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जीवन जंग हैं, यदि जिंदा रहना है, तो रोज इस संग्राम को लड़ना होगा


जीवन जंग है, 


यदि जिंदा रहना है, 
तो रोज इस संग्राम को लड़ना होगा

 

जीवन जंग हैं, यदि जिंदा रहना है, तो रोज इस संग्राम को लड़ना होगा, और किसी भी शर्त पर आपको इस जीवन की जंग को जितना ही होगा, भले ही आप का अस्तित्व समाप्त हो जाए, इसकी परवाह नहीं करनी है, आपको हौसला बनाये रखना होगा, और स्वयं पर भरोसे के साथ स्वयं को उत्साहित भी करना होगा, यहां पर लोग किसी की परवाह नहीं करते हैं, और कोई आपको आगे बढ़ने में सहायता भी करने वाला नहीं है। आप की हार पर आपकी असफलता पर, आप पर विपत्तियों के पहाड़ भी गिरेंगे, उनके भार को उठाना होगा, बीना किसी भी शिकायत के, क्योंकि यहीं इस संसार का नियम है, यहां पर लोग आपके साथ किसी पागल के समान व्यवहार करते हैं, स्वयं को सही और आपको गलत सिद्ध करने में ही स्वयं की काबिलीयत समझते हैं, आपको जीतना होगा अपने जीवन को बनाये रखने के लिए,  आपको रोज अपने लिए पहाड़ को खोद कर एक - एक कदम स्वयं को आगे बढ़ने के लिए रास्ता बनाना होगा। यहां पर सही और गलत को कोई नहीं समझता है, यहां पर सिर्फ लोग यह देखते हैं, की आपने किस प्रकार से लोगों की भीड़ को पछाड़ कर स्वयं को आगे कर लिया है, इस लिए कुछ समय तक आपकी शाबासी भी कर सकते हैं, यद्यपि आपको लोगों की शाबासी चाहिए, तो आपको निरंतर अपने सफलता के अभियान को जारी रखना होगा।  यदि ऐसा करने में आप सफल नहीं होते हैं, तो आपको अपनी मृत्यु के लिए तैयार रहना होगा, क्योंकि इस संसार में जब तक लोग सफलता के शिखर पर चढ़ते हैं, और सफलता के शिखर पर पहुंच कर वहां पर स्वयं को किसी भी तरह से शाम, दाम, दण्ड, भेद की नीति का उपयोग करके स्थित हमेशा एक जैसी बनाए रखने के लिए, अपनी शक्ति और जीवन ऊर्जा को खर्च कर देते हैं, और जब जीवन की शक्ति और ऊर्जा पूर्णतः समाप्त हो जाती है तो मृत्यु की गोद में हमेशा के लिए विश्राम अवस्था को प्राप्त होते हैं।

आप स्वयं ध्यान से लोगों के जीवन और उनके जीने के ढंग को देखिए, इस संसार में कितने दुःखी और परेशान लोग हैं, रोज सुबह प्रातः काल से सायं काल तक, लोग जी तोड़ परिश्रम करते हैं, ऐसा लोग क्यों करते हैं? आप ने ऐसा कभी सोचा है? लोगों से पुछा जाए, तो उनका सिधा सा उत्तर होता है, की भाई मुझे जीने के लिए खाना, पहनने के लिए कपड़ा, रहने के लिए घर, चलने के लिए गाड़ी चाहिए, और यदि उनके पास यह सारी वस्तु हैं, तो वह कहते हैं की इसको निरंतर बनाये रखने के लिए ऐसा करते हैं, एक दूसरे प्रकार के भी लोग भी यहां संसार में रहते हैं जिनके पास यह सभी वस्तु नहीं होती है, वह रोज कमाते हैं, और रोज खाते हैं, यदि वह किसी दीन कार्य नहीं करते हैं, तो वह उस दिन भूखे ही रहते हैं।  यह कैसा संसार है? जहां पर लोगों पास बहुत कुछ होने पर भी संतुष्ट नहीं है, और जिनके पास कुछ भी नहीं हैं, वह कैसे संतुष्ट हो सकते हैं, इसलिए ही मैं कहता हूं की लोग यहां पागल के समान हैं, यह पागलों के समान कार्य करते हैं, इनमें समझ नहीं नहीं हैं, जिसको यह समझ कहते हैं, उसमें बहुत अधिक मूर्खता भरी पड़ी है, आपको भी यहां पर यदि कुछ करके दिखाना है, तो पागलों के समान अपनी मस्ती में जीना होगा, किसी को आपकी परवाह नहीं है, तो आपको किसी की परवाह नहीं करनी चाहिए, पागल दो प्रकार के होते हैं, एक अपने कार्य को ले कर दीवाने पागल होते हैं, एक मस्तिष्क से पागल होते हैं, यहां पर ऐसा पागल बनना है जिसका मस्तिष्क पुरी तरह से सक्रिय हो। और ध्यान के साथ अपने जीवन को लेकर आग बढ़े।

