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गद्दार लोगों से दुर रहे

गद्दार धोखेबाजो से सदा दूर रहे यह सर्वनाश करने के लिये पर्याप्त है अक्सर महापुरुष यहां अपने मित्रो से गद्दारी धोखेबाजों के कारण भयंकरतम कष्टो को प्राप्त किया है जीवन उनका जहन्नुम बन गया वह कहीं के नहीं रहे वह पूर्ण रुपेण बरबाद होगये | आप को इनसे सावधान रहना चाहिये और समय रहते उन्हे पहचान लेना चाहिये अन्यथा समय गुजर जाने पर कुछ भि नही हो पायेगा तब यही कहेगे कि अब पश्चाये क्यी होत है जब चिड़िया चुग गई खेत|
ओ३म्  यस्यायं विश्वअ्आर्यो दासः शेवधिपाअ्अरिः|
तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत्सोअ्अज्यते रयिः||
   अर्थातः- जिसके लिये यह समग्र भुमंडल विश्व ब्रह्माण्ड बनाया गया है| वह सब धर्म युक्त गुण कर्म स्वभाव वाले पुरुष आर्य के लिए है| और जो इसके सेवा कारी दास जिसको दस्यु कहते है अर्थात जो आर्यो कि सेवा करने वाले लोग है उनके लिये है| यह सब आर्यन के समान एक मजबुत विशाल संगठन है, जो सभी प्रकार के धरोहर ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान रूपी धनों का संरक्षक रूप है अर्थात् धर्मादि कार्यो में अथवा राज कर देने में व्यय करने वाले लोग है, और जो इसके विपरित कर्म करने वाले इनके शत्रु है, जो इनसे छुप कर निश्चित रूप से भयंकर और दन्डनिय कार्य करते है उनको जो नियन्त्रित रखने के लिय् पुरुषार्थ करते है| वह जो आर्यों के साथ दुष्ट स्वभाव के साथ हिन्सक व्यवहार का प्रयोग करते है उनके साथ जो श्रेष्ठ आर्य पुरुष है वह अपने धन मान सम्मान कि रक्षा के लिये शस्त्रों को प्राप्त करके अपने शत्रु पर उसका प्रयोग करके अपने लिए और अपनो के लिये पुरुषार्थ करता है उसको हर प्रकार का ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान रूपी  त्रीगुणात्मक धन और ऐश्वर्य प्राप्त होता है|
   आर्यन एक महान नाम है जैसा कि वेद का मंत्र कहता है इनका जन्म एक जमिदार परिवार में हुआ, जिनके पास कई सौ एकड़ जमिन कि पुरानी परम्परा थी| पिता सूर्य के समान बहुत उग्र स्वभाव का जिसने अपने लिये एक नया व्यवसाय बनाता है परिवार की पुरानी परम्परा से हट कर अपना नया कारोबर प्रारम्भ करता है लिक से हट कर चलना जिसका स्वभाव है| माँ एक विशाल हृदय कि मालकिन पृथ्वी के समान धिर गम्भिर सब कुछ सहन बर्दास्त करके भी अपनी धुरी पर निरन्तर चलते रहना जिनका स्वभाव श्यामा है| पिता यशवन्त लम्बा तगड़ा डिल डौल वाला भुरी आखों का मालिक जो आखों से आग उगलने में माहिर है हिस्ट पुष्ट शरीर वाला , पढ़ा लिखा अग्रेजी संस्कृत का जान कार फुट डालो और राज्य करो जिनकी राजनिती है| मध्यवर्गिय समाज में जिसकी काफी अच्छी प्रतिष्ठा मान सम्मान है लोग सम्मान की दृष्टी से देखते है पुरानी इज्जत आज भी कुछ हद तक बरकरार है| यशवंत जो स्वाभिमानी , निर्भिक , और निर्द्वन्द दूसरों पर अपनी शेषी बघारना और अपना रोब जमाना बुद्धिमानी का लोहा मनवाना जिसे खुब आता है| जिस प्रकार जहां पेड़ ना रुख वहां पर रेण महापुरुष मान लिया जाता है| जिस प्रकार अन्धों में काना राजा बन जाता है उसी प्रकार से यशवन्त है|
