*🚩‼️ओ३म्‼️🚩*
*🕉️🙏नमस्ते जी🙏🕉️*
दिनांक - - २९ मार्च २०२५ ईस्वी
दिन - - शनिवार
🌑 तिथि -- अमावस्या ( १६:२७ तक तत्पश्चात प्रतिपदा )
🪐 नक्षत्र - - उत्तराभाद्रपद ( १९:२६ तक तत्पश्चात रेवती )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - चैत्र
ऋतु - - बसंत
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:१५ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १८:३७ पर
🌑 चन्द्रोदय -- चन्द्रोदय नही होगा
🌑 चन्द्रास्त - - १८:४० पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २०१
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀
*🚩‼️ओ३म्‼️🚩*
*🔥चमत्कारों का सच!!!*
==============
आप भी खोलें पाखण्ड की पोल
प्रकृति-नियम के विरुद्ध कोई कार्य होकर सामने आ जाए तो उसको जनता चमत्कार कहती हैं । लोग चमत्कार को नमस्कार करते हैं ।
सच तो यह है कि चमत्कार बिल्कुल नहीं होते, न ही हो सकते हैं ,क्योंकि प्रकृति के नियम ऋत हैं, सत्य हैं, नित्य हैं ,वे अपरिवर्तनशील होते हैं ; क्योंकि वे ईश्वरकृत होते हैं । ( ईश्वर अपने ही नियमों को क्योंकर तोड़ सकता है।वह सर्वज्ञ है अत: उसके बनाए नियम भी अटल हैं । )
प्राकृतिक-नियम बदलने लगे तो ईश्वर विकारी हो जाएगा । ईश्वर अज्ञानी कहलाएगा । सृष्टि के सभी कार्य डांवाडोल हो जायेंगे । अत: अनहोनी बातों पर मूर्ख , पाखंडी , ढोंगी , निराश-हताश-कमजोर ही विश्वास करते हैं ।
प्राकृतिक-नियम अनेक हैं । जितने-जितने नियमों को मनुष्य ने समझा , परखा , उनको आगे चलकर ‘विज्ञान’ कहतें हैं । वेद सब सत्य विद्याओं का ईश्वरीय ज्ञानकोष हैं । रेडियो , टी० वी० , इंटरनेट , कम्प्यूटर , विमान क्या कम चमत्कार हैं ?चमत्कार नहीं , विज्ञान हैं जो मानव जाति को सर्वप्रथम वेदों से मिला हैं ।
विज्ञान के बल पर जो करते है चमत्कार ।
अविद्वान ही करते है इन सबको नमस्कार ॥ –
अब जरा अज्ञानी-अंधविश्वासी-नास्तिक मूर्खों के मानने वाले चमत्कारों का सच जानें –
इन चमत्कारों के पीछे कुछ रसायनों का कमाल होता है। आईये इनके बारे में जानते हैं।
१ - पानी से दीये या लैंप जलाने के लिए नीचे कैल्शियम कार्बाइड के कुछ टुकड़े डाले जाते हैं ।पानी डालते ही रसायनिक क्रिया होगी और एसिटिलीन गैस पैदा होगी । एसिटिलीन गैस तेज चमक से जलती हैं । १९१८ ई० में मुस्लिम फ़कीर साईं बाबा ने भी इन्हीं चमत्कार से अपने भक्तों को आश्चर्य चकित करते थे ।
२ - हड्डी पर फ़ास्फ़ोरस या गन्धक लगाकर सुखा दें । बाद में पानी के छींटे मारने पर धुंआ निकलता है ।
३ - अकरकरा और नौसादर को घीक्वार के रस में पीसकर पैरों के तलवों पर अच्छी तरह मल लिया जाता हैं , फिर पैर गर्म आग या अंगारों पर रखने से नहीं जलते हैं ।
४ - अलमुनियम के सिक्के पर मरक्यूरिक क्लोराइड का घोल चडा दें । पानी से गीली हथेली में पकडने से सिक्का राख में बदल जाता है ।
५ - आक के दूध से हाथ पर ” राम ” लिखें ।इसके बाद सुखा लें । बाद में राख मलने पर अदृश्य लिखा हुआ ” राम ” चमकने लगेगा ।
६ - कागज की कढ़ाई बनाकर उसकी तली में फिटकरी , सुहागा , और नमक का लेप कर देने से उसमें सरसों का तेल रखकर पकौड़ी बनाई जा सकती है , कागज नहीं जलेगा ।
७ - चमकीली पन्नी में सोडियम का चूर्ण लगायें । मिट्टी के तेल से भिगोये हुये रूमाल के बीच में रखें । मिट्टी के तेल के सम्पर्क में नहीं जलेगा । लेकिन गीले हाथ में आते ही जल उठेगा ।
८ - फ़ास्फ़ोरस मुंह में रखकर बाहर थूक देने पर जल उठता है ।
९ - साँप की केंचुली की बत्ती बनाकर तेल भरे दीपक में जला देने पर सर्वत्र साँप ही साँप रेंगते दिखाई पड़ते है।
अधिक जानकारी के लिए जादूगर सम्राट आर्य शिवपुजन सिंह कुशवाहा की पुस्तक “जादू विद्या रहस्य” पढ़ें ।*
( नोट : कृपया बिना अभ्यास के स्वयं इनको न करें । )
१० - वह व्यक्ति जो अपने चमत्कार की वैज्ञानिक जांच-पड़ताल करने की इजाजत नहीं देता वह धोखेबाज़ है ।
११ - वह व्यक्ति जो किसी चमत्कार की वैज्ञानिक जांच करने की हिम्मत नहीं जुटाता वह अंधविश्वासी है ।
१२ - वह व्यक्ति जो बिना जांच-पड़ताल किए किसी चमत्कार में विश्वास कर लेता है मूर्ख होता हैं ।
भाइयों ! चमत्कार कहकर स्वार्थी लोगों ने शिक्षित-अशिक्षित लोगों को खूब लूटा है और अज्ञानी लोग लुटते रहते हैं । सावधान
वेदों की ओर लौटो।
ओ३म् ।
🍁🍁🍀🍀🍁🍁🍀🍀
*🚩‼️आज का वेद मंत्र ‼️🚩*
*🌷ओ३म् सम्राजो ये सुवृधो यज्ञमाययुरपरिह्वृता दधिरे दिविक्षयम्। ताँ आ विवास नमसा सुवृक्तिभिर्महो आदित्याँ अदितिं स्वस्तये। ( ऋग्वेद १०|६३|५ )*
💐अर्थ :- हे प्रभु ! अपने तेज से भली प्रकार तेजस्वी, ज्ञानादि से वृद्ध जो विद्वद्-जन यज्ञ-कर्म को प्राप्त होते है और जो सबसे अपीड़ित देवगण उच्च सम्मानित पद को प्राप्त करते हैं, उन गुणों को आदर सहित अन्न-पानादि से, सुन्दर मधुर वाणी से सम्मानित कर, ज्ञान प्राप्त करें तथा कल्याण को प्राप्त करें।
🍁🍁🍀🍀🍁🍁🍀🍀
🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
==============
🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे
भ कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधीकद्विशततमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , बंसत -ऋतौ, चैत्र - मासे, कृष्ण पक्षे, अमावस्यां - तिथौ, उत्तराभाद्रपद - नक्षत्रे, शनिवार , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे।
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁

0 टिप्पणियाँ
If you have any Misunderstanding Please let me know