👉 सोना पाने का अधिकारी
🔶 एक बार तीन व्यक्ति गरीबी से तंग आकर धन कमाने
के लिये परदेश को रवाना हुए। बहुत दिनों तक वे इधर-उधर भटकते रहे, किन्तु
कोई ऐसा उपाय न मिला जो धन कमाते। हताश होकर वे कुबेर देवता को प्रसन्न करने के
लिए तप करने लगे। उनकी उग्र तपस्या से कुबेर देवता प्रसन्न हुए, और उनकी पात्रता के अनुसार फल देने के लिए एक साधु का वेश बनाकर उन
व्यक्तियों के पास पहुँचे।
🔷 साधु वेश धारी कुवेर ने उनसे पूछा कि तुम लोग
क्यों तप कर रहे हो? उन्होंने कहा-धन के लिये। साधु ने कहा-
अच्छा, बेटा, मैं तुम्हें एक ऐसा उपाय
बताता हूँ जिससे तुम लोग मनचाहा धन प्राप्त कर सकते हो। सामने जो झरना बह रहा है,
वह वरुण देवता का बना हुआ है। इसमें यदि गंगोत्री से लाकर थोड़ा सा
गंगा जल डाल दो तो इसका सारा पानी सोने का हो जायेगा। यदि तुम लोग गंगोत्री गंगा
जल ले आओ तो आसानी से मन चाहा सोना पा सकते हो।
🔶 वे तीनों व्यक्ति बहुत प्रसन्न हुए, क्योंकि
गंगोत्री वहाँ से पास ही थी, शाम तक लौट कर वापिस आया जा
सकता था। वे लोग अपने - अपने घड़े लेकर गंगाजल लेने के लिए
चल दिये। रास्ता न तो बहुत कठिन था और न दूर, कुछ ही घंटों
में वे लोग वहाँ पहुँच गये और घड़े भर कर वापिस लौटने लगे।
🔷 उनमें से दो के मन में यह विचार उठने लगे कि
मैं पहले पहुँच जाऊं और पहले अपना गंगा जल डाल दूँ, इस प्रकार उस सारे
झरने पर मेरा ही अधिकार हो जायेगा। पहला और दूसरा दोनों ही गुप्त रूप से ऐसा सोच
रहे थे, इसलिये उन्हें बहुत जल्दी थी- वे बहुत तेजी से चलने
लगे। तीसरा व्यक्ति उदार हृदय था-उसके मन में किसी प्रकार की आशंका न थी, वह धीरे-धीरे चल रहा था।
🔶 रास्ते में कई मनुष्य ऐसे मिले जो प्यास के
मारे चिल्ला रहे थे। आगे दौड़ने वाले उन दोनों ने प्यासे आदमियों को पुकार तो सुनी, किन्तु
उस पर कोई ध्यान न दिया, जल्दी सोना पाने की धुन में उन्हें
दूसरों का कुछ ख्याल न था। तीसरा साथी जो पीछे-पीछे आ रहा था। उसने एक प्यास के
मारे चिल्लाते हुए वृद्ध मनुष्य को रास्ते में पड़ा पाया, उसने
तुरन्त ही अपने घड़े में से उसे पानी पिला दिया। आगे चला तो एक स्त्री अपने बालक
को गोद में लिए रास्ते में रोती हुई मिली, पूछने पर उसने
बताया कि प्यास के मारे मेरा और मेरे बच्चे का दम निकला जा रहा है, उसने उस स्त्री और उसके बच्चे को भी पानी पिलाया। जब झरना थोड़ी दूर रह
गया तो उसने रास्ते में एक कुत्ते को पड़ा देखा तो प्यास से छटपटा रहा था, उसने देखा कि यदि कुछ ही देर और उसे पानी न मिलेगा तो जरूर ही उसके प्राण
निकल जायेंगे। उसने बचा हुआ सारा गंगाजल उस कुत्ते को पिला दिया और खाली घड़ा लेकर
झरने की तरफ चल दिया।
🔷 वह सोच रहा था कि तेज चलने वाले मेरे दोनों
साथी झरने पर पहुँच गये होंगे और झरना सोने का हो चुका होगा। पर जब वह वहाँ पहुँचा
तो देखा उसके साथी वहाँ तक नहीं पहुँचे और झरना भी वैसा ही बह रहा है। साथी कहाँ गये
इस चिन्ता में वह इधर-उधर घूमने लगा। इतने में वही साधु उस के पास आया और कहने
लगा-बेटा,
मैं ही कुबेर हूँ। तुम लोगों की परीक्षा लेने आया था। रास्ते में जो
वृद्ध पुरुष, स्त्री, कुत्ता मिले थे
वे और कोई नहीं थे, मैंने ही अपने रूप बना लिये थे और तुम
लोगों का हृदय जाँच रहा था। तुम्हारे दोनों साथी अपनी स्वार्थ बुद्धि के कारण
पत्थर हो गये हैं और देखो वहाँ पड़े हुए हैं। तुम अपना घड़ा मुझे दो। उस घड़े में
एक दो बूँद जो गंगाजल था वह साधु ने झरने में डाला, वह सारा
सोना का हो गया। साधु ने कहा-बेटा जितना चाहिये सोना ले जाओ। तुम्हीं सोना पाने के
वास्तविक अधिकारी हो, इसलिए तुम्हें ही वह संपदा मैं दे रहा
हूँ। उन स्वार्थ बुद्धियों को अपना फल भोगने दो।
📖 अखण्ड-ज्योति अक्टूबर 1941
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