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संत की अनूठी निर्भीकता

 

संत की अनूठी निर्भीकता

 


राम में एक संत थे बाजिल । वे लोगों को सदाचार व धर्म के अनुसार चलने की प्रेरणा देने के साथ ही अन्याय के आगे न झुकने पर भी जोर देते थे। रोमन सम्राट् बहुत दुर्व्यसनी और अत्याचारी था । उसके कर्मचारी प्रजा पर जुल्म करते थे। सम्राट चौबीसों घंटे नशे में धुत रहकर मौज- मस्ती में लगा रहता था । जो कोई उसका विरोध करता, उसे फाँसी पर लटका दिया जाता ।

राजा के अत्याचारों की घटनाएँ सुनकर संत बाजिल ने खुलकर उसका विरोध शुरू कर दिया । राजा तक यह बात पहुँची । वह जानता था कि संत का जनता पर अमिट प्रभाव है । यदि उनके साथ सख्ती बरती गई, तो प्रजा विद्रोह पर उतारू हो जाएगी ।

राजा ने अपने दूतों द्वारा उन्हें संदेश भिजवाया, आप कुटिया में रहकर दयनीय जीवन बिता रहे हैं । आपके नाम संपत्ति कर दी जाएगी । जीवन आनंदमय बीतेगा। राजा का विरोध बंद कर दो ।

एक दूत ने यह भी धमकी दे डाली कि अगर राजा अपनी मरजी पर उतर आया, तो आपको देश से निकाल देगा ।

संत बाजिल ने राजा को कहलाया, मैं इस देश की प्रजा का दिया खाता हूँ । मेरा कर्तव्य है कि उसकी रक्षा के लिए तत्पर रहकर अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा देता रहूँ । राजा मेरे शरीर को नष्ट कर सकता है, आत्मा को नहीं ।

यह बात सुनकर राजा का विवेक जाग उठा । पहली बार उसका पाला एक निर्भीक महात्मा से पड़ा था । वह स्वयं उनकी कुटिया में पहुँचा और भविष्य में अत्याचार न करने का संकल्प लिया । 

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