👉 हिंसा का बीज
🔶 कस्बे में एक महात्मा थे। सत्संग करते और लोगों
को धैर्य,
अहिंसा, सहनशीलता, सन्तोष
आदि के सदुपदेश देते। उनके पास सत्संग में बहुत बड़ी संख्या में भक्त आने लगे। एक
बार भक्तों ने कहा महात्मा जी आप कस्बे में अस्पताल, स्कूल
आदि भी बनवाने की प्रेरणा दीजिए। महात्मा जी ने ऐसा ही किया। भक्तों के अवदान और
परिश्रम से योजनाएं भी बन गई। योजनाओं में सुविधा के लिए भक्तों ने, कस्बे के नेता को सत्संग में बुलाने का निर्णय किया।
🔷 नेताजी सत्संग में पधारे और जनसुविधा के कार्यों
की जी भरकर सराहना की और दानदाताओं की
प्रशंसा भी। किन्तु महात्मा जी की विशाल जनप्रियता देखकर, अन्दर
ही अन्दर जल-भुन गए। महात्मा जी के संतोष और सहनशीलता के उपदेशों के कारण कस्बे
में समस्याएं भी बहुत कम थी। परिणाम स्वरूप नेता जी के पास भीड़ कम ही लगती थी।
🔶 घर आकर नेताजी सोच में डूब गए। इतनी अधिक जनप्रियता
मुझे कभी भी प्राप्त नहीं होगी, अगर यह महात्मा अहिंसा आदि सदाचारों का
प्रसार करता रहा। महात्मा की कीर्ति भी इतनी सुदृढ़ थी कि उसे बदनाम भी नहीं किया
जा सकता था। नेता जी अपने भविष्य को लेकर चिंतित थे। अचानक उसके दिमाग में एक
जोरदार विचार कौंधा और निश्चिंत होकर आराम से सो गए।
🔷 प्रातः काल ही नेता जी पहुँच गए महात्मा जी
के पास। थोड़ी ज्ञान ध्यान की बात करके नेताजी नें महात्मा जी से कहा आप एक रिवाल्वर
का लायसंस ले लीजिए। एक हथियार आपके पास हमेशा रहना चाहिए। इतनी पब्लिक आती है पता
नहीं कौन आपका शत्रु हो? आत्मरक्षा के लिए हथियार का पास होना बेहद
जरूरी है।
🔶 महात्मा जी ने कहा, “बंधु!
मेरा कौन शत्रु? शान्ति
और सदाचार की शिक्षा देते हुए भला मेरा
कौन अहित करना चाहेगा। मैं स्वयं अहिंसा का उपदेश देता हूँ और अहिंसा में मानता भी
हूँ।” नेता जी ने कहा, “इसमें कहाँ आपको कोई हिंसा करनी है।
इसे तो आत्मरक्षा के लिए अपने पास रखना भर है। हथियार पास हो तो शत्रु को भय रहता
है, यह तो केवल सावधानी भर है।” नेताजी ने छूटते ही कहा,
“महात्मा जी, मैं आपकी अब एक नहीं सुनूंगा।
आपको भले आपकी जान प्यारी न हो, हमें तो है। कल ही मैं आपको
लायसंस शुदा हथियार भेंट करता हूँ।”
🔷 दूसरे ही दिन महात्मा जी के लिए चमकदार हथियार
आ गया। महात्मा जी भी अब उसे सदैव अपने पास रखने लगे। सत्संग सभा में भी वह हथियार, महात्मा
जी के दायी तरफ रखे ग्रंथ पर शान से सजा रहता। किन्तु अब पता नहीं, महाराज जब भी अहिंसा पर प्रवचन देते, शब्द तो वही थे
किन्तु श्रोताओं पर प्रभाव नहीं छोड़ते थे। वे सदाचार पर चर्चा करते किन्तु लोग
आपसी बातचीत में ही रत रहते। दिन प्रतिदिन श्रोता कम होने लगे।
🔶 एक दिन तांत्रिकों का सताया, एक
विक्षिप्त सा युवक सभा में हो-हल्ला करने
लगा। महाराज ने उसे शान्त रहने के लिए कहा। किन्तु टोकने पर उस युवक का आवेश और भी
बढ़ गया और वह चीखा, “चुप तो तू रह पाखण्डी” इतना सुनना था कि
महात्मा जी घोर अपमान से क्षुब्ध हो उठे। तत्क्षण क्रोधावेश में निकट रखा हथियार
उठाया और हवाई फायर कर दिया। लोगों की जान हलक में अटक कर रह गई।
🔷 उसके बाद कस्बे में महात्मा जी का सत्संग वीरान
हो गया और नेताजी की जनप्रियता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगी।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know