विद्वान कौन है?
ओ३म् अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्। युवोध्यस्मज्जुहुराणामेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम।। यजुर्वेद ४०,१६
यह मंत्र है इसमें विद्वान की बहुत सुन्दर व्याख्या कि है वह परमात्मा के समकक्ष है यह मंत्रों में बहुत उच्य अस्तर से विचार कीया जाता है साथ में उसके लिये अद्भुत अलंकारों का उपयोग किया जाता है कालजयी अपौरुषेश परमेश्वर के द्वारा स्वयं यह किसी मानव मस्तिस्क की कल्पना नहीं है यह मानव मस्तिस्क के सामर्थ से बाहर है यहां अग्नी कहा गया है अर्थात जो सभी प्रकार के भौतिक पदार्थों को भश्म करने कि क्षमता रखता है सिवाय पारा को छोड़ के पारा अर्थात जो मानव अस्तित्व की चेतना है पदार्थ अर्थात भौतिक संसार रुपी ब्रह्माण्डीय शरीर जो भश्म से बना है जिसे अंगार या कार्बन कहते है। विद्वान वह है जो चेतन है शरीर नही है शरीर का स्वामी है अग्नि के समान है वह अग्नि से श्रेष्ठ है लौकिक भाषा में उसे यहां अग्नि से संबोधित किया गया है। अर्थात जो बहुत वुद्धिमान है उसकी समझने की शक्ती अद्भुत अलौकिक अतिन्द्रिय विषय से परे जो निर्विषय है उसको देखने का जिसमें सामर्थ है। वह विद्वान हमें आज तक जो हम अपने ज्ञान से जानते ह उससे परे जो अज्ञात है वहा तक पहुचने का जो नये मार्ग का पुनः अन्वेषण करके साधरण जनो के लिेये शुलभ करता है। सुन्दर अद्वितिय मार्ग से जिस मार्ग से हमें हर प्रकार का लौकिक सांसारिक और परमार्थिक धन ऐश्वर्य भी प्राप्त हो जो सामान्य किस्म का ना हो असाधारण आश्चर्यमय उपलब्धियों से परिपुर्ण हो। ठीक उस प्रकार से जैसे सभी जीव के लिये वायु बहुमुल्य है सब उसके लिये लालाइत है और उसके लिये अपना सर्वस्व दाव पर लगाने के लिये तत्पर्य रहते है ऐसे ही विद्वान सभी भुमंण्डल विश्व के जीवों के लिये सहज सुलभ विद्यायों का दान करके उन्हे देवताओं के समकक्ष उपस्थित करते है उनमें एकत्व अस्थापित करते है। अर्थात जो सामान्य जन विद्वान के सम्पर्क में आता है तो वह विद्वान के तुल्य बन जाता है। यह उपर के एक लाइन के मंत्र का संभावित अर्थ है । आगे और बहुत कुछ है मै समझता हुं की अब आपके समस्या का समाधान होगया होगा।
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