ज्ञान
आज के समय
में यह शब्द बहुत अधिक प्रसिद्ध हैं, लेकिन इसका वास्तविक अर्थ लोग अब भूल चुके
हैं, क्योंकि आज हम सब जिस ज्ञान शब्द से परिचित हैं, उसका साधारण जो अर्थ समझा
जाता है, उसका मतलब है, कि जिसके पास किसी विषय की विशेष जानकारी है, उदाहरण के
लिए कोई व्यक्ति जो मिट्टी के बर्तन बनाना जानता है, तो लोग कहते है, की इसको बहुत
ज्ञान है, ऐसे ही कोई व्यक्ति लकड़ी के समान बनाना जानता है, बहुत सुन्दर सामान
बनाता है, तो उसको भी लोग कहते हैं, कि इस आदमी के पास भी बहुत अच्छा ज्ञान है,
इसकी प्रकार से कोई लोहे के सुन्दर सामान बनाता है, कोई सोने का अच्छा कारीगर होता
है, इन सभी को ज्ञानी या अच्छा ज्ञानवान व्यक्ति समझते हैं। इससे भी ऊपर कुछ बहुत
अधिक पढ़े लिखे होते हैं, उनको भी लोग ज्ञानी कहते हैं, इस प्रकार से ज्ञानी यहां
पर दो प्रकार के लोग होते हैं, एक तो काफी पढ़े लिखे और अपने विषय में काफी महारत
रखते हैं, और एक ऐसे व्यक्ति होते हैं, जो जिनको हम पढ़ा लिखा नहीं कह सकते हैं,
अर्थात जो बिल्कुल लिखना पढ़ना नहीं जानते हैं, फिर भी लोग उनकी कलाकृति को देख कर
उनको ज्ञानी कहते हैं। तो सत्य क्या है? क्या ज्ञान अनपढ़ बीना पढ़े लिखे लोगों के पास होता है, यदि
ज्ञान बिना पढ़े लिखे ही मील जाता है, तो पढ़ने लिखने क्या जरूरत है, इस तरह से
बड़े – बड़े दुनिया के जो प्रशिक्षण गृह विद्यालय, महाविद्यालय, और विश्व विद्यालय
वह सब बेकार सिद्ध हो जाएंगे, क्योंकि लोगों को ज्ञान बिना पढ़े लिखे ही जब
प्राप्त हो जाता है, तो अपने जीवन के बहुमूल्य समय को किताबों और गुरुओं के साथ
समय बिताने में क्यों व्यर्थ ही खर्च करना पड़ता है।
यह बात
बिल्कुल सत्य है, की दोनों के पास कला है, किसी विषय की अच्छी से अच्छी जानकारी
है, लेकिन इन दोनों के पास ज्ञान नहीं क्योंकि ज्ञान का वास्तविक अर्थ जो हम समझते
हैं वह नहीं है, ज्ञान का वास्तविक अर्थ होता है, जो जान से युक्त है, अर्थात जो
जीवन से युक्त है, वह ज्ञान वान है, क्योंकि ज्ञान शब्द की उत्पत्ति और सिद्धि जीव
से होती है, जीव से ही जान बना है, और जान से ही ज्ञान शब्द सिद्ध होता है।
ज्ञान का
मतलब इस प्रकार से हुआ की यह सभी जीवित वस्तु में विद्यमान है, लेकिन यह ज्ञान
परिष्कृत शुद्ध नहीं है, क्योंकि जब यह जीव भौतिक शरीर के संसर्ग में आता है, तो
वह दूषित हो जाता है, जिस प्रकार से शुद्ध जल को यदि मिट्टी के तालाब मिलाया दिया
जाए तो वह अशुद्ध हो जाता है, लेकिन यह जल जब तक आकाश में होता है, तभी तक शुद्ध
होता है, लेकिन जब पृथ्वी के संपर्क में आता है, तो अशुद्ध हो ही जाता है, बाद में
उसको बहुत प्रकार से शुद्ध किया जाता है, एक तो प्रकृति स्वयं जल को शुद्ध कर देती
दूसरा मानव अपने बुद्धि के द्वारा तरह – तरह की विधियों से उसको शुद्ध कर देता है।
इसी प्रकार
से ज्ञान जब तक मानव के अतिरिक्त दूसरे प्राणियों में रहता है तब तक उसको शुद्ध
होने का अवसर नहीं मिलता है, उसको सबसे अधिक अवसर ज्ञान को शुद्ध करने का मानव
शरीर में ही मिलता है, क्योंकि मानव शरीर के पास जो मस्तिष्क है जब वह विवेक से
भरा होता है, तो वह स्वयं के जीवन अर्थात ज्ञान को शुद्ध कर लेता है, इस प्रकार से
हम इस नतीजे में पर पहुंचे हैं की जो बहुत अधिक पढ़ा लिखा है, या जो बिलकुल ही पढ़ा
लिखा नहीं है, ज्ञान रूप जीवन या जीव या जान तो दोनों के पास विद्यमान है, लेकिन
वह पूर्ण शुद्ध ज्ञान नहीं है, जिस प्रकार से अशुद्ध पानी हमारे शरीर और जीवन के लिए
खतरनाक होता है, उसी प्रकार से हमारा अशुद्ध ज्ञान भी हमें जीवन से दूर और मृत्यु
के करीब ले जाता है।
जो व्यक्ति
जितना अधिक जीवंत ऊर्जा से भरा है, वह उतना ही अधिक ज्ञान वान है, क्योंकि उसके
लिए किसी को किसी प्रकार की शिक्षा लेने की जरूरत नहीं पड़ती है, कैसे कोई व्यक्ति
अपने स्वयं के बारे में दूसरे से जान सकता है, और दूसरे से अपने बार में ज्ञान प्राप्त
