अनाज का
दाना मुर्गी के अंडे के समान
लीयो
टालस्टाय
अनुबादक
मनोज पाण्डेय
एक दिन कुछ बच्चों ने एक घाटी के मध्य में एक अनाज के दान के समान वस्तु को
पाया, जो मुर्गी के अण्डे के आकार का था। उधर से उसी समय एक यात्री गुजर रहा था,
उसने उन बच्चों से उस अण्डे के अकार वाले अनाज के समान वस्तु को, उन बच्चों को कुछ
पैसे दे कर खरीद लिया। और वह उसे लेकर नगर में राज के पास गया, और राजा ने उस
वस्तु को उससे जिज्ञासा वस खरीद लिया।
राजा ने अपने सभी विद्वान और
बुद्धिमान लोगों को अपने पास बुलाया और उनसे कहा कि तुम सब यह पता लगाओ, कि यह वस्तु
क्या है? सभी
बुद्धिमान मनुष्यों ने बहुत दीमाग लगाया, और खुब सोच विचार किया, लेकिन उन्हें यह जानने
में किसी भी प्रकार की कोई सफलता नहीं मीली, कि वह कौनसी वस्तु है, उन्हें यह नहीं
पता चल सका की उसका शीर पैर कहां हैं। एक दीन के बाद जब वह वस्तु एक खीड़की के पास
पड़ी थी तभी एक मुर्गी उड़ कर उसके पास आई, और उसने उस वस्तु पर अपने चोंच से कई
बार चोट किए जिससे उस वस्तु में थोड़ा सुराख हो गया। तभी सभी लोगों ने उसे ध्यान
से देखा और यह निर्णय किया की यह अनाज का दाना है।
जिसके बाद बुद्धिमान आदमी राजा के पास
गए, और राजा से कहा की वह एक अनाज का दाना है।
बुद्धिमानों के इस उत्तर को सुन कर
राजा को आश्चर्य हुआ, राजा ने इसके बाद उन बुद्धिमानों से कहा कि तुम लोग यह पता
कर के मुझे बताओ कि इस प्रकार का अनाज का दाना कब और कहां पर उतपन्न किया जाता है? बुद्धिमान आदमीयों ने एक बार फिर से सोचना
विचारना, और अपने पवित्र पुस्तकों में जांच पडताल करना शुरु कर दिया, लेकिन उन्हें
अपनी किताबों में किसी भी प्रकार की कोई जानकारी, उस अनाज के दाने के बारे में
नहीं मिली, इसलिए एक बार फिर वह राजा के पास वापिस गए और राजा से कहा-
इसका प्रश्न का हम कोई उत्तर नहीं दे
सकते हैं, क्योंकि हमारी किताबों में इस अनाज के दाने के बारे में, किसी प्रकार की
कोई जानकारी नहीं हैं। इसके बारें में आप किसानों से बात कर सकते हैं, शायद वह
इसके बारे अपने पुरखों या पिताओं से सुना हो, कि कब और कहां, इस प्रकार का अनाज का
दाना उत्पन्न हुआ करता था।
इस प्रकार से राजा ने अपने राज्य के पुराने
किसानो को बुलाने के लिए अपने सेवकों को राज्य में चारों तरफ भेजा। राजा का आदेश
पा कर, सेवक राज्य के कुछ ऐसे किसानो को बुला कर राजा के सामने ले आय़े, जिसमें एक
बृद्ध था, जो झुक कर दो बैशाषियों के सहारे बड़ी सी मुश्किल से चल पा रहा था, वह
राजा के पास आया।
राजा ने उस बृद्ध को उस बड़े अनाज के
दाने को दिखाया, वह बृद्ध बड़ी किसान मुश्किल से देख पाया, और उसे अपने हाथ में
उठा कर उसको महसूस करने लगा, राजा ने उससे प्रश्न करते हुए पुछा, बृद्ध पुरुष क्या
तुम इस आनाज के दाने के बारें में बता सकते हो, कि इस प्रकार के अनाज के दाने कब
