दृश्य का आधार अदृश्य और अदृश्य में प्रवेश का मार्ग दृश्य जगत ही है
आज मै यह घोसणा करता हुं की मैंने सत्य का साक्षात्कार कर लिया है, मैने अपने इस हाड़ मान्स के पिन्जड़ के मार्ग से हो कर वहां पहुच गया हूं, जहां पर इसकी सिमा का अन्त होता है। और मैं इससे परे अनन्त में प्रवेश कर गया हूं, अब न मेरा जन्म सम्भव है ना ही मृत्यु मै मुक्त हो गया हूं, मैंने अतिक्रमण कर दिया अपने भोतिक शरिर का यह अब सिद्ध हो गया है, की हम शरिर नहीं है शरीर हमारा आवरण है, यह एक दरवाजा है इससे हो कर ही हम इससे बाहर निकल सकते हैं।
यह सब कैसे हुआ इसके लिये मैने मृत्यु की खोज में लग गया मृत्यु तो नहीं मिला लेकिन हमें असहनिय दर्द के समन्दर से गुजरना पड़ा, मानशिक दुःख शारिरीक दुःख आत्मीक दूःख इन दुःखों को सहने से हमारे अन्दर बर्दास्त करने अद्भुत क्षमता का सृजन हो गया, जिसके कारण मुझे अब कोई दुःख पिड़ा संताप यातना दुःखी नही करती है। मैं हर प्रकार के दुःखों से परे हो गया हूं, क्योंकि यहां हर वस्तु कि एक सिमा है, दुःख सुख सब की सिमा है यह अनन्त नही हैं, मै अनन्त हो गया हूं, क्योंकी दुःख मुझे दुःखी करते करते हैं, स्वयं दुःखी हो कर मुझसे दूर भाग गया, मैं उसे पुकारता रहा आवो मुझे दुःखी करों लेकिन वह मेरे परक्षाई से भी दूर भागता है।
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