   श्यामा एक सभ्य घर कि है ज्यादा पढ़ी लिखी नही है जिसका यशवन्त नाजायज फायदा उठाता है और उसका आजिवन अपने मतलब के लिये उपयोग एक सामान कि तरह करता है| श्यामा इन सब से बेखबर उसे अपना भगवान मानती है| श्यामा और यशवंत की शादी पुराने वुजुर्गो ने अपनी पुरानी रिस्तेदारी को नया रूप देने के लिये किया उसमें एक और विशाल कारण था |
उस कारण को समझने से पहले हमें पहले उस गांव के इतिहास पर थोड़ी नजर डालनी पड़ेगी यह एक छोटा सा गांव है| जहां पर जिमदारों का बोल-बाला था| पहले जब भारत में मुसलमान राज्य करते थे| उस समय वाराणसी के नजदिक उसके दक्षिण में विन्ध्य पर्वत की घाटीयों से आच्छादित जहां पर कभी मिरजाफर नाम का मुस्लिम शासक राज्य करता था| जिसके नाम पर ही उस अस्थान का नाम मिर्जापुर पड़ा था| जो कभी जंगलो से आच्छादित जंगली जातियों का जहां पर अत्यधिक बोल-बाला था| बाद में वहां पर वहां के निवासी राजा के अधिकार में आया जहां पर जमिन काफी मात्रा में थी जिसको साफ करके उपजाऊ बनाय स्थानी लोगो को साथ में लेकर जो कास्त कार बने जिनके पास जितनी अधिक जमिन थी वह उतना ही बड़ा कास्तकार या खेतिहर माना जाता था| पहले सबसे बड़ी सम्पत्ती जमिन हि माना जाता था| यह सब राजा के साथ मिल कर सभी काम करते थे| और इसका हिसाब राजा को कर स्वरूप देते थे| समय बदला भारत में अंग्रेजो का आगमन हुआ और उन्होने पूरे भारत देश पर अपना अधिकार किया और अपनि राजनितियों को लागु करके सभी राजाओं को नष्ट करके उनकी सभी जमिन का मालिक कास्तकारों को जंमिदार बना दिया और उनसे सिधा अंग्रेज अपना कर वसुलने लगे| मिर्जापुर के जिस इलाके का रहने वाला आर्यन है| वहां पर कभी जिमेदारी हुकुमत अंग्रेजो के इसारे से चलति थी और खुब खुन खराबा जमिन पर कब्जा लेने के लिये होता था| जिसमें अग्रेजो का बहुत बड़ा हाथ होता था क्योंकि इससे जमिन पर अपरोक्ष रूप से अधिकार उनका हो जाता था और उस पर अंग्रेज अपने किसी चापलुस प्यादे को बैठा कर उस सारी हजारों लाखो एकड़ जमिन पर अपना अधिकार कर लेते थे और उसका अपने मन माफिक उपयोग करते थे| ऐसे हि एक बहुत बड़े खेत के मैदान पर जो करिब दो लाख एकड़ के करिब था| जिस पर काफि मसक्त के बाद भी अंग्रेज अपना अधिकार नहीं कर पायें थे| उसके पिछे कुछ महत्त्वपूर्ण कारण थे| जिसमें से पहला कारण था कि जमिन का आधा हिस्सा अर्थात करिब एक लाख एकड़ जमिन पर्वत से