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प्रेम का परिमाण

 

👉 प्रेम का परिमाण

 

🔷 गौतम बुद्ध यात्रा पर थे। रास्ते में उनसे लोग मिलते। कुछ उनके दर्शन करके संतुष्ट हो जाते तो कुछ अपनी समस्याएं रखते थे। बुद्ध सबकी परेशानियों का समाधान करते थे।

 

🔶 एक दिन बुद्ध कहीं जा रहे थे, रास्ते में एक व्यक्ति मिला वह चलते-चलते बुद्ध को अपनी समस्या सुनाने लगा बोला- “मैं एक विचित्र तरह के द्वंद्व से गुजर रहा हूँ। मैं लोगों को प्यार तो करता हूँ पर मुझे बदले में कुछ नहीं मिलता। जब मैं किसी के प्रति स्नेह रखता हूँ तो यह अपेक्षा तो करूंगा ही कि बदले में मुझे भी स्नेह या संतुष्टि मिले। लेकिन मुझे ऐसा कुछ नहीं मिलता। मेरा जीवन स्नेह से वंचित है। मैं स्वयं को अकेला महसूस करता हूँ।

 

🔷 कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे व्यवहार में ही कोई कमी है? कृपया बताएं कि मुझ में कहां गलती और कमी है?” बुद्ध ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया, वे चुप रहे! सब चलते रहे। चलते-चलते बुद्ध के एक शिष्य को प्यास लगी। कुआं पास ही था।

 

🔶 रस्सी और बाल्टी भी पड़ी हुई थी। शिष्य ने बाल्टी कुएं में डाली और खींचने लगा। कुआं गहरा था। पानी खींचते-खींचते उसके हाथ थक गए पर वह पानी नहीं भर पाया क्योंकि बाल्टी जब भी ऊपर आती खाली ही रहती।

 

🔷 सभी यह देखकर हंसने लगे। हालांकि कुछ यह भी सोच रहे थे कि इसमें कोई चमत्कार तो नहीं? थोड़ी देर में सबको कारण समझ में आ गया। दरअसल बाल्टी में छेद था।

 

🔶 बुद्ध ने उस व्यक्ति की तरफ देखा और कहा- “हमारा मन भी इसी बाल्टी की ही तरह है जिसमें कई छेद हैं। आखिर इसमें प्रेम का पानी टिकेगा भी तो कैसे?

 

🔷 मन में यदि सुराख रहेगा तो उसमें प्रेम भरेगा कैसे। क्या वह रुक पाएगा? तुम्हें प्रेम मिलता भी है तो टिकता नहीं है। तुम उसे अनुभव नहीं कर पाते क्योंकि मन में बदले की अपेक्षा रूपी विकार का छेद हैं। तुम प्रेम दो पर अपेक्षा छोड दो। अभी तुम्हे जो प्रेम मिलता भी है उसे अपेक्षा की तराजू पर रख कर तौल देते हो सो वह स्वतः हल्का हो जाता है। लेकिन जब ये अपेक्षा की तराजू फेंक कर देखोगे तो सबका प्रेम अधिक ही महसूस होगा।“

👉 विनम्रता का परिचय

 

🔶 लोकतंत्र के महान समर्थक अब्राहम लिंकन एक बार अपने गांव के नजदीक एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। भाषण के बीच एक महिला खड़ी होकर बोली - 'अरे, यह राष्ट्रपति है? यह तो हमारे गांव के मोची का लड़का है।'

 

🔷 अपने प्रति ये अपमानजनक शब्द सुनकर लिंकन ने बड़े ही विनम्र शब्दों में उस महिला से कहा, 'मैडम! आपने बहुत अच्छा किया जो उपस्थित जनता से मेरा यथार्थ परिचय करा दिया, मैं वही मोची का बेटा हूँ। क्या मैं आपसे एक बात पूछ सकता हूँ? 'अवश्य', उस महिला ने कहा।

 

🔶 तब लिंकन ने पूछा - 'क्या आप यह बताने का कष्ट करेंगी कि मेरे पिताजी ने आपके जूते आदि तो ठीक तरह से मरम्मत किए थे न? आपको उनके कार्य में कोई शिकायत तो नहीं मिली।'

 

🔷 उस महिला ने सफाई देते हुए कहा - 'नहीं, नहीं, उनके कार्य में कोई शिकायत नहीं मिली। वे अपना काम बड़ी अच्छी तरह करते थे।'

 

🔶 तब लिंकन ने उत्तर दिया, 'मैडम! जिस प्रकार मेरे मोची पिता ने अपने कार्य में आपको कोई शिकायत का मौका नहीं दिया, उसी प्रकार मैं भी आपको आश्वस्त करता हूँ कि आपने मुझे राष्ट्रपति के रूप में सेवा करने का जो मौका दिया है, उसे मैं बड़ी ही कुशलता से करूंगा और यह मेरी कोशिश रहेगी कि मेरे काम में आपको कोई शिकायत का मौका न मिले।'

 

🔷 यह है अमरीकी इतिहास के सर्वाधिक सफल राष्ट्रपति लिंकन की विनम्रता का उदाहरण, जिन्हें आज भी बड़ी श्रद्धा एवं आदर के साथ स्मरण किया जाता है।

 

👉 उक्त उदाहरण का विश्लेषण कर हम यह कह सकते हैं कि

 

🔷 विनम्रता-आत्म-सम्मान (यानी ऊँचे स्वाभिमान) का एक विशेष गुण है।

 

🔶 व्यक्ति की महानता को दर्शाती है।

 

🔷 एक पॉजिटिव पर्सनेलिटी ही सारी खूबियों की बुनियाद है।

 

🔶 मनुष्य को उदारचित बनाती है।

 

🔷 परोपकार की भावना प्रदान करती है।

 

🔶 धैर्यवान व संयमी बनाती है और सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है।

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