ध पितृकुल से छूटे, परन्तु पतिकुल से न छूटे। पतिकुल से सम्बन्ध सुदृढ़ होवे। परमेश्वर इस वधू को पतिकुल में उत्तम पुत्रों से युक्त करे, और उत्तम भाग्य से युक्त करे।
६. प्रबुध्यस्य सुबुधा बुध्यमाना दीर्घायुत्वाय शतशारदाय।
गृहान्गच्छ गृहपत्नी यथासो दीर्घ त आयुः सविता कृणोतु ।। -अथर्ववेद (१४/२/७५)
स्त्री विदुषी होवे तो प्रातः काल उठे, सौ वर्ष की दीर्घायु के लिए ज्ञान प्राप्तिपूर्वक प्रयत्न करे। अपने पति के घर में रहे। अपने घर की स्वामिनी बनकर विराजे। परमात्मा इसको दीर्घायु करे।
७. इह प्रियं प्रजायै ते समृध्यतामस्मिन्गृहे ग्राहपत्याय जागृहि।
एना पत्या तन्वं सं स्पृशस्वाथ जर्विर्विदथमा वदासि।। अथर्ववेद (१४/१/२१)
इस धर्मपत्नी के सन्तान उत्तम सुख में रहें। यह धर्मपत्नी अपना गृहस्थाश्रम उत्तम रीति से चलावे। यह धर्मपत्नी अपने पति के साथ सुख से रहे। जब इस तरह धर्ममार्ग से गृहस्थाश्रम चलाती हुई यह स्त्री वृद्ध होगी तब यह योग्य सम्मति देने योग्य होगी।
८. इयं नारी पतिलकं वृणाना नि पद्य उपत्वा मर्त्य प्रेतम्|
धर्मं पुराणमनुपालयन्ती तस्यै प्रजा द्रविणं चेह धेहि|| -अथर्ववेद (१८/३/१)
पति के मर जाने पर सन्तान की कामना करने वाली स्त्री धर्मानुकूल दूसरे पुरुष को पति बनाकर धन व सन्तान प्राप्ति करे। वह पुरुष भी उसे पत्नी बनाकर सन्तान व धन से उसका पालन-पोषण करे।
९. अमोऽहमसि्मि सा त्वं सामाहमस्म्यृक्त्वं द्यौरहं पृथिवी त्वम्।
ताविह संभवाव प्रजामा जनयावहै।। -अथर्ववेद (१४/२/७१)
पुरुष प्राण है और स्त्री रयि है, पुरुष सामगान है और स्त्री मन्त्र है। पुरुष सूर्य है और स्त्री पृथ्वी है। ये दोनों मिलकर इस संसार में रहे और उत्तम सन्तान उत्पत्न करें।
१०. सा विट् सुवीरा मरुद्भिरस्तु सनात् सहन्ती पुष्यन्ती नृम्णम् ।। -ऋ्वेद (७/५६/५)
वही स्त्री श्रेष्ठ है, जो ब्रह्मचर्य से समस्त विद्याओं को पढ़कर वीर सन्तानों को जन्म देती है, जो सहनशील है और जो धनकोश वाली है।
११. सम्राज्ञेथि श्वशुरेषु सम्राज्युत देवृषु।
ननान्दुः सम्राज्ञेथि सम्राज्युत श्वश्रृवा ।। -अथर्ववेद (१४ /१/४४ )
अपने ससूर आदि के बीच, देवरों के मध्य, ननंद के साथ, सास के साथ भी महारानी होकर रह। (स्री का जितना समादर वैदिक धर्म में अन्य किसी धर्म में नहीं है। )
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