सट कर विन्ध्य पर्वत की घाटी में थी जो जंगली थी काफी खतरनाक स्थान था जहां पर जाना दिन में भी अत्यधिक दुस्कर था रात में तो जाना और बच कर आना असंभव थ। ऐसे स्थान पर अंग्रेजो और उनके चमचो के लिये जाना और वहां से बच कर निकलना बहुत कठीन कार्य था कयोंकि वह इलाका दलदली था उसमें से निकलने का मार्ग बहुत दुर्गम था वहां उस समय बहुत थोड़ी सी आबादी थी जो वहा के लोकल आदिवासी और वहां का जमिदार जिसका प्रभाव अपने आदमियों पर भगवान के समान था| जिसने अपने प्रभाव और उस जमिन का उपयोग कर के जब अंग्रेजो का हमला उस इलाके पर होता, वहां के क्षेत्रिय निवासी के साथ अंग्रेजो और उनके सिपाही हवलदार चमचो को चकमा दे कर पर्वत की घाटी में जंगली इलाके में जा कर छुप जाते थे| जिस कारण अंग्रेज और उनके सैनिक कई बार उनसे मात खा चुके थे| और कितने सैनिक उस दलदली इलाके में धस कर भुखे प्यासे रहकर दम तोड़ देते थे| जिसकी वजह से वह क्षेत्र अंग्रेजो के लिये अजेय बन गया था| अंग्रेज उस इलाके पर अपना प्रभुत्त्व जमाने के लिये हर प्रकार का सड़यन्त्र निरन्तर नया - नया रचते ही रहते थे| और जिन जमिदार परिवार का उन जमिनो पर एक क्षत्र अधिकार था उनके परिवार के सदस्यों को एक-एक कर वहां के क्षेत्रिय लोगों को जमिन का लालच दे कर निरन्तर हत्या कराते रहते जो भी उस जमिदार परिवार का नया पुरुष उभरता था उसका कुछ समय में हि किसी तरह से हत्या हो जाती थी | वह क्षेत्र जो जमिन का दूसरा हिस्सा एक लाख एकड़ का था | वह उत्तर कि तरफ से गंगा नदि के किनारे से हो कर विन्ध्य पर्वत तक फैला था जो पुरब कि तरफ से पहाड़ और नदी बिलकुल सकरा था जब नदी में बाढ़ आता था तो उस क्षेत्र में आने के सभी मार बन्द हो जाता था उस समय साधन के नाम पर बैल गाड़ी और घोड़ा गाड़ी के अतिरिक्त और तिसरा साधन नाव नदी में चलती थी| बारिष के समय नाव नदी में बहाव के कारण डुबने का खतरा था जिससे बाढ़ के समय नदी में नाव नहीं चलती थी| जमिन का जो दो लाख एकड़ का मैदान है| उसके दक्षिण किनारे से पर्वतो से होकर पतली सड़क दक्षिण से हो कर पश्चिम हिस्से मैदान को एक गोल घेरे में घेरते हुये उत्तर से गंगा नदी के किनारे से होते हुए पुनः पुरब से दक्षिण पर्वत से हो कर मिर्जापुर सहर में प्रवेश करती है| जो आगे चल कर पर्वत से होकर किनारे से वाराणसि से आगे, और दुसरी तरफ लालगंज से होकर जंगली इलाके पर्वत के चढ़ाई के साथ सके रास्ते से उत्तरप्रदेश के छोड़कर मध्यप्रदेश के लिये निकल जाती है| मिर्जापुर सहर विन्ध्य पर्वत के उपर वशा है| वहां से इलहाबाद के लिये निचे मैदान के दक्षिणी सिरे से हो कर गुजरती है|