और कहां पैदा किये जाते थे। क्या तुम ने कभी इस प्रकार के अनाज के दाने को कभी
देखा या खरीदा या फिर किसी खेत में उगा हुआ पाया है।
उस बृद्ध आदमी का दांत झढ़ चुके थे,
और उसको बहुत कम सुनाई देता था, जिसके कारण वह राजा की बात को बड़ी मुश्किल से सुन
पाया और राजा की बात को समझ पाया। कुछ समय के बाद उसने अंत में कहा मैं ने इस
प्रकार का नाज का दाना कभी भी कहीं भी नहीं देखा हैं, ना अपने जीवन में कभी कहीं
पर खरीदा या खाया है।
हमने जब से अनाज को खरीदना शुरु किया
है, तभी से यह अनाज ऐसे ही हैं, जैसा कि आज हमें दिखाइ देते हैं, यद्यपि इसके
बारें में आप मेरे पिता जी से पुंछ सकते हैं। शायद वह इस प्रकार के अनाज के दाने
के बारे में कुछ जानते हो, और वह आपको इसके बारें में कुछ बता सकें, कि कहां और कब
इस प्रकार के अनाज के दाने का उत्पादन किया जाता था।
इसके बाद राजा ने उस बृद्ध आदमी के
पिता को अपने पास बुलाया, वह बृद्ध आदमी राजा के पास एक बैशाषी के सहारे से चल कर
आया, राजा ने उसे अनाज के बड़ें दाने को दिखाते हुए उससे भी वहीं प्रश्न किया कि
क्या तुमने अपने जीवन में कभी इस प्रकार के अनाज कके दाने को देखा है, या कभी अपने
खेतों में बोया या काटा है, या कभी बाजार से खरीदा है?
हांलाकि उस आदमी को सुनने में कोई खास
दिक्कत नहीं नहीं थी, वह अब भी अपने पुत्र से अच्छा सुन सकता था, उसने कहा नहीं।
मैं ने कभी इस प्रकार के अनाज के दाने को ना ही देखा है, और ना ही कभी खेतों में बोया
या काटा हैं, और ना ही कभी हमने इस प्रकार के अनाज को खरीदा ही है। क्योंकि मेरे समय
में रूपये का उपयोग किसी वस्तु को खरीदने और बेचने के लिए नहीं किया जाता था। हर
आदमी अपने उपयोग के लिए स्वयं अनाज को उत्पन्न किया करता था, और जब भी कभी किसी को
अनाज की जरूरत होती थी, तो हम सब अपने अनाज को उस जरूरतमंद को दिया करते थे। हमारे
समय में आज के अनाज दाने से बड़ा दाना हुआ करते था, और उनमें आज के अनाज के दाने से
कहीं अधिक आटा भी तैयार होता था। लेकिन मैंने कभी भी अपने जीवन में इस आकार का
आनाज नहीं देखा है, यद्यपि मेरे पिता मुझसे कहा करते थे कि उनके समय में अनाज
हमारे समय के अनाज के दाने से बड़े दाने हुआ करते थे, और उसमें हमारे समय के अनाज
के दाने से ज्यादा आटा भी तैयार हुआ करता था. आपके लिए यहीं अच्छा होगा कि आप इसके
बारे में मेरे पिता जी से पुंछ सकते हैं।
जिसके बाद राजा ने उस बृद्ध आदमी के
पिता को अपने पास बुलाया, जब उस बृद्ध आदमी को राजा के सामने लाया गया तो वह बिना
किसी बैशाषी के सहारे ही अपने पैरों पर चलता हुआ आया, उसकी आखों में अद्भुत और स्पष्ट
चमक थी, उसके सुनने की शक्ति भी बहुत अच्छि थी, वह बिना किसी व्यवधान के बात भी कर