मनोज पाण्डेय 

अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान

9305008616

  फिल्म जगत के उभरते युवा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत द्वारा आत्महत्या का समाचार देश व दुनिया में चर्चा का कारण बना हुआ है। सुशांत से केवल उसके परिवार को ही नहीं बल्कि फिल्म जगत को भी काफी उम्मीदें थीं। हाल ही में वह नये फ्लैट में गया था। जो वीडियो उसने सोशल मीडिया में डाली उससे स्पष्ट होता है कि वह खुश था लेकिन एकाएक उसकी मौत के समाचार ने सबको हैरान कर दिया। सुशांत की मुस्कान उसकी पहचान थी लेकिन उसकी मुस्कान के पीछे छिपा उसका अकेलापन शायद उसके दोस्तों तक को दिखाई नहीं दिया। सुशांत द्वारा की आत्महत्या का मुख्य कारण अवसाद ही बताया जा रहा है। पिछले कुछ समय से वह हताश व निराश था, उसका मुख्य कारण क्या था यह तो छानबीन के बाद ही सामने आयेगा। लेकिन एक बात तो कही जा सकती है कि कोरोना महामारी के कारण सुशांत का अकेलापन और निराशा और बढ़ गई और दबाव को न झेलते हुए उसने जिन्दगी को ही अलविदा कह दिया।

जालंधर में एक युवा आटो चालक ने रेलगाड़ी के आगे छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली। कारण उसने लॉकडाउन से पहले 40 हजार का कर्जा लिया था, वह वापस करने में मुश्किल हो रहा था। कर्जे के दबाव को न झेलते हुए उसने रेलगाड़ी के आगे छलांग लगा अपनी जीवन यात्रा को खत्म कर लिया। उपरोक्त घटनाओं से स्पष्ट है कि जहां कोरोना महामारी के कारण लोगों की मृत्यु हो रही है वहीं कोरोना के कारण लोगों के काम-काज पर जो कुप्रभाव पड़ रहा है उसके कारण लोग आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। लॉकडाउन के बीच ही हजारों की संख्या में मजदूरों का शहरों को छोडक़र घर जाने के लिए सडक़ों पर उतरना और नगे पांव घरों की ओर चल पडऩा दर्शाता है कि कोरोना का कितना डर लोगों के मनों में छाया हुआ है। यह लोग अपने सामने आई कठिनाइयों से जूझकर, उन पर विजय पाने में सफल रहे और आज इसी कारण चर्चा में भी हैं।