नदि को पार कर के नदी से करिब चार किलोमिटर की दूरी पर जिटी रोड है जो दिल्ली से कल्कटा को जोडंती है| जब रेलवे लाइन का जाल भारत में नहीं बिछा था यह उस समय कि बात है| क्योंकि जो इलहाबाद और वाराणसी के मध्य रेल्वे स्टेशन बनाया गया ज्ञान पुर और इलहाबाद मुगल सराय के मध्य गैपूरा रेल्वे स्टेशन यह दोनो रेल्वे स्टेशन उस दो लाख एकड़ भुमि के  दो किनारे पर एक दक्षिणी तरफ दूसरा उत्तर में नदी पार कर के बनाया गया है जिसे अंग्रेजो ने जबरजस्ती अपने अत्याचार के दम पर बनाया थ| इसमें आर्यन के पुर्वजो कि बलि चढ़ाया गया है|
इस दो लाख एकड़ भुमि को ब्रह्म पूरा के नाम से जाना जाता है अब इसका नाम करण आर्यन ने ही किया है वह यहां पर एक बिशाल भुमिगत वैदिक विश्वविद्यालय बनाना चाहता है| जो लगभग विस वर्ग किलोमिटर में फैले मैदान में अपनी जमीन पाता है| यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण मुद्दा उसके जिवन का है | यह दो लाख एकड़ का मैदान बहुत ही आश्चर्य और कौतुहल से भरा है| अंग्रेजो के बाद जब भारत आजाद हुआ तो उस जमिन को सब में बाट दिया जो जहां जो व्यक्ती जितने जमिन पर खेती करता था, उसके नाम पर उस विशेष व्यक्ती के कव्जे मे जमिन चली गई| लेकिन लड़ाइया और हत्यायों का सिल-सीलाल आज भी चलता है जिनके पास अधिक जमिन है उनका दब-दबा आज भी उस क्षेत्र पर बरकरार है| काफी समय तक जमिन का आधा भाग जो दल- दल भरा स्थान था वहां पर अब खेती होने लगी एक ही फसल की पैदावार इतनी अधिक होती है, जो कि तिन फसलों के बरा-बर है दुसरे खेत कि तूलना में है, नदी के पानी का कहर आज भी आता है अब लोग उसका उपयोग करना जान गये है| इस जमिन का एक बड़ा हिस्सा एक ऐसे व्यक्ति के कब्जे में है | जो आज भी लोगो की नजर में कांटा की तरह चुभता है| जिसे लोग बैजनाथ के नाम से जानते है उसके नौ पूत्र है सभी कि शादी हो गई है, सबकी पत्निया है और सब की संताने है| और इनका ब्यापार खेती के साथ बड़ी-बड़ी बागवानी का कारोबार पूस्तैनि सब एक साथ मिल कर देखते है | यह कहानी वर्तमान से करिब सौ से १५० साल पहले कि बात है| यह बैजनाथ ब्रह्म पूरा का एक बहुत बड़ा जिमिदार है अर्थात इसके पास आज भी कई हजार एकड़ भुमी है और इसके पास कई गाव कि मालकियत है जो इसके प्रतिद्वन्दियों के लिये बहुत बड़ा चिन्ता का विषय है| एक प्रकार से यह बैजनाथ और इसके पुत्रों का ब्रह्म पूरा के पूरे क्षेत्र में इसकी और इसके नौ बहादूर पहलवानो कि तुती बोलती है| इसका जीवन रहन सहन बिल्कुल राजा महाराज की तरह है| जिसके पास हजारों की संख्या में नौकर दाश दाशी  बहुत सारे घोड़ा हाथी और अपनी रक्षा के लिये सेना कि व्यवस्था है| रहने के लिये बिशाल भुमिगत किला बना रखा है| एक प्रकार से राजाओं के बाद बैजनाथ ने ही इस क्षेत्र पर अपना प्रभुत्त्व जमा लिया है| जिस किले पर अंग्रेज अपना अधिकार नहीं कर सके उस पर भारत सरकार की नजर चढ़ गई है|