करना चाहता वह अपन जीवन से अर्थात ज्ञान के मार्ग स च्युत हो जाता है।
ज्ञान का
मतलब होता है, जो अपन अनुभव स जीता है, जिसको स्वयं को शुद्ध करने के लिए किसी
दूसरे के अनुभव की जरूरत नहीं पड़ती जो अपने बोध से ही अपने को निखार लेता है,
जैसे की हमारे ऋषियों ने किया है, हम सब भी ऋषियों की संतानें हैं, इसलिए हमारे
अंदर भी वहीं चेतना है जो ज्ञान से भरी है, जरूरत
है तो केवल अपने आपको परिपूर्ण स्वीकारने की और निरंतर स्वयं पर श्रद्धा को विकसित
करना है, अपने आत्म बल को विकसित करना है, जीवन को जीने के लिए पुरुषार्थ और
सक्रियता की जरूरत है। जिस प्रकार से गंदा से गंदा जल भी जब वह सूर्य की दहकती
ज्वाला के सामने आता है तो वह उसके तेज और ज्वलन शीलता से परिष्कृत अर्थात शुद्ध
हो कर वह वाष्प बन जाता है, और सूर्य की किरणों पर सवार हो कर वह अनंत अंतरिक्ष
में गमन करता है, और वह उस अंतरिक्ष में अपना आसरा बादल के रूप में बना लेता है,
और फिर शुद्ध जल के रूप में पृथ्वी पर बरसता है, इसी प्रकार से हमारा ज्ञान भी जब
संसार रूप शरीर की पीड़ा का सच्चा साक्षात्कार कार करता है, तो वह शरीर से ऊपर उठ
कर अपने अंतःकरण में विद्यमान चेतन जगत में ध्यान के माध्यम से रमण करता है और जब
वह शरीर से संबंधित होती है तो वह उसी प्रकार से कार्य करता है जो कार्य अंतरिक्ष
से शुद्ध बरसने वाला जल करता है। इसलिए जल को ही जीवन कहते हैं। जल और जीव की समान
गति है, जिस प्रकार से जल को शुद्ध होने के लिए उसको सूर्य के संपर्क में आना होता
है उसी प्रकार स जीव अर्थात ज्ञान को शुद्ध होने के लिए तपस्या की भट्टी में तपना
पढ़ना है।
तपस्या का
मतलब सिधा और बहुत सरल है, तपस्या अर्थात जीव जो शरीर में रहता है वह शरीर के
द्वारा अथवा शरीर में होने वाले सभी संवेगों को अर्थात काम क्रोध लोभ मोह शोक दुःख
सुख मान अपमान आशा निराशा लाभ हानि जय पराजय में सम रहता है। र जिसमें यह सामर्थ्य
विकसित हो चुका है वहीं सच्चा ज्ञानी है। और जो अभी शरीर की वासनाओं से बंधे हैं
उनको ज्ञान की साधना की परम आवश्यकता है।
लेखक मनोज पाण्डेय
अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान
Knowledge
In today's time,
this word is very famous, but people have forgotten its real meaning, because
the simple meaning of the word that we are all familiar with today, it means
that one who has the knowledge of any subject. There is special information,
for example a person who knows how to make pottery, then people say that he has
a lot of knowledge, similarly a person knows how to make like wood, makes very
beautiful things, then people say that too. It is said that this man also has
very good knowledge, in this way someone makes beautiful articles of iron,
someone is a good craftsman of gold, all of them are considered as
knowledgeable or good knowledgeable person. On top of this, some are very
educated, they are also called wise, in this way there are two types of people
here, one is very educated and has a lot of mastery in his subject, and there
is such a person. Those who we cannot call educated, that is, those who do not
know how to read and write at all, yet people see their artwork and call them
wise. So what is truth? Is the knowledge available to the illiterate,
uneducated people, if the knowledge goes without being educated, then what is
the need of reading and writing, in such a way that the training home schools,
colleges, and universities of the big world are all useless. Will be proved,
because when people get knowledge without reading it, then why have to spend
the valuable time of their life in spending time with books and gurus.
