👉 गुरु गोविन्दसिंह के पाँच प्यारे
प्रश्न सामर्थ्य और क्षमता का नहीं, उच्चस्तरीय
भावनाओं का है। गुरु गोविन्दसिंह ने एक ऐसा ही नरमेध यज्ञ किया। उक्त अवसर पर
उन्होंने घोषणा की-"भाइयो। देश की स्वाधीनता पाने और अन्याय से मुक्ति के लिए
चण्डी बलिदान चाहती है, तुम से जो अपना सिर दे सकता हो,
वह आगे आये। गुरु गोविन्दसिंह की मांग का सामना करने का किसी में
साहस नहीं हो रहा था, तभी दयाराम नामक एक युवक आगे बढ़ा।
"गुरु उसे एक तरफ ले गये और
तलवार चला दी, रक्त की धार बह निकली, लोग भयभीत
हो उठे। तभी गुरु गोविन्दसिंह फिर सामने आये और पुकार लगाई अब कौन सिर कटाने आता
है। एक-एक कर क्रमश: धर्मदास, मोहकमचन्द, हिम्मतराय तथा साहबचन्द आये और उनके शीश भी काट लिए गये। बस अब मैदान साफ
था कोई आगे बढ़ने को तैयार न हुआ।
गुरु गोविन्दसिंह अब उन पाँचों को
बाहर निकाल लाये। विस्मित लोगों को बताया यह तो निष्ठा और सामर्थ्य की परीक्षा थी, वस्तुत:
सिर तो बकरों के काटे गये। तभी भीड़ में से हमारा बलिदान लो-हमारा भी बलिदान लो की
आवाज आने लगी। गुरु ने हँसकर कहा-"यह पाँच ही तुम पाँच हजार के बराबर है।
जिनमें निष्ठा और संघर्ष की शक्ति न हो उन हजारों से निष्ठावान् पाँच अच्छे?''
इतिहास जानता है इन्हीं पाँच प्यारो ने सिख संगठन को मजबूत बनाया।
जो अवतार प्रकटीकरण के समय सोये
नहीं रहते, परिस्थिति और प्रयोजन को पहचान कर इनके काम में लग जाते
है, वे ही श्रेय-सौभाग्य के अधिकारी होते हैं, अग्रगामी कहलाते है।
कभी भी परिस्थितियाँ कितनी ही
आँधी-सीधी क्यों न हों, यदि प्रारम्भ में कुछ भी निष्ठावान् देवदूत
खड़े हो गये तो न केवल लक्ष्य पूर्ण हुआ, अपितु वह इतिहास भी
अमर हो गया।
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