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मनःस्थिति के अनुरूप ही चुनाव

👉 मनःस्थिति के अनुरूप ही चुनाव

 

🔷 एक सिद्ध पुरुष नदी में ध्यान कर रहे थे। एक चुहिया पानी में बहती आई। उसने उसे निकाल लिया। कुटिया में ले आये और वह वहीं पल कर बड़ी होने लगी।

 

🔶 चुहिया सिद्ध पुरुष की करामातें देखती रही, सो उसके मन में भी कुछ वरदान पाने की इच्छा हुई। एक दिन अवसर पाकर बोली- ''मैं बड़ी हो गई, किसी वर से मेरा विवाह करा दीजिए।''

 

🔷 संत ने उसे खिड़की में से झाँकते सूरज को दिखाया और कहा-''इससे करा दें।'' चुहिया ने कहा-''यह तो आग का गोला है। मुझे तो ठंडे स्वभाव का चाहिए।'' संत ने बादल की बात कही-''वह ठंडा भी है, सूरज से बड़ा भी। वह आता है, तो सूरज को अंचल में छिपा लेता है।'' चुहिया को यह प्रस्ताव भी रुचा नहीं। वह इससे बड़ा दूल्हा चाहती थी।

 

🔶 संत ने पवन को बादल से बड़ा बताया, जो देखते- देखते उसे उड़ा ले जाता है। उससे बड़ा पर्वत बताया, जो हवा को रोक कर खड़ा ले जाता है। जब चुहिया ने इन दोनों को भी अस्वीकार कर दिया, तो- सिद्ध पुरुष ने पूरे जोश-खरोश के साथ पहाड़ में बिल बनाने का प्रयास करते चूहे को दिखाया। चुहिया ने उसे पसंद कर लिया, कहा-''चूहा पर्वत से भी श्रेष्ठ है; वह बिल बनाकर पर्वतों की जड़ खोखली करने और उसे इधर से उधर लुढ़का देने में समर्थ रहता है।

 

🔷 एक मोटा चूहा बुलाकर संत ने चुहिया की शादी रचा दी। उपस्थित दर्शकों को संबोधित करते हुए संत ने कहा-''मनुष्य को भी इसी तरह अच्छे से अच्छे अवसर दिए जाते हैं, पर वह अपनी मन:स्थिति के अनुरूप ही चुनाव करता है।''

 

📖 प्रज्ञा पुराण भाग 2 पृष्ठ 8 

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