धर्म आचरण का विषय
है
भगवान् बुद्ध शिष्यों सहित धर्म प्रचार करते हुए बिहार के एक गाँव में
पहुँचे। अनेक स्त्री - पुरुष उनका सत्संग करने व उनके प्रवचन सुनने आए । प्रवचन के
बाद बिंदास नामक एक जिज्ञासु ने तथागत से प्रश्न किया, प्रभु, सच्चा सुख कैसे मिलता है? क्या धार्मिक उपासना पद्धति से ही सुख व मोक्ष की प्राप्ति होती
है ? तथागत ने जवाब दिया, जो सत्य, अहिंसा और शील को अपनाता है और सदाचार पर अटल रहता है, उसी को सच्चा सुख मिलता है । सत्य का पालन
करने वाले में ऐसी अनूठी शक्ति होती है कि लोग बरबस उसकी ओर आकृष्ट हो जाते हैं ।
जो अपने माता-पिता और वृद्धजनों की सेवा करता है और उन्हें संतुष्ट रखता है, उसे जो आत्मिक तृप्ति मिलती है, वह अन्य को मिलना दूभर है ।
उन्होंने आगे कहा — कर्मकांड या पुरानी बातों के अंधानुकरण को धर्म नहीं कहते । धर्म का अर्थ है, कर्तव्य और सदाचार । यह दिखावे के लिए नहीं , आचरण की वस्तु है । जो व्यक्ति धर्मानुसार
जीवन जीता है, वह इहलोक व परलोक, दोनों में आनंद प्राप्त करता है । कुछ क्षण
रुककर भगवान् बुद्ध ने कहा, आत्मसंयम, श्रद्धा, शील और सत्य पर दृढ़ रहते हुए तृष्णा और
अहंकार से सर्वथा मुक्त हो जाने वाला व्यक्ति ही मोक्ष का अधिकारी होता है । मोह -
लालच ऐसे अवगुण हैं, जो मानव को जन्म
- मृत्यु रूपी कीचड़ में फँसाए रखते हैं । अत: सबसे पहले तृष्णा, मोह और ममता से मुक्ति पाने का संकल्प लेना
चाहिए । बिंदास यह सुनकर तथागत के चरणों में झुक गया ।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know