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मुक्ति का साधन

मुक्ति का साधन

संत फजील-बिन - अयाज युवावस्था में शरारती थे। एक फकीर के सत्संग नेउन्हें दुर्गुणों से मुक्ति दिलाई। उनका मन हर समय भगवान् की याद में खोया रहने लगा और वे दीन -दुखियों की सेवा के लिए तत्पर रहने लगे । आगे चलकर वेसिद्ध फकीर के रूप में प्रसिद्ध हुए ।

एक दिन खलीफा हारूं - अल -रशीद उनके सत्संग के लिए पहुंचे। उन्होंने गुजारिश की , अल्लाह ने आप पर असीमित कृपा की है । मुझे अपने जीवन के अनुभव की कुछ नसीहतें देने की कृपा करें । संत अयाज ने बताया, एक दिन मैंने अल्लाह से चाहा कि वह मुझे सरदार बना दे। उसने मुझे इंद्रियों का सरदार बना दिया । सभी इंद्रियाँ मेरे अधीन रहने लगीं । इंद्रियों के अधीन रहकर मैं जो गलत कार्य करता था, वे सारे छूट गए । एक दिन फिर मैंने अल्लाह से कहा कि मुझे निजात ( मुक्ति ) पाने का तरीका बताएँ । उन्होंने कहा, बूढ़ों की सेवा कर , बीमारों और असहायों की मदद कर । नेकी करने से निजात मिल जाएगी । मैंने ऐसा ही किया । मुझे निजात मिल गई । अल्लाह ने मेरे कल्याण का साधन बताते हुए कहा कि किसी का दिल कभी न दु: खाना । खुद ही कल्याण हो जाएगा । मैंने उस दिन से वही किया ।

खलीफा ने कुछ धन उनके चरणों में रखा, तो वे बोले, बिना हक का धन दोजख ( नरक ) में डालता है । इसे वापस ले जाएँ । खलीफा ने ऐसा ही किया और उनसे अमूल्य नसीहत लेकर वे वापस लौट गए । 

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