इसके सम्बन्ध में प्रकाण्ड विद्वान वेद और संस्कृति के महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में कुछ इस तरह से अपने विचार व्यक्त किये है कि किस प्रकार का आचरण माता और पिता को करना उचित है| और क्या अनुचित है| ईनके बिचारों को भी बिच-बिच में देखते रहेंगे जिससे जिवन का यथार्थ और जीवन को वास्तविक रुप से जिने का तरिका भी ज्ञात होता रहेगा|
ओ३म् भूर्भुवः स्व: । तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
इस मन्त्र में जो प्रथम (ओ३म्) है उस का अर्थ प्रथमसमुल्लास में कर दिया है, वहीं से जान लेना। अब तीन महाव्याहृतियों के अर्थ संक्षेप से लिखते हैं-‘भूरिति वै प्राणः’ ‘यः प्राणयति चराऽचरं जगत् स भूः स्वयम्भूरीश्वरः’ जो सब जगत् के जीवन का आवमार, प्राण से भी प्रिय और स्वयम्भू है उस प्राण का वाचक होके ‘भूः’ परमेश्वर का नाम है। ‘भुवरित्यपानः’ ‘यः सर्वं दुःखमपानयति सोऽपानः’ जो सब दुःखों से रहित, जिस के संग से जीव सब दुःखों से छूट जाते हैं इसलिये उस परमेश्वर का नाम ‘भुवः’ है। ‘स्वरिति व्यानः’ ‘यो विविधं जगद् व्यानयति व्याप्नोति स व्यानः’ । जो नानाविध जगत् में व्यापक होके सब का धारण करता है इसलिये उस परमेश्वर का नाम ‘स्वः’ है। ये तीनों वचन तैत्तिरीय आरण्यक के हैं। (सवितुः) ‘यः सुनोत्युत्पादयति सर्वं जगत् स सविता तस्य’। जो सब जगत् का उत्पादक और सब ऐश्वर्य का दाता है । (देवस्य) ‘यो दीव्यति दीव्यते वा स देवः’ । जो सर्वसुखों का देनेहारा और जिस की प्राप्ति की कामना सब करते हैं। उस परमात्मा का जो (वरेण्यम्) ‘वर्त्तुमर्हम्’ स्वीकार करने योग्य अतिश्रेष्ठ (भर्गः) ‘शुद्धस्वरूपम्’ शुद्धस्वरूप और पवित्र करने वाला चेतन ब्रह्म स्वरूप है (तत्) उसी परमात्मा के स्वरूप को हम लोग (धीमहि) ‘धरेमहि’ धारण करें। किस प्रयोजन के लिये कि (यः) ‘जगदीश्वरः’ जो सविता देव परमात्मा (नः) ‘अस्माकम्’ हमारी (धियः) ‘बुद्धीः’ बुद्धियों को (प्रचोदयात्) ‘प्रेरयेत्’ प्रेरणा करे अर्थात् बुरे कामों से छुड़ा कर अच्छे कामों में प्रवृत्त करे।
‘हे परमेश्वर! हे सच्चिदानन्दस्वरूप! हे नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभाव! हे अज निरञ्जन निर्विकार! हे सर्वान्तर्यामिन्! हे सर्वाधार जगत्पते सकलजगदुत्पादक! हे अनादे! विश्वम्भर सर्वव्यापिन्! हे करुणामृतवारिधे! सवितुर्देवस्य तव यदों भूर्भुवः स्वर्वरेण्यं भर्गोऽस्ति तद्वयं धीमहि दधीमहि ध्यायेम वा कस्मै प्रयोजना– येत्यत्रह। हे भगवन् ! यः सविता देवः परमेश्वरो भवान्नस्माकं धियः प्रचोदयात् स एवास्माकं पूज्य उपासनीय इष्टदेवो भवतु नातोऽन्यं भवत्तुल्यं भवतोऽधिकं च कञ्चित् कदाचिन्मन्यामहे।
