वेद हमारी संस्कृति के मूलाधार हैं । वेद
परमात्मा की दिव्यवाणी है। वे हमारे प्राण और जीवन-सर्वस्व हैं। प्राचीन और
अर्वाचीन ऋषि-मुनियों ने वेदों की महिमा के गीत गायें हैं। महर्षि मनु ने कहा
है-वेदश्चक्षुः सनातनम् [मनु० १२ १९४] । वेद मानव मात्र के लिए सनातन चक्षुः हैं। भागवत
पुराण में कहा है-वेदों नारायणः साक्षात् [६।१ । ४०] । वेद साक्षात् भगवान ही है। गरुड
पुराण में कहा है-वेदाच्छास्त्रं परं नास्ति' [गरुड़० उ० ख० ब्रः का०
१० ।५५] । वेद से बढ़कर संसार में कोई शास्त्र नहीं है। तुलसी दास ने भी लिखा
है-बन्दउ चारिउ वेद [मानस० बाल० १५ ङ०]-मैं चारों वेदों की वन्दना करता हूँ।
वेद सृष्टि के आदि में 'अग्नि'
आदि चार ऋषियों को प्रदत्त दिव्य ज्ञान हैं । वेद मानव मात्र के लिए
हैं । वेद की शिक्षाएँ सार्वभौम, सार्वजनीन और सार्वकालिक
हैं। मनुभर्व जनया दैव्यं जनम्।
-ऋ० १० १५३।६ मननशील बनो और
दिव्य सन्तानों का निर्माण करो। धियो यो नः प्रचोदयात्। -
-ऋ०३।६२।१० हे प्रभो! हम
सबकी बुद्धियों, कर्मों व वाणियों को श्रेष्ठ मार्ग में
प्रेरित कीजिए। भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
-ऋ० १।८९।८ हम कानों से
कल्याणकारी वचन ही सुनें और आँखों से भद्र दर्शन करें।
कितने उदात्त और सबके लिए
कल्याणप्रद उपदेश हैं ये! वैदिक संस्कृति वस्तुतः विश्व की पहली संस्कृति है कितने उदात्त और सबके लिए
कल्याणप्रद उपदेश हैं ये ! वैदिक संस्कृति वस्तुतः विश्व की पहली संस्कृति है सा
प्रथमा संस्कृतिर्विश्ववारा॥
-यजु:०७।१४ यह संस्कृति
केवल भारतीयों द्वारा नहीं, मानव मात्र द्वारा और सम्पूर्ण
विश्व द्वारा वरणीय संस्कृति है। वेद प्रभु-प्रदत्त ज्ञान है। परमात्मा ने अपने
अमृत पुत्रों को क्या सन्देश, उपदेश और प्रेरणाऐं दी हैं,
इन्हें जानने के लिए वेद का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। अपने
आत्म-उत्थान के लिए, पारिवारिक कल्याण के लिए, समाज-निर्माण के लिए, विश्वशान्ति के लिए वेद का
स्वाध्याय परम कल्याण कारक है।)
वेद में क्या है इस प्रश्न के
उत्तर में कहा जा सकता है कि वेद में क्या नहीं है ? महर्षि मनु के
शब्दों में भूतं भव्य भविष्यच्च सर्वं वेदात्प्रसिध्यति।
-मनु०१२।९७ भूत, वर्तमान और भविष्य में जो कुछ हुआ, हो रहा है और
होगा, वह सब वेद से ही प्रसिद्ध होता है। वेद में आध्यात्मिक
ज्ञान तो है ही भौतिक विज्ञान की भी पराकाष्ठा है । वेद में धर्मशास्त्र, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुविज्ञान [गृह-निर्माण], कला-कौशल-विज्ञान, वायुयान विज्ञान, जलयान विज्ञान, वस्त्र वयन विज्ञान, मार्ग [सड़क निर्माण विज्ञान, शरीरविज्ञान, आत्म विज्ञान, योग विज्ञान, मनोविज्ञान,
चिकित्सा विज्ञान, औषधविज्ञान, पशु विज्ञान, यज्ञ विज्ञान, कृषि विज्ञान, मन्त्रविज्ञान आदि मनुष्य जीवन के लिए उपयोगी सभी कुछ है।
__ संसार प्रभु-प्रदत्त वेद
ज्ञान को भूल चुका था। १९वीं शताब्दी में आर्य समाज के संस्थापक, महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वेद का पुनः प्रचार और प्रसार किया। उनका उद्घोष
था-वेद की ओर लौटो' । आर्य समाज के नियमों में उन्होंने
लिखा-'वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है । वेद का
पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।'
' हमने महर्षि के वास्तविक
सन्देश को भुला कर स्कूल खोले, भवन बनाये, चिकित्सालय और वाचनालय खोले, परन्तु परम धर्म की ओर
ध्यान नहीं दिया। शिकायत यह होती रही कि वेद बहुत कठिन हैं, समझ
में नहीं आते। पं० श्री हरिशरणजी सिद्धान्तालङ्कार ने इस ओर ध्यान दिया। उन्होंने
आजीवन ब्रह्मचारी रहकर वेदों के पठन-पाठन में घोर परिश्रम किया। आपने चारों वेदों
का अत्यन्त सरल भाषा में भाष्य किया। भाष्य क्या वेदों की विस्तृत व्याख्या लिख
दी। कठिन समझे जानेवाले वेदों को अत्यन्त सरल बना दिया, जिससे
प्रत्येक व्यक्ति इन्हें पढ़ और समझ सके।
इस व्याख्या के सम्बन्ध में पाठक
कुछ बातों को समझ लें १. यह भाष्य न होकर वेदों की विस्तृत व्याख्या है। वेद का
ज्ञान प्रभु ने सृष्टि के आदि में दिया था। उस समय राजा और ऋषि-मुनि नहीं थे, अत:
वेद में इतिहास नहीं है। यह व्याख्या बीसवीं शताब्दी में लिखी गई है, अत: व्याख्या में कहीं उपनिषद के प्रमाण हैं, कहीं
गीता से अपनी व्याख्या को समर्थित किया है, कहीं महापुरुषों
के वचनों से। पाठक इसी दृष्टिकोण से इसे पढ़ें।
२. ऋषि मन्त्रिों के रचयिता नहीं
हैं,
द्रष्टा हैं। मतभेद हो सकते हैं, परन्तु ऐसी
मान्यता भी है कि वेदमन्त्रों पर जिन ऋषियों के नाम दिये हुए हैं, वे भी अर्थ में सहायक हैं। ऋषि कहता है'ऐसे वाक्य
आते हैं। उसका तात्पर्य केवल इतना ही है कि मन्त्रद्रष्टा [मन्त्र के अर्थों का
साक्षात्कार करनेवाला ऋषि] कहता है। आज भी कोई भी व्यक्ति उन गुणों को जीवन में
धारण करके ऋषि बन सकता है।
वेद के अर्थ अनेक प्रक्रियाओं में
होते हैं । दो प्रक्रियाएँ हैं-पारमार्थिक और व्यावहारिक। इस भाष्य में इन्हीं
प्रक्रियाओं में अर्थ किया गया है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि इस भाष्य
से वेदों को पढ़ने और समझने में पाठकों को सुविधा एवं सरलता होगी।
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