सकता था, राजा ने उस बृद्ध आदमी को भी उस अनाज के बड़े दाने को दिखाया, बृद्ध दादा
जी ने बड़े ध्यान से उस बड़ें अनाज के दाने को देखा, और अपने हाथ में उठा कर उसे देखने
लगा, उस बृद्ध दादा जी ने कहा की इस प्रकार के अनाज के दाने को मैं बहुत दिनों के
बाद देख रहा हूं, इसके साथ ही उस बृद्ध ने अपने दांतों से दाने के एक छोटे से
टुकड़े को काट कर अपने मुंख में डाल कर उसका स्वाद लेने लगा। औऱ कहा यह बिल्कुल
उसी प्रकार का है जैसा हमारे समय में हुआ करता था।
राजा ने कहा दादा जी हमें बताइये, कब
और कहां इस प्रकार के अनाज उगाये जाते थे, क्या आपने कभी इस प्रकार के अनाज को
खरीदा है, या फिर कभी अपने खेतों में बोया और काटा है।
उस
बृद्ध आदमी ने राजा के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, इस प्रकार के अनाज के दाने,
हमारे समय में हर तरफ बोये और काटे जाते थे, हम इसी प्रकार के अनाजों पर ही, अपने बचपन
में निर्वाह किया करते थे, और दूसरों को भी इसी प्रकार के अनाजों को खाने के लिए दिया
करते थे। यह वहीं अनाज है जिसकों हम अपने खेतों में बोया और काटा करते थे।
राजा नें उस बृद्ध की बातों को सुन कर
कहा- दादा जी हमें बताइये, कि क्या इस प्रकार के अनाज को कभी खरीदा है।
इस पर वह बृद्ध आदमी हंसते हुए कहा,
मेरे समय में इस प्रकार से कोई वस्तु खरीदने और बेचने का कार्य नहीं होता था, लोग
बेंचने और खरीदने के कार्य को पाप समझते थे, हर आदमी के पास अपने लिए स्वयं का
पर्याप्त आनाज हुआ करता था।
तब राजा ने कहा दादा जी मुझे बताइए,
आपका खेत कहां हैं, जहां पर आप इस प्रकार के अनाज को पैदा करते थे, इस पर दादा जी
ने उत्तर दिया। मेरा खेत ईश्वर का खेत हुआ करता था, जहां पर भी हम जुताइ करते थे
वहीं पर हमारा खेत हो जाता था, जमीन मुक्त थी, यहीं एक वस्तु थी जिसे कभी कोई अपना
नहीं कहता था।
राजा ने कहा मुझे मेरे दो प्रश्नों का उत्तर
दिजीए, पहला प्रश्न पृथ्वी पर इस प्रकार के अनाज के होने की क्या वजह थी, और आज
ऐसा क्यों नहीं हो रहा है? दूसरा प्रश्न क्यों आप का नाती दो बैशाषी पर चल कर आया, और आपका पुत्र केवल
एक बैशाषी पर चल कर आय़ा, और आप स्वयं बीना किसी बैशाषी के ही हमारे पास चल कर आए
हैं। आपकी आँखें भी चमकिली और स्पष्ट देखने के साथ आप के सुनने की शक्ति अच्छी
हैं, आपके दांत अभी मजबूत हैं, यह सब कैसे हुआ?
इस पर उस
बृद्ध आदमी ने राजा के प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा, ऐसा इसलिए है क्योंकि आज आदमी
अपने स्वयं पुरषार्थ पर आश्रीत नहीं हैं, वह किसी दूसरे के उपर निर्भर रहता है,
पुराने समय में हम लोग ईश्वर के बनाये नीयम का पालन करते थे, उनके पास वहीं होता
था, जो उनका स्वयं का होता था, वह कभी भी किसी दूसरों की वस्तु का लालच नहीं करते
थे।
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