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चलकर आओ - मिठाई लो

 

👉 चलकर आओ - मिठाई लो

 

🔷 कथा में युवक ने सुना भगवान सब को रोटी देते हैं। युवक को बात जँच गई। उसने काम पर जाना बन्द कर दिया। जो पूछता यही उत्तर देता- "भगवान जब रोटी देने ही वाले हैं तो मेहनत क्यों करूँ?" एक ज्ञानी उधर से निकले, मतिभ्रम में ग्रस्त लड़के की हालत समझी और प्यार से दूसरे दिन सबेरे उसे अपने पास बुलाया और कुछ उपहार देने को कहा। युवक भावुक था। सबेरे ही पहुँच गया।

 

🔶 ज्ञानी ने पूछा- 'कैसे आये?' उसने उत्तर दिया- 'पैरो से चलकर। ' ज्ञानी ने उसे मिठाई उपहार में दी और कहा- "तुम पैरो से चलकर मेरे पास तक आये तभी मिठाई पा सके। ईश्वर रोटी देता तो है पर देता उसी को है जो हाथ पैरो के पुरुषार्थ से उसे कमाने और पाने के लिए चलता है। जब मेरा मिष्ठान तुम बिना पैरो से चले प्राप्त नहीं कर सके, तो भगवान द्वारा दी जाने वाली रोटी कैसे प्राप्त कर सकोगे ?"

 

🔷 महापुरुष अपने समय और समाज को इस पलायन वादी वृत्ति से बचाने और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धर्म धारणा के विकास को ही उपासना- आराधना समझ कर सम्पन्न करते रहे हैं।

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