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मनुष्य जाति के गौरव

👉 मनुष्य जाति के गौरव

 

🔷 संसार में ऐसे मनुष्यों की बड़ी आवश्यकता है जो ईमानदारी हो। जो भय या लोभ के कारण अपनी अन्तरात्मा को बेचते न हों। जो सच्चाई पर कायम रहने के लिए अपने प्राणों तक को भी उत्सर्ग कर सकें। जिन्होंने बनावट से घृणा करना और सच्चाई से प्यार करना सीखा है वस्तुतः वे ही ज्ञानी है।

 

🔶 कुतुबनुमा (दिशा सूचक यंत्र) की सुई जिस तरह सदा उत्तर दिशा में ही रहती है उसी तरह जिनकी अन्तरात्मा सदा सत्य की ओर उन्मुख रहती है वे ही मनुष्य जाति के गौरव है। ऐसे ही लोगों से मानवता धन्य होती है और उन्हीं से संसार की सुख शान्ति बढ़ती है। महान व्यक्तियों की विशेषता यही होती है कि वे अपने चरित्र से विचलित नहीं होते। प्रलोभनों और आपत्तियों के बीच भी वे चट्टान की तरह अविचल बन रहते है।

 

📖 अखण्ड ज्योति से

 

👉 हाथी या भौंरा?

 

🔶 एक आदमी ने रास्ते में सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा। हाथियों के पैर में रस्सी बंधी थी। उसे आश्चर्य हुआ कि हाथी जैसा विशाल जानवर केवल एक छोटी सी रस्सी से बंधा था। हाथी इस बंधन को जब चाहे तब तोड़ सकता था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर रहा था। उस आदमी ने हाथी के प्रशिक्षक से पूछा कि कैसे हाथी जैसा विशाल जानवर रस्सी से बंधा शांत खड़ा है और भागने की कोशिश नहीं कर रहा?

 

🔷 प्रशिक्षक ने बताया कि इन हाथियों को बचपन से इन रस्सियों से ही बांधा जाता है। उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती कि वे रस्सियों को तोड़ सकें। बार-बार प्रयास करने के बाद इन रस्सियों के न टूटने से इनको यकीन हो जाता है कि ये रस्सियों को नहीं तोड़ सकते और बड़े होने के बाद भी उनका यह यकीन बना रहता है इसलिए वह रस्सी तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते।

 

🔶 दूसरी ओर भंवरा है, जिसके शरीर के भार और उसके पंखों के बीच कोई भी संतुलन नहीं है। विज्ञान का ऐसा मानना है कि भंवरे उड़ नहीं सकते, लेकिन भंवरे को लगता है कि वह उड़ सकता है, इसलिए वह लगातार कोशिश करता है और बार-बार असफल होने पर भी वह हार नहीं मानता। आखिरकार भंवरा उड़ने में सफल हो ही जाता है। भंवरा मानता है कि वह उड़ सकता है, इसलिए वह उड़ पाता है और हाथी मानता है कि वह रस्सी नहीं तोड़ सकता, इसलिए वह रस्सी को नहीं तोड़ पाता है।

 

🔷 हमें भी कुछ लोग बताते हैं कि यह मत करो, वह मत करो, तुमसे ये नहीं होगा, वह नहीं होगा। कभी-कभी हम कोशिश भी करते हैं और अगर असफल हो गए तो हमें यकीन हो जाता है कि यह काम नहीं हो पाएगा। फिर यही बातें हमारे विचार व्यवहार हमारी क्रिया को नियंत्रित करने लगते हैं। दिक्कत यह है कि हम लगातार प्रयास नहीं करते। यह मान लें कि आपके पास इतनी समझ, इतनी बुद्धि, इतना साहस है कि आप अपने किसी भी वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। बस पहले आप खुद इस बात को मानें। 

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