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नशा त्यागो

 

नशा त्यागो

सत कबीरदास करघे पर कपड़ा बुनते रहते थे। उनके पास प्रतिदिन कई जिज्ञासु आते थे, जिन्हें तर्कपूर्ण प्रमाण देकर वे कल्याण का मार्ग सुझाते । अपने पास आने वालों को वे दुर्व्यसनों से सदैव दूर रहने की प्रेरणा दिया करते थे ।

एक बार तीर्थयात्रा करते हुए कुछ साधु काशी पहुँचे। वे कबीर के दर्शन के लिए भी पहुँचे। वे चिलम सुलगाकर तंबाकू पीने लगे । कबीर ने साधु से पूछा, तंबाकू के नशीले धुएँ से तुम्हें क्या फायदा होता है ? उसने कहा, कुछ क्षण के लिए मस्ती में खो जाता हूँ ।

कबीर ने कहा, पागल, इस विषैले पदार्थ के कारण तू अपने शरीर को जला रहा है । यदि वास्तव में सच्ची मस्ती का अनुभव करना चाहता है, तो राम नाम का नशा चढ़ाकर देख । तंबाकू का विष मन- मस्तिष्क और शरीर को विकृत करता है , जबकि भगवान् के नाम का नशा उसे पवित्र करता है ।

कबीर के शब्दों ने जादू का काम किया और उस साधु ने चिलम फेंककर भविष्य में नशा न करने का संकल्प लिया । एक बार एक व्यक्ति ने कबीरदास से पूछा, बाबा , भला संसार के प्रपंच में फँसकर भगवान् को कैसे याद किया जा सकता है ?

___ कबीर ने कहा, ज्यों तिरिया पीहर बसै, सुरति रहै पिय माहि । ऐसे जग जन में रहैं , हरि को भूलत नाहिं , जैसे पत्नी पीहर में दूर रहते हुए भी पति के ध्यान में लीन रहती है, उसी प्रकार मनुष्य संसार के कार्यों में जुटे रहते हुए भी भगवान् के चिंतन में क्यों नहीं लगा रह सकता ?


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