कोरोना महामारी से बचने के लिए लगे लॉकडाउन ने अमीर से लेकर गरीब तक के जीवन को अपने-अपने ढंग से प्रभावित किया है। एक समाचार अनुसार एक महिला अपनी कोख में आठ माह के पल रहे बच्चे को लेकर महाराष्ट्र के मनमाड़ से अपने घर अकोला के लिए निकल पड़ी। साथ में जो टोली थी, वह रास्ते में कहां छूट गई, उसे पता नहीं चला। घबराई तो प्रवासी मजदूरों के एक दूसरे समूह के पीछे चल पड़ी और ओडिशा के राउरकेला पहुंच गई। यहां प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। मिशन हॉस्पिटल दिखा तो जा पहुंची। लेकिन कोरोना का डर दिखाकर अस्पताल ने डिलीवरी से मना कर दिया। दर्द से सीमा के पांव थम गए। उसने सडक़ पर 17 मई को बच्चे को जन्म दिया। सीमा कहती है-‘मुझे डर था कि जीवित रहूंगी भी या नहीं। इसलिए पास के एक घर की महिला को बताया कि बच्चे को छोड़ कर जा रही हूं। कोई मुझे कोरोना के डर से छू नहीं रहा है। शायद मेरे बच्चे पर किसी को दया आ जाए।’ सीमा जिस महिला को बताकर गई थी उसने भी बच्चे को नहीं छुआ। उसने आंगनबाड़ी सेविका को बुलाया। बच्चे को अस्पताल ले जाया गया। प्रशासन सीमा को तलाशने लगा। अगले दिन 14 किमी दूर उसे ढूंढ लिया गया और थाने लाया गया। यहीं उसने बेटे को फिर देखा। दोनों अब सरकारी अस्पताल में हैं। प्रशासन ने उसका पता ढूंढ लिया है। वह बुलढाणा जिले की है। उसे जल्द ही घर भेजने की तैयारी है।

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के दौरान अनाथालय में बच्चे को छोडऩे की संख्या में वृद्धि हुई है। ओडिशा के सुन्दरगढ़ के ‘दिशा शेल्टर होम’ के सचिव अब्दुल कलाम के अनुसार अनाथालय में पहले महीने में एक दो-बच्चे ही आते थे लेकिन लॉकडाउन के दौरान 21 बच्चे आ चुके हैं। इनमें से कुछ को माता-पिता सडक़ पर ही छोड़ गए और कुछ नवजात हैं। लॉकडाउन के दौरान लाखों-करोड़ों लोग इधर से उधर हुए हैं। अधिकतर श्रमिक वर्ग ही था।

शहरों से अपने-अपने घर लौट गये इन लाखों-करोड़ों लोगों की कठिनाइयों व दु:खभरी परिस्थितियों को देखकर आदमी का दिल दहल जाता है। लेकिन इन लोगों ने यह संदेश भी दिया कि जीवन की जंग को जीता कैसे जाता है। एक लडक़ी अपने बीमार पिता को 1200 किलोमीटर साईकल पर अपने गांव तक ले गई। ऐेसी एक नहीं अनेक दर्दभरी घटनाएं हैं जो इंसान की मजबूरी को भी दर्शाती हैं। वहीं उसके बुलन्द हौसलों की मिसाल भी है। जीवन जीने के लिए मिला है, लेकिन कई बार इंसान इतना टूट जाता है कि वह जीवन की जंग को बीच में छोडक़र आत्महत्या की राह पर चल देता है। क्योंकि वह समझता है कि समय और परिस्थितियों का वह अकेला सामना करने में असमर्थ है। इस असमर्थता के समय ही इंसान को परिवार और समाज की आवश्यकता होती है और वर्तमान में धन कमाने की दौड़ में इंसान इन दोनों से दूर होता चला गया। कोरोना हमें एक अलग ढंग से जीवन जीने की कला सीखने को मजबूर कर रहा है। या यूं कह सकते हैं कि कोरोना हमें अपने परिवार व समाज का जीवन में क्या महत्व है उसको समझा रहा है। कारण कोई भी हो लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि जीवन की जंग को जीतने के लिए परिवार व समाज एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यह संदेश तो स्पष्ट है। सुशांत का यूं शांत होना भी तो हमें आत्मचिंतन करने को मजबूर कर रहा है।

         

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