हे मनुष्यो! जो सब समर्थों में समर्थ सच्चिदानन्दानन्तस्वरूप, नित्य शुद्ध, नित्य बुद्ध, नित्य मुक्तस्वभाव वाला, कृपासागर, ठीक-ठीक न्याय का करनेहारा, जन्ममरणादि क्लेशरहित, आकाररहित, सब के घट-घट का जानने वाला, सब का धर्ता, पिता, उत्पादक, अन्नादि से विश्व का पोषण करनेहारा, सकल ऐश्वर्ययुक्त जगत् का निर्माता, शुद्धस्वरूप और जो प्राप्ति की कामना करने योग्य है उस परमात्मा का जो शुद्ध चेतनस्वरूप है उसी को हम धारण करें। इस प्रयोजन के लिये कि वह परमेश्वर हमारे आत्मा और बुद्धियों का अन्तर्यामीस्वरूप हम को दुष्टाचार अधर्म्मयुक्त मार्ग से हटा के श्रेष्ठाचार सत्य मार्ग में चलावें, उस को छोड़कर दूसरे किसी वस्तु का ध्यान हम लोग नहीं करें। क्योंकि न कोई उसके तुल्य और न अधिक है वही हमारा पिता राजा न्यायाधीश और सब सुखों का देनेहारा है। इस प्रकार गायत्री मन्त्र का उपदेश करके सन्ध्योपासन की जो स्नान,आचमन, प्राणायाम आदि क्रिया हैं सिखलावें। प्रथम स्नान इसलिए है कि जिस से शरीर के बाह्य अवयवों की शुद्धि और आरोग्य आदि होते हैं। इस में प्रमाण-
अद्भिर्गात्रणि शुध्यन्ति मनः सत्येन शुध्यति।
विद्यातपोभ्यां भूतात्मा बुद्धिर्ज्ञानेन शुध्यति।।
यह मनुस्मृति का श्लोक है।
जल से शरीर के बाहर के अवयव, सत्याचरण से मन, विद्या और तप अर्थात् सब प्रकार के कष्ट भी सह के धर्म ही के अनुष्ठान करने से जीवात्मा, ज्ञान अर्थात् पृथिवी से लेके परमेश्वर पर्यन्त पदार्थों के विवेक से बुद्धि दृढ़-निश्चय पवित्र होता है। इस से स्नान भोजन के पूर्व अवश्य करना। दूसरा प्राणायाम, इसमें प्रमाण-
प्राणायामादशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्तिराविवेकख्यातेः।।
-यह योगशास्त्र का सूत्र है।
जब मनुष्य प्राणायाम करता है तब प्रतिक्षण उत्तरोत्तर काल में अशुद्धि का नाश और ज्ञान का प्रकाश होता जाता है। जब तक मुक्ति न हो तब तक उसके आत्मा का ज्ञान बराबर बढ़ता जाता है।
भारत सरकार ने बैजनाथ और उसके नौ पूत्रो को मारने के लिये एक बिशाल दमन चक्र चलाया और बैजनाथ के राज्य को नष्ट करके, उसको दूसरें जो सरकार के लिये जासुसी करते थे उनको देने के लिये बैजनाथ के शत्रुओं से मिल कर और सरकारी सेना को उनके साथ कर दिया और एक गोरिल्ला युद्ध करके सरे आम कत्ल करते हुए बैज नाथ कि सेना का सर कलम कर दिया और औरौ बैज नाथ के साथ उसके पुत्र और उनकी औरतो को कत्ल कर दिया| इसके बाद बैजनाथ के भुमिगत किले को नष्ट कर दिया| जब यह सब कुछ हो रह था| उस समय बैज नाथ कि अन्तिम बहु अपने मायके वाराणसी में थी| जब उसे यह समाचार मिला तब यहां मिर्जापुर नहीं आने का फैसला किया और वहीं रह कर जीवन बसर करने लगि|
दह्यन्ते ध्मायमानानां धातूनां च यथा मलाः।
तथेन्द्रियाणां दह्यन्ते दोषाः प्राणस्य निग्रहात्।।
यह मनुस्मृति का श्लोक है।

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