It is absolutely
true that both have the art, the best knowledge of a subject, but both of them
do not have knowledge because the real meaning of knowledge is not what we
understand, the real meaning of knowledge is, which He is endowed with life,
that is, one who is endowed with life, he is the van of knowledge, because the
word knowledge is originated and accomplished from the soul, life is made from
the soul, and the word knowledge is proved by knowing.
Knowledge is meant
in such a way that it is present in all living things, but this knowledge is
not refined pure, because when this living entity comes in contact with the
physical body, it becomes contaminated, just as pure water if When mud ponds are
mixed, it becomes impure, but as long as this water is in the sky, it is pure,
but when it comes in contact with the earth, it becomes impure, later it can be
treated in many ways. One, nature itself purifies the water, secondly human
beings purify it by various methods through their intellect.
Similarly, as long
as knowledge resides in other beings other than humans, it does not get the
opportunity to be purified, it gets the most opportunity to purify knowledge
only in the human body, because the brain that the human body has when If he is
full of wisdom, then he purifies his own life i.e. knowledge, in this way we
have come to the conclusion that one who is very educated, or who is not
educated at all, lives in the form of knowledge. Either Jiva or life is present
with both, but that is not complete pure knowledge, just as impure water is
dangerous for our body and life, in the same way our impure knowledge also
takes us away from life and near to death. goes.
The more a person
who is full of living energy, the more knowledgeable he is, because for that
one does not need to take any kind of education, how one can know about oneself
from others, and others. Wanting to get knowledge about himself, he gets lost
from his life i.e. from the path of knowledge.
Knowledge means
one who lives by his own experience, one who does not need someone else's
experience to purify himself, who refines himself by his own realization, as
our sages have done, we all too We are the children of sages, so we have the
same consciousness that is full of knowledge, all we need is to accept
ourselves as perfect and develop faith in ourselves continuously, develop our
self-power, to live life. It takes effort and activism. Just as even the dirty
water, when it comes in front of the burning flame of the sun, it is purified
by its flammability and flammability, that is, it becomes vapor, and riding on
the rays of the sun, it travels in infinite space. And it makes its shelter in
that space in the form of a cloud, and then it rains on the earth in the form
of pure water, in the same way our knowledge also when the world form gives a
true realization of the pain of the body, then He rises above the body and
enjoys through meditation in the conscious world present in his conscience and
when it is related to the body, he acts in the same way as pure raining water
from space. That's why water is called life. Water and living beings have the
same speed, just as water has to come in contact with the sun to be purified,
similarly the soul, that is, to be purified of knowledge, has to study in the
furnace of penance.
The meaning of
tapasya is simple and very simple, austerity means that the living being who
lives in the body, he is able to control all the emotions caused by the body or
in the body i.e. lust, anger, greed, attachment, sorrow, happiness, dishonour,
hope, disappointment, profit, loss, victory and defeat. The one in whom this
power has been developed is the true Gnani. And those who are now bound by the
desires of the body Knowledge is an
absolute necessity.
Writer Manoj
Pandey
President
Knowledge Science Theology
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