🚩‼️ओ3म्‼️🚩
🕉️🙏नमस्ते जी
दिनांक - - 3 अप्रैल 2025 ईस्वी
दिन - - रविवार
🌘 तिथि--दशमी (16:43 तक एकादश)
🪐 नक्षत्र - - धनिष्ठा ( 12:07तक माप शतभिषा )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - वैशाख
ऋतु - -ग्रीष्म
सूर्य - - उत्तरायण
🌞सूर्योदय - - सुबह 5:48 बजे दिल्ली में
🌞सूरुष - - सायं 18:52 पर
🌘चन्द्रोदय--27:21 पर
🌘 चन्द्रास्त - - 14:05 पर
सृष्टि संवत - - 1,96,08,53,126
कलयुगाब्द - - 5126
सं विक्रमावत - -2082
शक संवत - - 1947
दयानन्दबाद - -201
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🚩‼️ओ3म् ‼️🚩
🔥उद्यमशील दान श्रद्धा परमार्थ करो
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ईश्वर ने मनुष्य को परिश्रम के लिए, पुरुषार्थ के लिए, कर्म को बनाया है इसलिए धर्म मार्ग पर चलते हुए तप कर सकें। यही मानव जीवन का ध्येय है। जो भी कर्म मनुष्य अपने लिए श्रम करता है उसे ही करना चाहिए, टैप भी करना चाहिए। लगन, निष्ठा, एकाग्रता ही तप है। इसी से कर्म सफल होता है। हम अच्छे कर्म कर सकते हैं या बेल, लेबर और टैप के बिना, पुरूषार्थ के बिना कुछ भी नहीं कर सकते।
दिन में चौबीस घंटे होते हैं। गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर हैं। गायत्री मंत्र का देवता है जो हमें प्रेरणा देता है कि सूर्य के समान युवा बनों। सदैव अपने कर्म पथ पर अविचल बढ़ते रहो। कैसा भी दोस्त, कितना भी बड़ा भाई, हमारी सूची पर नहीं।
लेकिन आज भी इंसान के रग-रग में समाता जा रहा है। वह बिना कुछ सीखे यहां ही सब कुछ पाना चाहती है। उनकी मशीनरी विखंडित हो रही है। उनका विचार है कि ईश्वर की जो भक्ति होगी वही होगी इसलिए कर्तव्यपालन का श्रम करने की लम्बी भूखा सासा या देवी देवताओं की मनौती ही ठीक है। वह यह भूल गई है कि रूढ़िवादी का जन्मदाता वह स्वयं है। अपने भाग्य का निर्माण भी वह स्वयं ही करती है। श्रम से बचने के लिए वह कई कंपनियों की खोज कर रही है और भाग्य के मत्थे के रूप में असफल होकर संतोष करना चाहती है। उसके भागों का अंतिम प्रारूप यहीं मौजूद है। पुरुषार्थ करने के विपरीत भी हमारे अनुकूल होते चले जाते हैं। भगवान भी पुरुषार्थी की सहायता करते हैं और असफलता में भी सफलता प्राप्त करते हैं।
अलस्य पुरुषार्थ का प्रबल शत्रु है। अलस्या सभी दुर्गुणों का मूल है। यह मनुष्य के विकास में बहुत बड़ा सिद्धांत है और जीवन के मूल्य को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है। अल्फी व्यक्ति कार्य में टालमटोल करता है जो शनैः शनैःसे उपयोगी बनाता है। उसे सर्वत्र फ्रेम हाथ ही दिखता है। डिस्ट्रक्टिव मैन का विवेक भी नष्ट हो जाता है और वह स्कॉटलैंड से स्कॉटलैंड का साहसिक कार्य भी नहीं करता है। जो भी क्षमता पहले से मौजूद है वह भी मंद और कुंड है। वह कुछ करना चाहता है तो अलस्या वश कुछ नहीं पाता। विचार को कार्यरूप में परिवर्तन करने का उत्साह ही नहीं जागता। जो अलस्या मूल्यवान समय नष्ट नहीं करता, समय का सदुपयोग करता है, सफलता उसका चरणबद्घ होती है। जो अपना कल्याण चाहते हैं, कीर्ति हैं, होलिका के भयंकर दोष को अपने जीवन से मूल रूप से उखाड़ कर फेंक देना चाहिए और उद्यमशील और मितभाषी बनकर श्रद्धा पार्क पुरुष
रहना चाहिए। इसी से अभीष्ट फल मिलता है
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🚩‼️मनुस्मृति / 3:50 ‼️🚩
🌷ओ3म् निन्धस्वष्टासु चान्यासु रातेषु वर्जयन्।
ब्रह्मचर्येव भवति यत्रतत्राश्रमे वसं:।
💐 अर्थात् ऋतुकाल ( स्त्री के मासिक धर्म वाले दिन १६ दिन-रात ऋतु काल कहलाता है ) के शुरू के चार दिन-रात , और ग्यारहवें तथा तेरहवें दिन-रात में स्त्री- भोग को त्यागने वाला व्यक्ति गृहस्थ होकर भी ब्रह्मचारी ही कहता है ।
यह है कि एक पत्नी व्रत का पालन करता है नियम संयमपूर्व, अति न काम करे तो भी ब्रह्मचारी ही होता है। इसके विपरीत और भारतीय सभ्यता के आचार-संहिता के पाप-कर्म हैं, रूढ़िवादी कर्म हैं, और सामाजिक दृष्टि से एक सामाजिक कुकृत्य है। स्वास्थ्य का नाश करने वाला ऐसा कोई दूसरा कर्म नहीं है।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पंचांग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्टयादिसंवत-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि-नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे
कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- षड्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२६ ) सृष्ट्यब्दे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८२) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधिकद्विशतीतमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , ग्रीष्म -ऋतौ, वैशाख - मासे, कृष्ण - पक्षे, दशम्यां तिथौ, धनिष्ठा - नक्षत्रे, बुधवासरे , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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