👉 पर-निंदा का परिणाम
🔷 दो संस्कृतज्ञ विद्वान् एक गृहस्थ के यहाँ
अतिथि बने। गृहस्थ ने उनका बड़ा सत्कार किया। जब एक विद्वान् स्नान घर में गए, तब
गृहस्थ ने दूसरे विद्वान् से स्नान करने को गये हुए विद्वान् के संबंध में पूछा।
उसने उत्तर दिया कि ‘वह मूर्ख बैल हैं।’ जब वह स्नान करके आया तो दूसरा स्नान करने
गया। गृहस्थ ने स्नान करके आए हुए विद्वान् से दूसरे विद्वान् के संबंध में पूछा
तो वह बोला-यह क्या जानता है-पूरा गधा है।’ जब भोजन का समय हुआ तो गृहस्थ ने एक
गट्ठर घास और एक डलिया भूसा उनके सामने ला रखा और बोला-लीजिये महाराज! बैल के लिए
भूसा और गधे के लिए घास उपस्थित है। यह देख सुनकर दोनों ही बड़े लज्जित हुए।
विद्वान् होकर भी दूसरों के प्रति ईर्ष्या द्वेष के भाव रखना बड़ी घृणित प्रवृत्ति
है। ऐसा विद्वान् भी निःसन्देह पशु श्रेणी में रखे जाने योग्य है।
🔶 “जो लोग अन्य लोगों से अपने विचारों की
पुष्टि और समर्थन करा चुके हैं, वे प्रायः ऐसे ही लोग हुए हैं
जिन्होंने स्वयं स्वतन्त्र विचार करने का साहस किया था।”
🔷 “केवल मूर्ख और मृतक, ये
दो ही अपने विचारों को कभी नहीं बदलते।”
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